कर्नाटक हाईकोर्ट ने ब्रिटेन की एक कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने इसे लागू कराने में अपने हाथ खड़े करते हुए कहा कि ब्रिटिश कोर्ट ने कानून के ककहरे को ध्यान में रखे बगैर आदेश जारी किया है। हमें नहीं लगता कि इसे लागू किए जाने की जरूरत है।
जस्टिस एचपी संदेश ने कहा कि यूके की कोर्ट ने कानून के सिद्धांतों को ध्यान में रखे बगैर फैसला दिया है। वो केवल अपने नागरिकों का हित देख रहे हैं। ब्रिटिश कोर्ट ने अपने दो नागरिकों की याचिका पर ये फैसला दिया था। नाइजल रोड्रिक और करोल एन ने ये याचिका यूके की कोर्ट में दी थी।
कर्नाटक में हुआ था ब्रिटिश नागरिकों का एक्सीडेंट
दरअसल नाइजल रोड्रिक और करोल एन भारत भ्रमण पर थे। वो कर्नाटक के भी दौरे पर गए। 2002 में जब वो घूमने के लिए जा रहे थे तो उनकी कार KRTC (कर्नाटक स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन) की बस से टकरा गई। ब्रिटेन लौटने के बाद दोनों ने वहां की अदालत में रिट दायर करके KRTC से मुआवजे की मांग की। कोर्ट ने मुआवजा देने का आदेश भी दोनों की रिट पर जारी कर दिया।
kRTC का पक्ष सुने बगैर जारी कर दिया गया आदेश
रोड्रिक और करोल ने ब्रिटिश कोर्ट के आदेश को बेंगलुरु की कोर्ट में मेंशन करके इसे लागू करने की अपील की। KRTC ने फैसला मानने से इनकार कर दिया। उसने फैसले के खिलाफ बेंगलुरु की कोर्ट में अपील दायर की। लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। उसके बाद KRTC ने हाईकोर्ट का रुख किया। कॉरपोरेशन का कहना था कि ब्रिटिश कोर्ट का फैसला भारतीय मानकों के अनुरूप नहीं है। उसे तो अपनी बात कहने का मौका भी नहीं मिला है। एक्स पार्टी घोषित करके ब्रिटेन की कोर्ट ने अपने नागरिकों के हित में आदेश जारी कर दिया। इसे भारत में लागू नहीं किया जा सकता।
ब्रिटिश कोर्ट के फैसले की फोटोकॉपी लेकर बेंगलुरु पहुंचे थे पीड़ित
जस्टिस एचपी संदेश ने अपने फैसले में कहा कि ब्रिटिश कोर्ट के नोटिस का KRTC ने जवाब दिया था पर उसे माना नहीं गया। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देकर कहा कि बगैर साक्ष्यों के और सारे पक्षों को सुने बगैर फैसला देना किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं है। जस्टिस ने कहा कि ब्रिटिश नागरिकों ने अपनी कोर्ट के फैसले की फोटोकॉपी बेंगलुरु की कोर्ट में पेश की। इसे किसी भी नजरिये से सही नहीं मान सकते।