देश में कोरोना संक्रमितों के ठीक होने की बढ़ती दर राहत देने वाली है। जाहिर है, ज्यादातर लोग जिनमें संक्रमण ने घातक रूप नहीं लिया, वे स्वस्थ होकर घर लौट रहे हैं। ताजा आंकड़ा बता रहा है कि एक दिन में करीब साठ हजार मरीज ठीक हुए हैं और सुधार की दर बहत्तर फीसद तक आ गई है। लेकिन संक्रमितों की संख्या का बढ़ना अब भी जारी है, जो कि चिंता का विषय है। कई राज्यों में तो कोरोना संक्रमण भयावह रूप ले चुका है और मरीजों की बढ़ती संख्या इसकी पुष्टि कर रही है।
उत्तर प्रदेश में एक पखवाड़े में सरकार के दो मंत्रियों चेतन चौहान और कमला रानी वरुण की कोरोना से मौत हो गई। प्रदेश के कई और मंत्री भी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं, पर समय रहते पता चल जाने और उचित चिकित्सा मिल जाने से ठीक हो गए। हालांकि यह बात हैरानी पैदा करती है कि जो लोग कड़ी सुरक्षा और बचाव में रह रहे हैं, वे आखिर संक्रमित कैसे हो जा रहे हैं, जबकि इन दिनों आमजन से जनप्रतिनिधियों की मुलाकातों का सिलसिला तो बंद ही है। वैसे जिस तरह की खबरें और आंकड़े आ रहे हैं, उससे तो लगता है कि उत्तर प्रदेश में हालात अच्छे नहीं है और दूसरे राज्यों की तरह यहां भी संक्रमण जोरों पर है। लखनऊ में अब तक करीब सात हजार संक्रमित पाए जा चुके हैं। ऐसे में प्रदेश के दूसरे जिलों में क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
भारत में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा छब्बीस लाख को पार कर गया है। हर दूसरे दिन एक-सवा लाख इसमें जुड़ते जा रहे हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, बिहार और पश्चिम बंगाल देश के उन शीर्ष राज्यों में हैं जहां हालात सबसे ज्यादा विकट रूप ले चुके हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश की आबादी इन राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है, लेकिन उस अनुपात में चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। यही वजह है कि अभी जितने कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं, उनके लिए अस्पताल कम पड़ रहे हैं।
आइसीयू तो वीआइपी और गंभीर मरीजों से पहले से भरे पड़े हैं। ऐसे में आम लोगों का कैसे इलाज हो, यह बड़ी समस्या है। जिलों में बड़ी मुश्किल यह खड़ी हो रही है कि कोरोना से निपटने में लगे चिकित्सा और जांच कर्मी खुद ही संक्रमण के शिकार होते जा रहे हैं और इस कारण कई जगहों पर कोरोना के मरीजों को भर्ती तक नहीं किया जा रहा। राज्यों में स्थिति यह हो गई है कि सरकारें दावे तो कुछ रही हैं, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और सामने आ रही है। ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। ग्रामीण आबादी का अधिसंख्य हिस्सा घोर आर्थिक सकंट में है और वह इलाज के लिए अपने इलाके के जिला अस्पताल तक भी नहीं पहुंच पा रहा। सरकारी तंत्र इतना मजबूत है नहीं कि गांव-गांव जाकर लोगों की कोरोना जांच कर सके।
कोरोना से निपटने के लिए सारी उम्मीदें इसके विकसित होने वाले टीके पर ही हैं। भारत में तीन टीकों पर तेजी से काम चल रहा है। एक टीका- कोवैक्सीन जिसे आइसीएमआर और भारत बायोटेक ने मिल कर तैयार किया है, मानव पर पहले चरण के परीक्षण में खरा उतरा है। इसी तरह पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने भी ऑक्सफोर्ड में तैयार टीके का मानव परीक्षण शुरू कर दिया है। कुछ दिन पहले रूस ने कोरोना से बचाव के लिए दुनिया का पहला टीका बना लेने दावा किया और अब ऐसा ही दावा चीन की तरफ से आया है। टीके आएंगे, तब आएंगे, लेकिन तब तक भारत के राज्यों में हालात कैसे काबू में आए, यह बड़ी चुनौती सामने है।