प्रवर्तन निदेशालय के फरमान पर अरविंद केजरीवाल के हाजिर न होने को लेकर स्वाभाविक ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने शराब घोटाला मामले में पूछताछ के लिए गुरुवार को उन्हें बुलाया था। मगर वहां जाने के बजाय एक पत्र लिख कर उन्होंने पूछा कि उन्हें किस हैसियत से बुलाया गया है।
पत्र में न तो उन पर कोई आरोप स्पष्ट है और न यह बताया गया है कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर तलब किया गया है, मुख्यमंत्री के तौर पर या गवाह के रूप में। केजरीवाल ने प्रवर्तन निदेशालय के फरमान को राजनीति से प्रेरित और गैरकानून करार दे दिया। पूछा जा रहा है कि अब प्रवर्तन निदेशालय उनके खिलाफ क्या कार्रवाई कर सकता है।
दरअसल, जैसे ही प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल को नोटिस भेजा, वैसे ही तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे थे। भाजपा के नेता दावे करने लगे थे कि अब केजरीवाल भी गिरफ्तार होंगे। उधर आम आदमी पार्टी के नेता भी ऐसी ही आशंकाएं व्यक्त करने लगे थे। इसे लेकर सदा की तरह आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार पर हमले करती रही। मगर इन सब सियासी पैंतरों और बयानबाजियों के बीच यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने और खुद को कट्टर ईमानदार पार्टी बताने वाली आम आदमी पार्टी के संयोजक ने इस जांच से खुद को दूर रखने का फैसला क्यों किया।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रवर्तन निदेशालय के कामकाज के तरीके को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय भी कड़े शब्दों में उसके अधिकार क्षेत्र को रेखांकित कर चुका है। निदेशालय के ज्यादातर छापे और गिरफ्तारियां या पूछताछ की कार्रवाइयां विपक्षी नेताओं के खिलाफ ही हुई हैं, इसलिए भी उसकी मंशा पर सवाल गहरे हुए हैं।
मगर इसका मतलब यह नहीं कि खुद को ईमानदार बताने वाले केजरीवाल भी उन्हीं आरोपों की आड़ में पूछताछ से बचने का प्रयास करें। उनसे लोगों की स्वाभाविक उम्मीद थी कि वे प्रवर्तन निदेशालय के सामने अपना पक्ष रखेंगे और बेदाग बाहर निकलेंगे। मगर ऐसा न करके वे कई उलझे सवाल छोड़ गए हैं। कानूनी कार्रवाइयों को कानूनी दांव-पेंच से ही निपटाया जा सकता है, उसमें सियासत ले आना ठीक नहीं कहा जा सकता।
यों वे पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं, जिन्होंने प्रवर्तन निदेशालय के फरमान की अवहेलना करते हुए पूछताछ में सहयोग न करने का फैसला किया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय पांच बार नोटिस भेज चुका है, मगर वे पूछताछ के लिए हाजिर नहीं हुए हैं।
हालांकि इस आशंका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि अगर अरविंद केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय जाते, तो उन्हें भी गिरफ्तार किया जा सकता था। पहले ही उनके दो बड़े नेताओं- उपमुख्यमंत्री रहते मनीष सिसोदिया को और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को इसी मामले में सलाखों के पीछे भेजा जा चुका है।
पिछले दिनों जिस तरह कहा गया कि शराब घोटाले में अगर लाभ पूरी पार्टी को मिला है, तो पूरी पार्टी को आरोपी बनाया जाना चाहिए। उससे भी साफ हो गया था कि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय आम आदमी पार्टी के किसी भी नेता को पूछताछ के लिए बुला और फिर गिरफ्तार कर सकती है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का मतलब है कि पूरी पार्टी और दिल्ली सरकार अशक्त हो जाएगी। मगर केवल ऐसे कयासों के आधार पर किसी को कानून के साथ सहयोग न करने की छूट नहीं मिल जाती।
