लोकसभा में पूर्ण बहुमत के बावजूद राज्य सभा में अल्पमत के चलते नरेंद्र मोदी सरकार अपने कई बिलों को पास कराने में असफल रही है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स बिल(जीएसटी) है। यही वजह है कि 11 जून को होने वाले राज्य सभा चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवारों को संसद के ऊपरी सदन में रोकने के लिए निर्दलीयों को आगे किया है। इन चुनावों के बाद राज्य सभा में भाजपा की तीन सीटें और बढ़ जाएंगी जबकि कांग्रेस की इतनी ही कम हो जाएगी। बावजूद इसके कांग्रेस राज्य सभा में सबसे बड़ी पार्टी होगी। इसी को देखते हुए भाजपा निर्दलीयों के जरिए कांग्रेस को पछाड़ने की तैयारी में हैं। भाजपा के निशाने पर झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में एक-एक सीटें और हैं।
चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और झारखंड में भाजपा ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए निर्दलीयों का समर्थन किया है। हालांकि कांग्रेस ने भी इसका सामना करने के लिए रणनीति बनाई है। वह मायावती के समर्थन के सहारे अपने नेताओं को राज्य सभा भेजने की नीति पर काम कर रही है। सबसे पहले बात करते हैं उत्तर प्रदेश की। यहां पर कांग्रेस ने कपिल सिब्बल को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के यहां पर 29 विधायक हैं और उसके पास पांच विधायकों की कमी है। वह बसपा के सहारे है। लेकिन प्रीति महापात्रा के खड़े होने के चलते कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं। भाजपा प्रीति का समर्थन कर रही है। साथ ही कुछ छोटी पार्टियां और निर्दलीय भी प्रीति महापात्रा के साथ हैं। सिब्बल को राज्य सभा भेजने के लिए कांग्रेस नेता बसपा और निर्दलीयों के साथ बातचीत कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश में तीन सीटों के लिए चुनाव होंगे। इनमें से दो पर भाजपा के एमजे अकबर और अनिल दवे का जीतना तय है। तीसरी सीट के लिए कांग्रेस ने वकील और दिग्विजय सिंह के करीबी विवेक तनखा को प्रत्याशी बनाया है। लेकिन भाजपा ने विनोट गोठिया को निर्दलीय के रूप में उतार कर कांग्रेस की पेशानियों पर बल डाल दिए। तनखा को जीतने के लिए 58 वोट चाहिए। लेकिन कांग्रेस के पास मध्य प्रदेश में 57 विधायक ही हैं। साथ ही एक विधायक अस्पताल में तो दूसरा जेल है। एक विधायक ने भाजपा का समर्थन कर दिया है। हालांकि मायावती ने कांग्रेस का समर्थन किया। बसपा के पास चार विधायक है।
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झारखंड में दो सीटों के लिए राज्य सभा चुनाव है। भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी का यहां से जीतना तय है। दूसरी सीट पर कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा(झामुमो) ने संयुक्त रूप से अपना उम्मीदवार उतारा है। लेकिन भाजपा ने उद्योगपति महेश पोद्दार को भी मैदान में उतार दिया। इसके चलते कांग्रेस-झामुमो प्रत्याशी के लिए परेशानी खड़ी हो गई है। हरियाणा में भी राज्य सभा की दो सीटें खाली हैं। भाजपा के पास केवल एक उम्मीदवार को संसद के ऊपरी सदन में भेजने लायक विधायक हैं। उसने यहां से केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंदर सिंह को खड़ा किया। दूसरी सीट के लिए उसने मीडिया दिग्गज सुभाष चंद्रा का समर्थन किया है। यहां से वरिष्ठ वकील आरके आनंद भी निर्दलीय के रूप में उतरे हैं। उनके पास इंडियन नेशनल लोकदल का समर्थन है। कांग्रेस ने भी आनंद का समर्थन करने को कहा है लेकिन एक वर्ग उनके खिलाफ है।
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इसी बीच, उत्तराखंड में भाजपा ने किस्मत आजमाने का फैसला किया है। यहां से एक सीट खाली हुई है जिसके लिए कांग्रेस ने प्रदीप टमटा को उतारा है। कांग्रेस के पास 27 विधायक है जबकि जीत के लिए 29 चाहिए। कांग्रेस की सहयोगी पीडीएफ टमटा के नामाकंन से नाराज है। मौका देखते हुए भाजपा ने अपना उम्मीदवार उतारा दिया। भाजपा के पास 28 एमएलए हैं। हालांकि कांग्रेस को उम्मीद है कि वह बसपा के सहयोग से अपनी सीट बरकरार रखेगी। ऐसा नहीं है कि भाजपा ही कांग्रेस के पीछे पड़ी है, कांग्रेस भी भाजपा को पटखनी देने के पूरे प्रयास में हैं। राजस्थान में उसने निर्दलीय उम्मीदवार कमल मोरारका का समर्थन किया है। मोरारका के पास निर्दलीयों का समर्थन भी है।
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राज्य सभा की 57 सीटें खाली हुई हैं। इसके तहत भाजपा-कांग्रेस के 14-14, बसपा के 6, जेडीयू के 5, सपा, बीजद व अन्नाद्रमुक के 3-3, टीडीपी, द्रमुक व एनसीपी के 2-2 और शिवसेना व अकाली दल के 1-1 सांसद रिटायर हुए हैं। कर्नाटक की एक सीट विजय माल्या के जाने से खाली हुइ है। इन चुनावों के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच सांसदों का अंतर कम रह जाएगा। अप्रैल में ही केंद्र सरकार ने 6 सीटें नामाकिंत सदस्यों के जरिए भरी थी।
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