कोरोना के संकट काल में सरकारों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इस लिहाज से मद्रास हाईकोर्ट से लेकर आंध्र प्रदेश और गुजरात से लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट तक कोरोना संक्रमण, लॉकडाउन और प्रवासी मजदूरों की पीड़ा पर सरकारों से सख्त सवाल पूछ रही है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है। 400 प्रवासी मजदूरों की घर वापसी से जुड़े मुद्दे पर 15 मई को मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से सवालों की झड़ी लगा दी। महाराष्ट्र से तमिलनाडु लौट रहे करीब 400 प्रवासी मजदूरों को सीमा पर रोके जाने और उनकी सुरक्षित वापसी से जुड़ी याचिका पर कोर्ट ने सरकारों से 12 सवाल पूछे।

याचिका की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा, “पिछले एक महीने से मीडिया में दिखाए गए प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति को देखकर कोई भी अपने आँसुओं को नियंत्रित नहीं कर सकता है। यह एक मानवीय त्रासदी के अलावा कुछ नहीं है।” कोर्ट ने कहा कि सवाल यह है कि अबी कितने प्रवासी फंसे हुए हैं जो हाईवे पर चले जा रहे हैं? कोर्ट ने यह भी पूछा कि उन प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? कोर्ट ने इसका भी डेटा मांगा।

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उसी दिन, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने राज्य में फंसे प्रवासियों की सुरक्षा से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि प्रवासियों की दुर्दशा पर प्रतिक्रिया नहीं हुई तो यह (कोर्ट) “अपनी भूमिका में विफल हो जाएगी।” याचिका में कोर्ट से मामले में हस्तक्षेप देने की मांग की गई थी। इसके बाद अदालत ने प्रवासियों का पता लगाने और उनके लिए भोजन, आश्रय गृह और यात्रा व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए सरकार को कई दिशा-निर्देश दिए।

संयोग से, उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी संकट पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें फंसे प्रवासियों की पहचान करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार को दिशा-निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने तब टिप्पणी की थी कि जो लोग रेल पटरियों पर जा रहे हैं, उन्हें हम कैसे रोक सकते हैं? खंडपीठ ने ये भी कहा था कि यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वो हालात से कैसे निपटें?

हालांकि, इसी सप्ताह बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सभी जब्त निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) फ्रंटलाइन श्रमिकों तक तुरंत पहुंचें। उधर, मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि प्रवासी श्रमिक कैसे रेलवे स्टेशनों पर पहुँच सकें। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भी पश्चिम बंगाल सरकार को संकट से निपटने के प्रयासों पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

राजनीतिक मुद्दा बन चुकी श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों में घर लौटने के लिए टिकट देने वाले प्रवासियों का मुद्दा अभी भी कर्नाटक उच्च न्यायालय के रोस्टर पर है। 18 मई को मुख्य न्यायाधीश अभय ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से स्पष्ट करने को कहा कि टिकट के लिए कौन भुगतान कर रहा है।

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