जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सैन्य शिविर पर आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना के देश की सीमा से सटे पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके में सर्जिकल स्ट्राइक और कई आतंकवादियों को मार गिराने की खबर आई। इसने सबके भीतर यह राहत और गर्व का भाव भरा कि अगर आतंकवादी हमारे जवानों पर निशाना साधते हैं तो उन्हें करारा जवाब दिया जाएगा। लेकिन अफसोस की बात है कि अलग-अलग राजनीतिक दलों ने अपने पक्ष में इसका सियासी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और फिर गृहमंत्री और वित्तमंत्री रह चुके कांग्रेस नेता पी चिदंबरम जैसे नेता ने सर्जिकल स्ट्राइक की विश्वसनीयता पर सवाल उठा कर पाकिस्तान को राहत पहुंचाई और इस मसले पर देश भर में बन रही एकता को खंडित करने की कोशिश की।

लेकिन इस मसले पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस भाषा में अपनी राय जाहिर की, वह न केवल भारतीय सेना के प्रति असम्मान था, बल्कि एक राष्ट्रीय पार्टी के शीर्ष नेता के रूप में खुद उनकी गरिमा को भी कम करता था। भले सत्ताधारी दल भाजपा से उनके तीखे मतभेद हों, लेकिन भारतीय सेना किसी राजनीतिक दल से निरपेक्ष रह कर देश की रक्षा के लिए अपना जीवन हर वक्त दांव पर लगाए रखती है। उसकी किसी कार्रवाई पर राय जाहिर करने के क्रम में न केवल भाजपा, बल्कि किसी भी दल के लिए ‘दलाली’ जैसे शब्द का प्रयोग करने को किस आधार पर उचित ठहराया जा सकता है? जब राहुल गांधी के बयान ने तूल पकड़ा तो उन्होंने सफाई दी कि वे साफतौर पर सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हैं, लेकिन भाजपा के चुनावी पोस्टरों और प्रचार में सेना के इस्तेमाल के खिलाफ हैं। उनकी इन बातों से शायद किसी को आपत्ति नहीं होगी। मगर समूचे देश के लिए एक संवेदनशील मसले पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए उन्होंने अपने आग्रहों के मुताबिक शब्दों का प्रयोग क्यों किया?

दरअसल, मुश्किल यह है कि कुछ पार्टियां शायद अपनी राजनीति और राष्ट्रीय हित के सवाल में फर्क नहीं कर पातीं। समूचे देश के सम्मान से जुड़े घटनाक्रमों का श्रेय लेने के क्रम में उन्हें यह भी याद नहीं रहता कि कैसे वे दुश्मन पक्ष के लिए हथियार के तौर पर काम करने लगती हैं। पिछले कुछ दिनों में अरविंद केजरीवाल, पी चिदंबरम और राहुल गांधी जैसे कुछ नेताओं के बयानों ने दुनिया भर में अलग-थलग पड़ते पाकिस्तान के लिए ऐसी ही राहत पहुंचाई। दूसरी ओर, भाजपा ने जिस तरह सर्जिकल स्ट्राइक के लिए अपने नेताओं का अभिनंदन और पोस्टरों में उनकी तस्वीरों के जरिए प्रचार अभियान छेड़ दिया है, वह भी सेना की कामयाबी को अपने नाम पर भुनाने जैसा है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तो यहां तक कह दिया कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भाजपा सेना का हौसला बढ़ाने का मुद्दा जनता के बीच लेकर जाएगी। भारतीय सेना पहले ही अपने भरोसे और पूरी क्षमता से लैस है। इसके लिए उसे किसी राजनीतिक खेमेबाजी के हौसले की जरूरत नहीं है। अगर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता इस ओर बढ़ती है तो इसका आखिरी नुकसान भारतीय सेना की छवि को होगा। इसलिए जरूरत इस बात की है कि सभी दलों के नेता अपने बोल और राजनीति में संयम से काम लें, ताकि दुनिया भर में इस राष्ट्रीय सवाल पर देश के एकजुट होने का संदेश जाए।