हरियाणा विधानसभा चुनाव की गहमागहमी लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है। इस सियासी संग्राम के बीच एक बात पर अब जाकर लोगों की निगाह टिकी है कि राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा अपने दिग्गज और प्रदेश में साढ़े नौ वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर से पीछा क्यों छुड़ाने लगी है। जानकार बताते हैं कि केंद्र में मंत्री मनोहर लाल खट्टर से भाजपा इसलिए आंखें फेर रही है, क्योंकि अवाम में उनके कार्यकाल का संदेश सकारात्मक नहीं रहा है। इसलिए मनोहर लाल से दूर बनाना भाजपा की एक खास रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
पीएम की सभाओं के बैनर-पोस्टर पर भी मनोहर लाल की तसवीर नहीं
खट्टर से भाजपा परहेज कर रही है। इसका संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की राज्य में हुई चुनावी सभाओं से मिला। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की सभाओं में खट्टर को मंच पर जगह नहीं मिली। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की सभाओं के लिए जो बैनर-पोस्टर लगे थे, उनपर भी मनोहर लाल की तसवीर नहीं थी। एकाध बार तो बात आई, गई खत्म हो गई, लेकिन बार-बार ऐसा होने से यह स्पष्ट होने लगा है कि भाजपा मनोहर लाल से किनारा करने में जुट गई है। भाजपा के दिग्गज नहीं चाहते कि मनोहर लाल का चेहरा चुनाव रणभूमि में प्रमुखता से प्रदर्शित हो।
चर्चा है कि खट्टर से इसलिए परहेज करती हुई दिख रही है कि बतौर मुख्यमंत्री मनोहर लाल के फैसलों से जनता में बहुत संतोष का भाव नहीं था। भाजपा के रणनीतिकार इस बात को अच्छी तरह से समझ गए हैं। यही वजह है कि इस चुनाव में पार्टी उनसे दूरी बनाने की कोशिश में है। साथ ही यह संदेश भी देना चाहती है कि मनोहर लाल की वजह से जनता को जो परेशानी हुई, इसीलिए सजा के रूप में चुनाव में उन्हें तवज्जो नहीं मिल रही है।
इसके अलावा हरियाणा चुनाव में किसानों का आंदोलन भी मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है। किसानों के आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री रहते खट्टर का जो व्यवहार था, वह भी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। खट्टर ने एकबार कहा था कि शंभू सीमा पर आंदोलन करने वाले लोग किसानों के नाम पर एक मुखौटा हैं। इसके बाद जब वे हिसार में एक कार्यक्रम में गए तो वहां एक युवक ने उनके सामने ही कहा कि इस बार हिसार में भाजपा हारेगी, इस पर मनोहर लाल भड़क गए। उन्होंने इतना तक कह दिया कि यह कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। यह संदेश भी पूरे प्रदेश में फैला, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।
रही-सही कसर कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा प्रकरण ने पूरी कर दी। बीते दिनों मनोहर लाल ने सैलजा को भाजपा में आने का प्रस्ताव दिया था। उनके इस प्रस्ताव को सैलजा ने ठुकरा दिया। इससे भी भाजपा की खूब फजीहत हुई। दरअसल, केंद्र में मंत्री बनने के बाद भी हरियाणा में मनोहर लाल की सक्रियता से यह संदेश जाने लगा कि भले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी हैं, लेकिन फैसले खट्टर ले रहे हैं। यह संदेश भाजपा के अनुकूल प्रतीत नहीं हुआ। परिणाम यह रहा कि पार्टी के उच्च पदस्थ लोगों ने इशारे में मनोहर लाल को सियासी रणभूमि से दूर रहने को कह दिया है।