किसान बिलों को लेकर BJP के पुराने दोस्त और शिरोमणि अकाली दल (SAD) चीफ सुखबीर सिंह बादल ने हुंकार भरी है। कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिल गए हैं। अब बारी दिल्ली के तख्त को हिलाने की है। उनके मुताबिक, “सभी राजनीतिक पार्टियों को साथ आकर एक सामान्य प्लैटफॉर्म पर केंद्र के खिलाफ लड़ना चाहिए।”
दरअसल, शुक्रवार को सुखबीर के नेतृत्व में अकाली दल कार्यकर्ताओं ने मलौत-दिल्ली नेशनल हाईवे पर लंबी विस क्षेत्र में तीन घंटे तक चक्का जाम किया। बादल के साथ उस दौरान पत्नी और बठिंडा से सांसद हरसिमरत कौर भी थीं। बादल दंपति धरनास्थल पर विरोध स्वरूप करीब आठ किलोमीटर ट्रैक्टर चलाकर पहुंचे थे।
धरनास्थल पर सुखबीर ने कहा, “बीच में कुछ उपद्रवी हैं। आइए हम उनके साथ लड़ते हैं और सभी किसानों को एक साझा मंच के तहत आने देते हैं, ताकि दिल्ली के ‘तख्त’ (केंद्र सरकार) और यहां तक कि कैप्टन (पंजाब में) की सरकार को हिला सकें।”
उन्होंने यह भी कहा, पंजाब के किसानों के लिए अकाली दल आगे आकर नेतृत्व कर सकता है या फिर पीछे से उन्हें देख भी सकता है…हमारे साथ अहंकार का कोई मुद्दा नहीं है। हमारा काम किसानों के अधिकारों के लिए लड़ना है। SAD चीफ ने आगे कहा- एक अक्टूबर को हमारी पार्टी के समूह तख्त दमदमा साहिब, अकाल तख्त और तख्त केशगढ़ साहिब से चंडीगढ़ की ओर किसान मार्च के तौर पर शुरुआत करेंगे।
सुखबीर ने पत्नी हरसिमरत के इस्तीफे की तुलना ‘अटम बम’ से कराई, जो कि द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के दौरान जापान पर गिराया गया था। उन्होंने कहा- जापान जब सुपर पावर था, अमेरिका ने तब उस पर अटम बम गिराया था। और पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। ऐसे ही हरसिमरत का इस्तीफा भी अटम बम जैसा ही थी, जिसने बीजेपी और पीएम मोदी तक को हिलाकर रख दिया। अब हर दिन उनके मंत्री इस कदम पर पर सफाई दे रहे हैं, जबकि पहले तक वे चुप थे।
वहीं, हरसिमरत ने बताया, “उन्होंने जब संख्याबल और आंकड़ों के आधार पर पहला बिल पास किया था, तब ही मैंने कहा था कि ये काम नहीं करेगा। मुझे जवाब मिला था- 10 दिन में चीजें ठीक हो जाएंगी। मैंने उन्हें कहा कि किसान बीते दो-ढाई महीने से नहीं मान रहे हैं और संघर्ष और गहरा जाएगा, पर उन्होंने मेरी एक न सुनी। मेरे पास केंद्रीय कैबिनेट की कुर्सी को लात मारने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।”
उनके अनुसार, मैंने उन्हें कहा था जवान सरहद पर लड़ रहे हैं। लोग कोरोना से लड़ रहे हैं। ऐसे वक्त आप लोग ये बिल न लाएं। किसानों की सुनी जानी चाहिए। पर मेरी नहीं सुनी गई, इसलिए मैंने मंत्री पद छोड़ दिया। चाहे हमें दिल्ली को हिलाना पड़े या चंडीगढ़ को, हम ये करेंगे…मेरी राजनीतिक दलों से अपील है कि वे दुश्मनी छोड़ें और साझा मंच पर आ जाएं। चलिए मिलकर ये नारा देते हैं- एको नारा…किसान प्यारा।
वैसे, ये बातें सुखबीर और उनकी पत्नी की ओर से तब कही गई हैं, जब पंजाब के विभिन्न किसान संगठन बार-बार साफ कर चुके हैं कि उन्हें किसी भी राजनीतिक दल की मदद की जरूरत नहीं है।