देश की अदालतें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के कामकाज की शैली पर अक्सर सवाल उठाती रही हैं। खुद सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे कई बार सवालों के कठघरे में खड़ा किया और कहा कि इसकी नकारात्मक छवि बन रही है। मगर राजनीतिक दलों के तमाम आरोपों और अदालतों की कड़ी टिप्पणियों के बावजूद प्रवर्तन निदेशालय की कार्यशैली में कोई खास बदलाव नहीं आया। नतीजा यह कि मंगलवार को उसके कामकाज पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा, जब नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली की एक अदालत ने गांधी परिवार के खिलाफ आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया।

विशेष न्यायाधीश को यह कहना पड़ा कि इस मामले में दाखिल आरोपपत्र एक व्यक्ति की निजी शिकायत पर आधारित है, न कि किसी मूल अपराध से संबंधित प्राथमिकी पर। इसलिए इस पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता। ऐसे में गुण-दोष के आधार पर ईडी के तर्कों पर विचार करना जल्दबाजी होगी। हालांकि अदालत के इस रुख के बाद ईडी ने आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की बात कही है, लेकिन सवाल है कि उसकी साख को लेकर अविश्वसनीयता की नौबत क्यों आई।

गौरतलब है कि नेशनल हेराल्ड का मामला लंबे समय से विवादों में है। ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं तथा एक निजी कंपनी ‘यंग इंडियन’ पर आपराधिक साजिश एवं धनशोधन का आरोप लगाया था। हैरत की बात है कि महज एक शिकायत पर आरोपपत्र तैयार किया गया, जबकि इस संबंध में ईडी के पास असल में कोई प्राथमिकी नहीं थी।

हालांकि इस मामले में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा अब प्राथमिकी दर्ज कर चुकी है, जिसके समय को लेकर भी सवाल उठे हैं। दरअसल, ईडी पिछले करीब एक दशक से इस मामले को खींच रही है। वह कांग्रेस नेताओं को कई बार बुला कर पूछताछ भी कर चुकी है। राजनीतिक गलियारों में इसे एक मुद्दा भी बनाया गया, लेकिन अब तक जांच का सिरा किसी अंजाम तक नहीं पहुंचा।

अदालत ने कानूनी प्रक्रिया को लेकर अब जो सवाल उठाए हैं, उसके बाद एक बार फिर ईडी को अपनी साख और छवि बचाने के लिए नए सिरे से कवायद करनी होगी।