किसान आंदोलन के बीच NDTV के पत्रकार रवीश कुमार ने कहा है कि बिहार के कृषि मंत्री अन्नदाताओं को दलाल बता रहे हैं, पर उनकी ही सरकार ने इन्हें दलालों के चंगुल में फंसाया है।
कुमार की यह टिप्पणी मंगलवार को एक फेसबुक पोस्ट के जरिए आई। ‘बिहार में मंडी ख़त्म हुई तो बिहार के किसान बर्बाद हो गए’ शीर्षक वाले इस लेख के जरिए वह बोले, “बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह भले आंदोलन पर बैठे किसानों को दलाल कह रहे हैं, लेकिन मंडी खत्म कर बिहार के किसानों को दलालों के हाथ में शोषित होने का काम उनकी सरकार ने किया है।”
बकौल रवीश, “किसानों के खाते में हर साल छह हज़ार भेज कर वोट लेने का दंभ इतना बढ गया है कि मंत्री को आंदोलन वाले किसान दलाल नज़र आते हैं। प्राइवेट कंपनियों के प्रति इतनी निष्ठा हो गई है कि जिस किसान का जुबानी जयकार करते थे उसी को दलाल कह रहे हैं। गाली दे रहे हैं। यह भी ठीक है कि गाली सुन कर भी बिहार के किसान बीजेपी को वोट देते हैं और आगे भी देंगे। लेकिन यह भी सही है कि बिहार के किसान कंगाल हो गए हैं।”
वरिष्ठ पत्रकार के इस पोस्ट लोगों ने भी जमकर कमेंट्स किए। कुछ ने पक्ष में तो कई ने विपक्ष में। रमेश सिंह नाम के यूजर ने कहा- मेरे तो समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार सही है या फिर छोटी-छोटी राजनीतिक पार्टियां। मोदी किसान के साथ छल कपट नहीं कर सकते हैं, क्योंकि काठ की हांडी एक बार चढ़ती है। बार बार नहीं। अगर गलत करता है तो चार साल बाद कहा जाएगा, इसलिए जल्दी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए।
सरोज सिंह के अकाउंट से लिखा गया, “पूरा देश रसातल में जा चुका है। किसान, मजदूर, बेरोजगार, सब परेशान हैं। पर अफसोस है कि भक्त आपको गांली देने में अपनी शान समझ रहे है।”
अतुल भास्कर ने लिखा- शायद आप शेखर गुप्ता को ‘आधा-अधूरा ज्ञान वाले’ बोल रहे हैं। पर आप उनकी बातों को ग़लत तो साबित कीजिए। दूसरी बात, अगर बिहार के किसानों को दिक़्क़त थी तो आपलोग अब तक चुप क्यों थे? सिर्फ़ धनी किसानों के लिए आपकी क़लम और टीवी चलेगी? जिन गरीब बिहार के किसानों के पास आवाज़ नहीं है, उनके लिए आप लोग आज तक क्यों नहीं बोले?
राजीव कुमार पांडे बोले- बिहार में मंडी लालू राज से खत्म हो रही है। नीतीश सरकार में सुशील मोदी जैसे ने कुछ नहीं किया (मंडी के लिए)। मोदी भी किसान को ज्यादा फायदा नहीं होने दे रहे हैं, क्योंकि कालाबाजारी और रख रखाव पर कुछ ठोस काम अभी तक नहीं कर पाए। लेकिन आप जैसे कम्युनिस्ट पार्टियों ने तो किसान और मजदूर का खेल खेला बिहार में इस सच को भी मान लेते तो अच्छा होता।