Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा तेजी से बढ़ रहा है। चुनावी समर को लेकर एक कहावत चलती है कि यूपी से ही दिल्ली की सत्ता का रास्ता जाता है। पिछले हफ्ते जो इंडिया गठबंधन बिखरा हुआ प्रतीत हो रहा था, वो इस हफ्ते पूरे जोश में नजर आ रहा है। खास बात यह है कि इसकी वजह भी उत्तर प्रदेश ही है, क्योंकि इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) के लय पकड़ने की शुरुआत भी यूपी से ही हुई है। यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने ऐलान कर दिया कि यूपी में कांग्रेस और सपा पीडीए गठबंधन (PDA Alliance in UP) के तहत चुनाव लड़ेंगे। इसके साथ ही सीट शेयरिंग को लेकर भी सारा मामला सेट हो गया है। अब सवाल यह है कि क्या यह नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस-सपा का गठबंधन कारगर होगा भी या नहीं।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच हुए इस गठबंधन में सपा 62 सीटें मिली हैं और 17 सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं। वहीं भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद को भी एक सीट दी गई है। कांग्रेस को ऐसी कई सीटें दी गई हैं जहां वह 2014 के पहले कुछ संतोषजनक प्रदर्शन करती रही है, क्योंकि 2014 में तो कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी ही जीत पाई थी। खास बात यह है कि अमेठी भी 2019 में राहुल द्वारा गंवा दी गई थी। इस बार रायबरेली से सोनिया गांधी भी चुनाव नहीं लड़ने वाली हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इस रायबरेली सीट पर प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ सकती हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए सपा ने पहले की तरह इस बार भी रायबरेली और अमेठी छोड़ दी है।
सपा ने कई शहरी सीटें कांग्रेस को दी हैं, जिसमें वाराणसी से लेकर सहारनपुर, वाराणसी, अमरोहा झांसी, गाजियाबाद, मथुरा शामिल हैं। इन शहरों में पार्टी गर्त में होने के बावजूद आसानी से कद्दावर प्रत्याशी घोषित करने के लिए जानी जाती है। अब सवाल यह है कि यूपी में सपा कांग्रेस ने गठबंधन तो बना लिया है लेकिन क्या यह पीडीए अलायंस 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी या नरेंद्र मोदी को टक्कर दे पाएगा, या एक बार फिर यह केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएगा।
वोट प्रतिशत का जटिल है खेल
पिछले कुछ चुनावों की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे और बीजेपी ने अपना दल के साथ गठबंधन किया था। बीजेपी 80 में से 71 एनडीए के सात 73 सीटें हासिल करने में सफल रही थी। सपा ने परिवार की 5 सीटें निकाली थीं और कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी की सीटें अपने नाम की थी। इस चुनाव के दौरान बीजेपी का वोट प्रतिशत 42.3 , कांग्रसे का 7.5, सपा का 22.2 प्रतिशत और बीएसपी का 19.6 रहा था। इसके बाद बीजेपी के खिलाफ पहली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। इसमें बीजेपी को 39.7 प्रतिशत वोट मिले थे और सपा-कांग्रेस का वोट प्रतिशत 21.8 प्रतिशत रहा था।
2014 के मुकाबले 2017 में बीजेपी का वोट प्रतिशत गिरा था लेकिन उसका फायदा सपा-कांग्रेस नहीं उठा पाए थे। सपा कांग्रेस ने गठबंधन इसलिए किया था क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि सपा का लोकसभा का 22 फीसदी और कांग्रेस का लगभग 8 फीसदी वोट मिलकर इतना कारगर तो हो जाएगा कि बीजेपी की हवा को रोक सके लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दोनों मिलकर लड़े और जुड़ने की बजाए यह गए। 28-29 प्रतिशत की उम्मीद लिए अलायंस 21 प्रतिशत पर गिर गया। दूसरी ओर बसपा का वोट प्रतिशत 19 से 22 तक चला गया था
पहले खिलाफत फिर गठबंधन, जनता कन्फ्यूज
खास बात यह है कि 2017 सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन से पहले कांग्रेस ने 27 साल यूपी बेहाल नाम की यात्रा निकाली थी, जिसे राहुल गांधी ही लीड कर रहे थे। इसके बाद जब कांग्रेस को अपने गिरने का आभास हो गया तो उसने साइकिल का दामन थाम लिया था। इसके बावजूद कोई नतीजा न आने पर यह सवाल उठे थे कि क्या सपा प्रत्याशियों को कांग्रेस के कोर वोटर्स ने वोट भी किया है या नहीं, क्योंकि बीजेपी सपा कांग्रेस सबका वोट प्रतिशत गिरा था और बीएसपी आगे निकल गई थी।
