पंजाब की संगरूर जेल में कैदियों के बीच खूनी संघर्ष में दो की मौत से एक बार फिर जेलों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। शुक्रवार की रात को कुछ कैदियों ने दो कैदियों पर हमला कर उन्हें धारदार हथियार से मार डाला। जेल प्रशासन का कहना है कि जिन कैदियों के बीच हिंसक झड़प हुई, उनका किसी आपराधिक गिरोह से संबंध नहीं था। उनके बीच आपसी रंजिश थी, जो खूनी संघर्ष में परिणत हो गई। यानी इस बात की जानकारी जेल प्रशासन को थी कि कुछ कैदियों में कहासुनी की वजह से तनाव बना हुआ था।

अब बंदियों के पास कई प्रतिबंधित चीजें पहुंच रही हैं!

विचित्र है कि प्रशासन ने उस विवाद को सुलझाने का प्रयास नहीं किया। खुद पुलिस महानिरीक्षक ने माना है कि अगर समय रहते इस विवाद को सुलझा लिया गया होता, तो दो कैदियों की मौत नहीं होती। इस घटना के बाद भी फिर वही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कैदियों को धारदार चीजें कैसे हाथ लग गईं, जिससे उन्होंने दो कैदियों की जान ले ली, जबकि जेलों में ऐसी हर चीज को बंदियों से दूर रखा जाता है, जिनसे वे किसी पर हमला या खुदकुशी कर सकते हों।

कई जेलें अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुकी हैं

पंजाब की जेलों में कैदियों के रखरखाव को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। कई लोग तो यहां तक कह चुके हैं कि वहां की कई जेलें अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुकी हैं। संगरूर जेल पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं। कुछ साल पहले वहां से एक कुख्यात गिरोह के अपराधी के अपने जन्मदिन पर केक काटने और उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालने के बाद तो खासा विवाद हुआ था। ऐसे ही मामले बठिंडा, कपूरथला और पटियाला की जेलों से भी दर्ज हुए थे, जब अपराधियों को सोशल मीडिया पर सक्रिय देखा या फोन पर बाहर के लागों से बात करते, किसी साजिश को अंजाम देते पाया गया।

हालांकि जेल में कैदियों के बीच हिंसक झड़प का मामला केवल पंजाब तक सीमित नहीं है। दिल्ली की अति सुरक्षित और चाकचौबंद मानी जाने वाली तिहाड़ जेल में भी ऐसी कई घटनाएं हाल के कुछ महीनों में देखी जा चुकी हैं। तिहाड़ में तो कुख्यात आपराधिक गिरोहों के बीच खूनी संघर्ष देखा गया। ऐसी घटनाएं होने की खबरें देश के दूसरे प्रदेशों की जेलों से भी आ जाती हैं।

पठानकोट सैन्य अड्डे पर हुए आतंकी हमले के बाद तो सेना ने भी अपनी जांच के बाद चिंता जताई थी कि पंजाब की जेलों में बैठे अपराधी बाहरी लोगों से संपर्क में रहते और मादक पदार्थों की तस्करी आदि में संलिप्त हैं। तब सभी जेलों में औंचक निरीक्षण किया और जेलों के प्रशासन को मुस्तैद रहने को कहा गया था। मगर स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं देखा गया। आरोप लगते रहे हैं कि जेलों के प्रशासन से जुड़े लोग ही अपराधियों को मोबाइल फोन आदि उपलब्ध कराते हैं।

जेलों को एक प्रकार के सुधारगृह के रूप में विकसित करने पर जोर दिया जाता रहा है, ताकि अपराधियों को गलत रास्ते से निकाल कर सही रास्ते पर लाया जा सके। मगर जेलें अगर यातनागृह और दबंग अपराधियों की सुरक्षित शरणस्थली का रूप लेती जा रही हैं, तो यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। जेल प्रशासन और अपराधियों के बीच अगर किसी तरह का गठजोड़ बनता है, तो यह ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।