BSP Chief Mayawati: संसद के चालू मानसून सत्र के दौरान विवादास्पद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) संशोधन विधेयक आता है, तो उस पर चर्चा के साथ-साथ मतदान से दूर रहने का बसपा का फैसला हाल के महीनों में पहला उदाहरण नहीं है। क्योंकि मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी बसपा ने कई मुद्दों पर विपक्ष से हटकर अपनी एक अलग लीग खींची है। केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी अभी तक विपक्षी दलों को एकजुट करने में सफल रही है, लेकिन बसपा ने इस मुद्दे से भी दूरी बनाकर रखी है। हालांकि कि अब यह मुद्दा विपक्षी गुट और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच विवाद का एक प्रमुख कारण बन गया है। पिछले एक साल में कई मुद्दों पर बसपा की स्थिति विपक्ष के रुख के विपरीत रही है। जिसने भाजपा के खिलाफ विपक्ष के कदमों को कुछ हद तक प्रभावित किया है।

विपक्ष की पटना और बेंगलुरु बैठक से दूरी रही बसपा

23 जून को पटना में आयोजित 16 विपक्षी दलों की पहली संयुक्त बैठक में बसपा को आमंत्रित नहीं किया गया था। जनता दल (यूनाइटेड) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने तब कहा था कि मायावती को नहीं बुलाया गया था, क्योंकि उन्होंने कभी भी विपक्षी एकता का हिस्सा बनने की इच्छा व्यक्त नहीं की थी। जदयू नेता ने कहा था कि कई मौकों पर बसपा ने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की आलोचना की। केवल उन्हीं पार्टियों और नेताओं को आमंत्रित किया गया है जो भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने, 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ लड़ने और विपक्षी एकता के लिए पहल करने के लिए तैयार हैं।

17-18 जुलाई को बेंगलुरु में आयोजित विपक्ष की दूसरी संयुक्त बैठक में भी बसपा को नहीं बुलाया गया था। विपक्ष की इस बैठक में 26 पार्टियां शामिल हुई थीं। विपक्ष की पटना बैठक से पहले मायावती ने एक बयान में कहा था कि उनकी पार्टी उन गतिविधियों पर नजर रख रही है, जो विपक्षी दल भाजपा सरकार द्वारा बनाई गई स्थिति से निपटने के लिए उठा रहे हैं। बसपा प्रमुख ने तब बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार द्वारा किए गए विपक्षी एकता के कोशिशो की गंभीरता पर भी सवाल उठाया था और कहा था, “दिल मिले ना मिले, हाथ मिलाते रहो।”

पिछले साल सितंबर में जब नीतीश ने विपक्षी दलों के नेताओं को भाजपा के खिलाफ एक मंच पर लाने के लिए मुलाकात की थी, तो नीतीश कुमार की उस सूची में मायावती की नाम नहीं था।

नए संसद भवन के उद्घाटन का मायावती ने किया था स्वागत

इस साल मई में जब 20 से अधिक विपक्षी दलों ने कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की अनुपस्थिति को लेकर नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने की घोषणा की थी, तो मायावती ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसके उद्घाटन का स्वागत किया था। उन्होंने कहा था कि समारोह का बहिष्कार करना अनुचित है और मोदी सरकार को नई संसद का अनावरण करने का अधिकार है, क्योंकि उन्होंने इसे बनाया है। नए संसद के उद्घाटन समारोह में मायावती को आमंत्रित किया गया था, लेकिन वह बसपा संगठन की समीक्षा बैठकों सहित पूर्व निर्धारित व्यस्तताओं के कारण कार्यक्रम में शामिल हुई थीं।

मायावती ने तब कहा था, ‘राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नई संसद का उद्घाटन नहीं कराने के लेकर विपक्षी दलों का बहिष्कार करना गलत है। बसपा चीफ ने कहा था कि सरकार ने इसे बनाया है, इसलिए इसका उद्घाटन करने का अधिकार भी उसे ही है। इसे आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जोड़ना भी अनुचित है। क्योंकि विपक्ष को उन्हें निर्विरोध चुनने के बजाय उनके (राष्ट्रपति चुनाव में) खिलीफ उम्मीदवार उतारते समय इस बारे में सोचना चाहिए था।