जमीन पर जब कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से बात की गई तो उनमें भी गठबंधन को लेकर असंतोष था और दबे मुंह यह तक कहा गया था कि वे बसपा या बीजेपी को वोट कर देंगे लेकिन अगर उनकी सीट पर कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं होगा, तो वे सपा के प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे। पहले कांग्रेस ने अखिलेश सरकार के खिलाफ यात्रा निकाली और फिर चंद दिनों बाद सपा के ही ही प्रत्याशियों के वोट मांगा। इस संशय ने सपा कांग्रेस गठबंधन की लुटिया डुबो दी थी। पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी नतीजे आने के बाद कांग्रेस को खरी खोटी सुनाई थी कि कांग्रेस पार्टी का वोट उन्हें ट्रांसफर नहीं हुआ बल्कि कांग्रेस प्रत्याशियों को सपा समर्थकों ने मुश्किल के बावजूद टक्कर देने की स्थिति में लाकर खड़ा किया था।
बीजेपी को सपा-बसपा से ज्यादा खतरा
सपा-कांग्रेस के बीच 2017 में हुआ गठबंधन एक फ्लॉप था। वहीं बीजेपी को सबसे बड़ा झटका 2019 के लोकसभा चुनावों में लगा था और क्योंकि इस बार बीजेपी के सामने सपां कांग्रेस की एकजुटता नहीं बल्कि सपा बसपा का चक्रव्यूह था। हालांकि बीजेपी ने उसे 75 फीसदी के ग्रेड से पास कर लिया लेकिन पार्टी को खूब मेहनत करनी पड़ी थी। एनडीए का आंकड़ा सपा-बसपा की एकता के चलते ही 73 से 62 पर आ गया था। दूसरी ओर जो बसपा 2014 में शून्य पर थी, उसे 10 सीटों की संजीवनी मिल गई थी। सपा को भी 5 सीटें मिली थी। बीजेपी का वोट प्रतिशत हालांकि 49 प्रतिशत से ज्यादा का था।
साफ था कि अगर सपा बसपा एक साथ लंबे समय तक होते तो यूपी में बीजेपी की मुसीबतें 2022 लोकसभा चुनाव में बढ़ जातीं। सपा ने अकेले लड़कर बीजेपी को 270 से नीचे ला दिया था। 2022 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी को 42 प्रतिशत वोट मिला था और सपा को 32 प्रतिशत, बसपा को 12 और कांग्रेस को महज दो प्रतिशत वोट ही मिला था। ध्यान देने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ता है और विधानसभा में क्षेत्रीय दलों को भी महत्व दिया जाता रहा है।
बीजेपी का कैसे होगा मुकाबला?
ऐसे में राम मंदिर से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर बीजेपी की लहर चल रही है, तो माना जा रहा है कि यूपी में बीजेपी इस बार ज्यादा जोर लगाएगी क्योंकि उसका टारगेट ही 2014 के लोकसभा चुनाव के एनडीए के 73 सीटों के मार्क को पार करना है। बीजेपी 50 प्रतिशत से ज्यादा के के वोट प्रतिशथ को टारगेट कर रही है, जिससे विपक्षी दलों के पास स्कोप ही न रह जाए। दूसरी ओर भले ही कांग्रेस को सपा ने लोकसभा की 17 सीटें दे दी हों लेकिन इस बात में अभी भी संशय है कि अमेठी में राहुल गांधी इस बार पुश्तैनी सीट पर केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी के खिलाफ मैदान में उतरेंगे या नहीं। इसके अलावा सोनिया गांधी भी यूपी छोड़ राजस्थान से राज्यसभा चली गई हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा के रायबरेली से लड़ने को लेकर भी कांग्रेस अभी कोई ऐलान करने के कॉन्फिडेंस में नहीं दिख रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अगर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के गढ़ में बीजेपी को टक्कर नहीं देगी तो फिर वह कैसे दिल्ली की सत्ता में काबिज होने के पात्रता को पूरा कर पाएगी।
PDA पर बस सवाल, सवाल और सवाल!
फिलहाल सपा और कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाने के लिए तैयारी कर रही हैं लेकिन कांग्रेस के लिए एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या वह सपा से गठबंधन करने के बाद यूपी में अपनी सक्रियता कम कर देगी और अखिलेश यादव के भरोसे ही यूपी को छोड़ तो नहीं देगी। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस का बचा हुआ 2-4 प्रतिशत वोट बैंक इस बार सपा के प्रत्याशियों को ट्रांसफर होगा भी है या नहीं। इन सारे सवालों के बीच देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूपी में 2017 की तरह ही सपा कांग्रेस गठबंधन फ्लॉप होता है या फिर 2024 में देश की नई सियासी लकीर खिचेगी।