लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी को मौलिक अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है, जो हर नागरिक को बिना किसी दबाव और भेदभाव के अपनी राय एवं विचार व्यक्त करने की अनुमति देता है। इसमें बोलना, लिखना, कलाकारी और इंटरनेट का उपयोग करना जैसे विभिन्न रूप शामिल हैं। हालांकि, यह अधिकार असीमित नहीं है और दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करने, भेदभाव तथा हिंसा या नफरत को बढ़ावा देने जैसी गतिविधियों की सूरत में यह कानूनी तौर पर बंदिश के दायरे में आ सकता है। नेपाल में जो जन आक्रोश फूटा है, वह सोशल मीडिया पर पाबंदी और उससे अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होने से ही प्रेरित है।

वहां सड़कों पर लोगों के गुस्से की आग इस कदर भड़की कि इसकी लपटें प्रधानमंत्री आवास तथा राष्ट्रपति भवन और संसद भवन तक जा पहुंची। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच हिंसक झड़पों में कई लोगों की जान भी चली गई। सवाल है कि आखिर नेपाल में ऐसे हालात क्यों बनने दिए गए? समय रहते प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर उन्हें विश्वास में लेने के प्रभावी प्रयास क्यों नहीं किए गए?

वैसे यह पहली बार नहीं है, जब किसी देश ने सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाई हो। इससे पहले भी कई देश ऐसा कर चुके हैं, भले ही कारण अलग-अलग रहे हों। वर्ष 2009 में चीन के शिनजियांग प्रांत में हुए दंगों के बाद वहां की सरकार ने फेसबुक, एक्स और गूगल जैसे मंचों पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि देश में सोशल मीडिया और इंटरनेट पर सरकार विरोधी सामग्री के प्रसार पर रोक लगाई जा सके।

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ईरान में भी वर्ष 2009 से सोशल मीडिया मंचों पर पाबंदी लगी है। इसी तरह तुर्किये ने भी वर्ष 2014 में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई और सुरक्षा के नाम पर सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि वर्ष 2016 में लोगों के विरोध के कारण यह पाबंदी हटानी पड़ी। मिस्र में वर्ष 2011 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए, जिसके बाद यहां सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यहीं नहीं पाकिस्तान में भी इस तरह के आंशिक प्रयास होते रहे हैं।

इसमें दोराय नहीं कि सोशल मीडिया पर बिना किसी ठोस वजह से पूर्ण पाबंदी लगाने से अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होती है। साथ ही आमजन के हितों पर भी गहरा असर पड़ता है। आज के दौर में सोशल मीडिया न केवल सूचना के प्रसार का एक बड़ा माध्यम बन गया है, बल्कि कुछ लोगों की आजीविका भी इस पर निर्भर करती है।

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मसलन, सोशल मीडिया पर विभिन्न तरह के वीडियो डालने और उनसे होने वाली कमाई। बढ़ती बेरोजगारी की वजह से कई लोगों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है। ऐसे में अगर सरकार अचानक सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दें, तो जन आक्रोश की लहर उठना स्वाभाविक है। यह बात भी सच है कि सोशल मीडिया पर अनुचित सामग्री का दायरा बढ़ रहा है, इसलिए इसे विनियमित किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है।

मगर, इस पहलू पर गौर करना भी जरूरी है कि कुछ लोगों की गलतियों का खमियाजा सभी को न भुगतना पड़े। नेपाल में भी संभवत: ऐसा ही हुआ है। जब युवाओं के विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया तो सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटा दिया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। अगर समय रहते हालात को संभालने के प्रयास किए गए होते, तो सरकारी संपत्ति और जानी नुकसान से बचा जा सकता था।