1962 की भारत-चीन युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले ब्रिगेडियर एजेएस बहल का 82 साल की उम्र में सोमवार को निधन हो गया। उन्होंने हरियाणा में कमांड अस्पताल, चंडीमंदिर में अंतिम सांस ली। स्ट्रोक के बाद उन्हें एक सप्ताह पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके बहादुरी के किस्से आज भी लोग सुनाते हैं। दरअसल, वे बंदी के रूप में एक साल तक चीन की कैद में रहे थे। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी और अपने देश के प्रति समर्पित रहे।
दरअसल, वे उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। रिपोर्ट के अनुसार, बहल का अंतिम संस्कार बुधवार को चंडीगढ़ में किया जाएगा। बहल 1961 में भारतीय सेना में शामिल हुए थे। एक सूत्र ने कहा, ‘‘ब्रिगेडियर बहल 17 पैरा फील्ड रेजिमेंट में तोपखाना अधिकारी थे और उन्होंने 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में हिस्सा लिया था। अक्टूबर 1962 में एक युवा अधिकारी के रूप में वह 7 इन्फैंट्री ब्रिगेड का हिस्सा थे और नामका चू में चीनी सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़े थे।’’
बहल को उनके साथियों के साथ चीन ने बनाया था बंदी
सूत्रों के अनुसार 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान बहल को उनके साथियों के साथ बंदी बना लिया गया था। सूत्रों के मुताबिक, अगले साल उन्हें भारत वापस लाया गया और वे फिर से यूनिट में सेवा देने लगे। युद्ध में उनकी भूमिका का विवरण “1962: द वॉर दैट वाज नाट” किताब में दिया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, चीन से युद्ध के दौरान ब्रिगेडियर बहल और उनके सैनिक देर तक लड़ते रहे और पीछे नहीं हटे। लगभग 3.30 बजे वे चीनियों से घिर गए और उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। भारत आने से पहले पहले ब्रिगेडियर बहल अपनी कमान के तहत 38 लोगों और अपने सैन्य कमांडर के साथ एक साल तक तिब्बत में चीनी कैद में रहे। इसके तुरंत बाद वह अपनी बटालियन में फिर से शामिल हो गए।
ब्रिगेडियर बहल ने अपनी सेवा के दौरान, 1965 के कच्छ ऑपरेशन और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया। बहल अप्रैल 1995 में जम्मू कश्मीर के राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के उप महानिदेशक के पद से रिटायर हुए थे।
कई सालों बाद इतिहासकार क्लॉड अरपी को दिए एक इंटरव्यू में ब्रिगेडियर बहल ने कहा, “मैं चीन विरोधी था, हूं और रहूंगा क्योंकि मैं अनुभव से जानता हूं कि वे किसी भी समय हमारी पीठ में खंजर घोंप सकते हैं।”