नेताजी इतने रोबदार थे कि घोड़ी की टांग ने डर कर खुद माना कि टांग तोड़ी नहीं गई। अपने आप टूट गई।
कारण कि लाठी थी, नेता था और लाठी सिर्फ फटकारी गई कि घोड़ी की टांग टूट गई! इसमें न लाठी का कसूर, न नेता का कसूर कि उसने तोड़ क्यों ली? घोड़ी की टांग इतनी नाजुक क्यों थी? इसकी जांच जरूरी है।
जाहिर है कि गलती घोड़ी की रही। क्यों दौड़ी उन कार्यकर्ताओं पर? कार्यकर्ता का सिर टापों से तोड़ोगी को नेताजी को क्या दुलार आएगा। ले पुलिस की लाठी और कर दिए ठांय ठांय चार-पांच बार। मारी तो सड़क पर थी, टूट गई उसकी टांग तो उनका क्या दोष!
टूटी टांग के टूटने के तीन कारण बताए गए: नेताजी के डर से डरी कायर घोड़ी पीछे हटी, गड््ढे में पैर दे दिया और टूट गया। दूसरा कारण गड्ढे में नहीं, जाल में पैर दे दिया, तोड़ लिया! अंतिम कारण कि दुश्मन नेताजी को फंसाना चाहते हैं! निदान: उस घोड़ी को सजा दी जाए, जो उनको फंसाने का षड्यंत्र रच रही है।

घोड़ी के प्रति हर एंकर, हर रिपोर्टर की हमदर्दी थी, लेकिन नेताजी कहते रहे कि उनने नहीं तोड़ी! लाख वाइरल हो घोड़ी का दर्द। टांग टूटनी थी तो टूटनी थी। भाजपा के प्रवक्ता प्रवर कह ही चुके थे कि जरा-सी रैली के लिए घुड़सवार क्यों लगाए? घोड़ी का दुश्मन सच इतना मक्कार था कि कान में कहने लगा कि क्या पता टूटी भी कि नहीं, सब मीडिया की बदमाशी रही!
क्या कर लेगा ‘पेटा’? क्या कर लेंगे पशु पे्रमी!

‘भारत माता की जय’ को लेकर सबसे बेहतरीन टीका एबीपी चैनल पर आई। यहां नेहरू की ‘भारत एक खोज’ पर बनाए बेनेगल के सीरियल का वह टुकड़ा दिखाया गया, जिसमें नेहरू के नेतृत्व में कुछ स्वतंत्रता संग्रामियों के एक प्रदर्शन को लीड करते दिखते हैं। लोग ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए एक जनसभा करते होते हैं, जिसमें नेहरूजी पूछते हैं कि तुम लोग जिस भारत माता की जय बोल रहे हो वह कौन है? कहां रहती है? क्या तुम जानते हो? लोग चुप और चकित होकर उनका मुंह ताकने लगते हैं। तब एक सहमा-सा आदमी कहता है कि ये धरती हमारी भारत माता है! नेहरू उसे प्रेरित कर आगे पूछते हैं और बताते चलते हैं कि यह गांव इसकी धरती सारे हिंदुस्तान की धरती, पेड़, पशु, पक्षी, नदी, पहाड़, मैदान, वन और सबसे ऊपर इसमें रहने वाले लोग-ये सब मिलकर भारत माता हैं और हम उन्हीं की जय बोलते हैं, जो हमें पालती है, हमारी हिफाजत करती है। इस एक टुकड़े में जितनी व्याख्या आ गई उतनी दस चैनलों की बकवासी बहसों में नहीं आ पाई।

चैनल भी क्या करें? वे उत्तेजक बात को लपकने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। इधर भागवतजी ने ‘भारत माता की जय’ की बात कही, उधर असदुद्दीन ओवैसी उसे पर्सनली ले बैठे, मानो उन्हीं को कहा गया है। प्रतिक्रिया में उनने अपनी गर्दन तान कर एक जनसभा में दहाड़ दिया: मोहन भागवत साहेब! मैं भारत माता की जय नहीं कहता, क्या करते आप? सामने की भीड़ इस ताल ठोंकू बहादुरी को सुनते ही बावली हो गई और सीटी, ताली बजाने लगी। ताली देख कर वे और दहाड़े कि ‘गर्दन पर छुरी रख कर बोलने को कहोगे तो भी नहीं बोलने का’ तो और ताली… और एक मुद्दा खड़ा हो गया!

