झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इसमें सत्तापक्ष रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को करारा झटका लगा है। चुनाव में पार्टी सत्ता के साथ राज्य में सबसे बड़ी पार्टी का तमगा भी गंवा बैठी। सोमवार (23 दिसंबर, 2019) घोषित हुए नतीजों में भाजपा प्रदेश की 81 सीटों में से महज 25 सीटें जीत सकी, जबकि मुख्य विपक्षी दल जारखंड मुक्ता मोर्चा (JMM) ने 30 जीतीं। जेएमएम संग गठबंधन में लड़ रही कांग्रेस ने 16 और आरजेडी ने एक सीटों पर जीत दर्ज की है। चुनाव नतीजे के बाद अब महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी रही शिवसेना पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधा है।
शिवसेना के सामना में छपे संपादकीय में लिखा गया कि झारखंड भी भाजपा के हाथ से निकल गया। पार्टी महाराष्ट्र पहले ही गवां चुकी है। संपादकीय में लिखा गया, ‘प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल को वहां लगाने के बावजूद भाजपा झारखंड में नहीं जीत पाई। झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन अब मुख्यमंत्री बनेंगे। झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन को बहुमत मिला, ये स्पष्ट हो चुका है। इस गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिली हैं। कांग्रेस ने दो अंकों का आंकड़ा छू लिया है।
चुनाव बाद भाजपा पर तंज कसते हुए संपादकीय में लिखा गया कि चुनाव परिणाम भाजपा के धक्का देने वाला। भाजपा पहले कांग्रेस मुक्त भारत की घोषणा कर रही थी मगर अब कई राज्य भाजपा मुक्त हो गए। पार्टी एमपी और राजस्थान पहले ही गवां चुकी है।
संपादकीय में हरियाणा चुनाव परिणाम का उल्लेख करते हुए लिखा गया कि एक महीना पहले हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए, जहां कांग्रेस ने जोरदार जीत दर्ज की। प्रदेश में भाजपा की सत्ता जाने ही वाली थी मगर दुष्यंत सिंह का समर्थन लेकर जैसे-तैसे सत्ता बचा पाई।
लेख में गृहमंत्री अमित शाह को हिंदु-मुस्लिम में मतभेद पैदा करने वाले नेता करार दिया। इसमें लिखा गया, ‘झारखंड में मोदी और शाह ने सभाएं की। मोदी के नाम पर वोट मांगे। मगर गृहमंत्री अमित शाह की झारखंड में हुईं प्रचार सभाओं के भाषणों को जांचा जाए तो ये साफ होता है कि वहां सीधे-सीधे हिंदू-मुसलमान में मतभेद कराने की कोशिश थी। भाजपा को उम्मीद थी कि नागरिकता कानून की वजह से उसका मत प्रतिशत बढ़ेगा। मगर झारखंड की जनता ने इसे नकार दिया। झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है। आदिवासी समाज ने भाजपा को मतदान नहीं किया। वहां कड़ा मुकाबला हुआ। इस लड़ाई में यूपीए गठबंधन पास हो गया।’