बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू यादव का राजनीतिक रसूख इस कदर था कि एक समय उन्हें केंद्रीय राजनीति में किंगमेकर कहा जाता था। उत्तरी बिहार के फुलवरिया में जन्में लालू प्रसाद यादव को अपनी असली जन्मतिथि पर हमेशा संदेह रहा। लेकिन गांव से पटना और फिर दिल्ली तक का सफर अनेक कहानियों से भरा हुआ है।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार, दोनों को करारी शिकस्त मिली थी। उस चुनाव प्रचार के दौरान लालूजी ने नीतीश कुमार के साथ आने की किसी भी संभावना को सिरे से खारिज कर दिया था। पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि जो आदमी भाजपा का समर्थक रहा, मुझे सत्ता से हटाया उसके साथ भला कैसे हाथ मिला सकता हूं। लेकिन एक साल बाद ही उन्होंने यह घोषणा की कि नीतीश कुमार उनके बिछड़े सहयोगी और नेता हैं।

उन्होंने कहा कि बिहार में सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए वो नंबर दो बनने के लिए भी तैयार हैं। ऐसे शुरू हुई कहानी: 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर लालू प्रसाद यादव पहली बार में ही लोकसभा पहुंच गए। वे छपरा से सांसद बने थे। इसके बाद 1980 और 1985 में सोनपुर से विधायक चुने गए। 1989 में एक बार फिर छपरा से सांसद बने और एक साल बाद ही 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।

1995 में विधानसभा चुनावों में दोबारा पार्टी को विजय दिलाई और यही से सबकुछ बदल गया। तब के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने इस चुनाव में भरपूर सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम किया था। वो कहते थे कि जरा सी भी आपराधिक गतिविधि का पता चलने पर वे पूरी चुनावी प्रक्रिया ही रद्द कर देंगे।

लालू यादव विपक्ष से उतना परेशान नहीं थे जितना शेषन की वजह से चिंतित रहते थे। लालू यादव के राजीनतिक जीवन पर लिखी किताब ‘बिहारी ब्रदर्स’ में लेखक संकर्षण ठाकुर ने एक ऐसे ही वाकये का उल्लेख किया है, जब लालू प्रसाद यादव ने टीएन शेषन को ‘पागल सांड’ कहा था।

लालू प्रतिदिन अपने दैनिक दरबार में ऊंचे स्वर में शिकायत करते और ऐसी रंगीन धमकियां जारी करते, जो उनके दर्शकों को उमंग से भर देतीं। “शेषन पगला सांड जैसे कर रहा है। मालूमे नहीं है कि हर रस्सा बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं।”

एक रात टीएन शेषन ने एक स्थगन आदेश दिल्ली से पटना के मुख्यमंत्री कार्यालय में फैक्स किया। इससे लालू यादव भड़क गए थे। उन्होंने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी आरजेएम पिल्लई को फोन लगाकर खूब खरी खोटी सुनाई थी।

उन्होंने कहा था, “ए जी पिल्लई, हम तुमरा चीफ मिनिस्टर हैं और तुम हमरा अफसर, ई शेषनवा कहां से बीच में टकता रहता है?” इससे पहले ही पिल्लई जवाब दे पाते मुख्यमंत्री ने कहा, “अउर फैक्स मैसेज भेजता है! ई अमीर लोग का खिलौना लेकर के तुम लोग गरीब लोग के खिलाफ कांस्पीरेसी करते हो? सब फैक्स-फूक्स उड़ा देंगे, इलेक्शन हो जाने दो।”

राजनीतिक और सामाजिक छवि: लालू यादव प्रतिदिन अपने बंगले के आंगन में टहलते हुए नीम की दातून करते थे। यह उनकी आदत थी। हालांकि वो आंगन में आने से पहले दांतों को टूथपेस्ट और ब्रश से साफ करते थे, लेकिन दातून करना उनके दांतों और छवि दोनों के लिए जरूरी था। एक सीधे सरल, देहाती, जमीन से जुड़े व्यावहारिक आदमी की छवि के लिए। जिसके लिए वो हमेशा सतर्क रहते थे।

भीड़ के बीच अपनापन: लालू यादव रोजाना लोगों से मिलते थे। कई बार वहां अराजकता फैल जाती थी। ऐसे में पुलिसवाले लोगों पर डंडे बरसाकर उन्हें काबू में करते थे। तब लालू पुलिसवालों के सामने आकर उन्हें रोकने के लिए धक्का देते, चिल्लाते और बर्खास्तगी की धमकी भी देते थे।

इसके बाद भीड़ से एक ही आवाज आती, लालू यादव जिंदाबाद। लालू एक ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो अपने ही राज्य के अधिकारियों को चुनौती देते थे, अपने ही पुलिसवालों को फटकारते थे और जनता इसे खूब पसंद करती थी।