उसके बाद भारत ‘माता की जय’ बुलवाने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र ने ले ली। उसकी बात विधानसभा में की गई और वारिस पठान को, ओवैसी की लाइन पर नहीं, उनकी ‘अभद्र भाषा’ के इस्तेमाल पर पूरे सत्र से ही निकाल दिया। इस पर फिर हर जगह बहस। एक ओर वारिस पठान, दूसरी ओर प्रेम शुक्ला। इसके बाद भारत माता की जय बुलवाना इस कदर जरूरी हो गया कि उसकी खातिर हर चैनल पर रात तक राष्टÑीय प्रवक्ता तक आ जुटे! एक ओर ओवैसी या कुछ मौलवीनुमा लोग और दूसरी ओर भारत माता की जय लगाने वाले लोग। कितना आसान हो गया धु्रवीकरण!

इस सारी बहसाबहसी में सबसे बेहतरीन हस्तक्षेप रहा तो जावेद अख्तर का, जिनने अपनी राज्यसभा सदस्यता के आखिर में कुछ ही मिनटों में औवैसी साहब को यह कह कर ढेर कर दिया कि अगर संविधान में भारत माता की जय बोलना नहीं लिखा है, तो शेरवानी और टोपी पहनना भी कहां लिखा है, और भारत माता की जय बोलना मेरा कर्तव्य ही नहीं, मेरा अधिकार भी है… लेकिन भारत माता की जय बोलने से भी बड़े मुद्दे सामने हैं…

चैनलों के लिए तो वे मुद्दे ही बिकाऊ हैं, जो उलझाऊ हैं। चैनल सुलझाऊ हुए तो उनको कौन पूछेगा? ‘दुनिया का सबसे बड़ा डाटा बेस’ यानी ‘आधार कार्ड’ को अंतत: आधार मिल गया, फाइनेंस बिल की तरह आखिरकार पास हो गया। दो पाटन के बीच में मात्र आधार कार्ड रहा, जो साबुत बच गया, वरना जब आया तो भाजपा ने पीटा अब भाजपा लाई तो कांगे्रस खुद पीटने लगी।
हमारी सकल राजनीति का सार इतना भर है: तूने मुझे श्रेय न लेने दिया तो मैं तुझे कैसे लेने दूं?

जनेवि के क्या कहने! राजदीप ने जनेवि के गुरुजी को बुलाया तो इसलिए था कि विश्वविद्यालय की रपट पर चर्चा करेंगे, लेकिन गुरुजी ने पहले ही राउंड में कह डाला कि देशद्रोह के नारे लगाने वाले प्लांटेड थे! जब पूछा कि सभा के आयोजक छात्र तो पहचान लेंगे कि वे कौन थे? तो गुरुजी बोल गए: वे पहचान नहीं सकते! गुरु हो तो ऐसा कि चेले को हर हाल में बचाए, चेला हो तो ऐसा जो बात-बात पर क्रांति क्रांति चिल्लाए!
नारदजी का कैमरा वर्क इतना खराब था कि उनको नौकरी से निकाल दिया जा सकता है। एकदम धुंधला ‘स्टिंग’ और टाइमिंग भी इतनी खराब कि दो साल बाद रील को हवा लगाई। नारदजी स्टिंग की थियरी समझ लीजिए: स्टिंग की टाइमिंग में ही स्टिंग की जान है। जरा-सी गलत टाइमिंग हुई कि स्टिंग पर खुद ‘काउंटर स्टिंग’ बनी! स्टिंग भी इस कदर दो कौड़ी का था कि कुछ भी एकदम साफ नहीं था। नीम अंधेरे में जिनको लेना था, वे लेते दिखते थे, जिनको देना था उनके चेहरे तक नहीं दिखते थे!

पैसे क्या भूत दे रहे थे और भूत ले रहे थे? पैकेज और बहसों के आखिर में टीएमसी के प्रवक्ता ने दहाड़ कर विवाद का समाहार किया कि ममता दीदी की छवि सीपीएम कांग्रेसी के मेनुफैक्चर्ड आरोप कुछ नहीं बिगाड़ सकते! लीजिए जाट बंधुआें ने अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर उनकी बात न मानी गई तो आंदोलन तेज करेंगे। मंत्रीजी कह रहे थे कि जाट धमकी देना बंद करें। मंत्रीजी, जाट जब बंद करते हैं तो सरकार तक बंद हो जाती है! उनकी धमकी पर आप क्यों धमकी की भाषा बोल रहे हैं?