राष्ट्रपति चुनाव में मायावती ने NDA उम्मीदवार का किया था समर्थन

पिछले साल जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव में बसपा ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था,जो देश के सर्वोच्च पद को संभालने वाली पहले आदिवासी महिला हैं। तब मायावती ने उन बैठकों में बसपा को आमंत्रित नहीं करने के लिए विपक्षी दलों पर निशाना साधा था, जहां मुर्मू के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को मैदान में उतारने पर सहमति से पहले संभावित राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा की गई थी।

मायावती ने विपक्ष के रवैये को ‘बसपा विरोधी’ और ‘जातिवादी’ बताया था। हालांकि, उन्होंने यह भी दावा किया कि मुर्मू को समर्थन देने का बसपा का फैसला न तो एनडीए के पक्ष में और न ही यूपीए का विरोध करने के लिए लिया गया था। उन्होंने कहा था कि पार्टी और उसके आंदोलन को ध्यान में रखते हुए बसपा ने आदिवासी समुदाय की एक मेहनती और योग्य महिला को देश का राष्ट्रपति बनाने का निर्णय लिया था।

उपराष्ट्रपति चुनाव में बसपा ने धनखड़ को किया था सपोर्ट

पिछले साल अगस्त में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में मायावती ने एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को अपनी पार्टी के समर्थन की घोषणा की थी। उन्होंने तब ट्वीट किया करते हुए कहा था कि व्यापक जनहित और पार्टी के अपने आंदोलन को देखते हुए बसपा ने उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में जगदीप धनखड़ को अपना समर्थन देने का फैसला किया है।

‘कोई गठबंधन नहीं, बसपा अकेली लड़ेगी’

इस साल 15 जनवरी को विपक्षी एकता पर टिप्पणी करते हुए मायावती ने कहा था कि बसपा की विचारधारा अन्य विपक्षी दलों से अलग है। उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी और अकेले चुनाव लड़ेगी। उन्होंने 19 जुलाई को भी यह बात कही और दावा किया कि उनकी पार्टी एनडीए और विपक्ष दलों के गठबंधन (INDIA) दोनों से दूर रहेगी।

28 जून को जब भीम आर्मी प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद को सहारनपुर में हमलावरों ने गोली मारी। उस वक्त तमाम विपक्षी दलों ने प्रदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर कड़ी आलोचना की थी, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस पर परहेज किया था। चंद्रशेखर वर्तमान में 2024 के चुनावों के लिए गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी (एसपी) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ बातचीत कर रहे हैं।

बसपा प्रमुख मायावती ने रविवार (23 जुलाई, 2023) को राजस्थान में शहरी और ग्रामीण इलाकों में साल में 125 दिन रोजगार के अलावा बुजुर्गों और दिव्यांगों को हर महीने न्यूनतम एक हजार रूपए की पेंशन की गारंटी देने वाला विधेयक पर निशाना साधा। मायावती ने कहा, “राजस्थान की कांग्रेस सरकार द्वारा विधानसभा आमचुनाव से ठीक पहले न्यूनतम आय गारण्टी योजना आदि की घोषणा करना यह जनहित का कम तथा इनके राजनीतिक स्वार्थ का फैसला ज्यादा. इससे गरीब जनता को तुरन्त राहत मिलना मुश्किल, फिर भी केवल प्रचार पर सरकारी धन का भारी खर्च करना क्या उचित?”
बसपा प्रमुख ने कहा, “वैसे तो गहलोत सरकार अपने पूरे कार्यकाल कुंभकर्ण की नींद सोती रही और आपसी राजनीतिक उठापटक में ही उलझी रही, वरना जनहित व जनकल्याण से जुड़े अनेकों कार्य प्रदेश की जनता की गरीबी, बेरोजगारी, उनके पिछड़ेपन व तंगी के हालात के कारण सरकार द्वारा काफी पहले ही शुरू कर देना जरूरी था।”