इन दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मी है। हर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में जुटा है। इसी बीच कथित शराब घोटाले को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रपट पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार कहती रही कि यह रपट दुराग्रहपूर्वक तैयार की गई है। ऐन चुनाव के वक्त इस रपट के आने का मकसद समझा जा सकता है। यह भी कहा गया कि रपट कैग ने नहीं, बल्कि केंद्र सरकार ने तैयार कराई है।

उस रपट को कायदे से विधानसभा के समक्ष पेश किया जाना चाहिए था, मगर वह जारी होने से पहले ही भाजपा नेताओं के हाथ में पहुंच गई। इससे संदेह गहरा होता है। मगर भाजपा ने इसे अदालत में चुनौती दे दी। इस पर उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है कि कैग की रपट को विधानसभा के पटल पर रखने और उस पर बहस कराने को लेकर आपने जिस तरह अपने कदम खींचे, उससे संदेह पैदा होता है। आपको रपट उपराज्यपाल को भेजनी और उस पर बहस के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने का अनुरोध करना चाहिए था। इस तरह अब आम आदमी पार्टी की कैग को लेकर सारी दलीलें ध्वस्त हो गई हैं।

आप ने कैग रपट को बताया मनगढ़ंत

दरअसल, कथित शराब घोटाले का मामला शुरू से भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोपों का मुद्दा रहा है। दिल्ली सरकार कहती रही है कि ऐसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं, जबकि इसकी जांच में पाए गए तथ्यों के आधार पर आम आदमी पार्टी के कई नेता जेल भी भेजे गए। यहां तक कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जेल जाना पड़ा। फिर भी वे इस घोटाले को मनगढ़ंत और साजिश करार देते रहे हैं। इस तरह यह मामला अब भी बहुत सारे लोगों के भीतर भ्रम की तरह बना हुआ है। अब कैग की रपट को भी मनगढ़ंत बताया जा रहा है।

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अगर यह मामला मनगढ़ंत ही होता और आम आदमी पार्टी के नेताओं और दिल्ली सरकार को परेशान करने की नीयत से उभारा गया होता, तो न तो जांच एजंसियां उसके नेताओं को गिरफ्तार करने जैसा कठोर कदम उठातीं, न अदालतें उनकी जमानत को लेकर इतने वक्त तक संशय में रही होतीं। अगर कैग की रपट को लेकर आम आदमी पार्टी के आरोप सही होते, तो उच्च न्यायालय उसे विधानसभा के पटल पर बहस के लिए रखने को न कहता।

कैग की रपट को माना जाता है बहुत विश्वसनीय

अब आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार से इस बात के जवाब की अपेक्षा होगी कि उसने कैग की रपट को विधानसभा के पटल पर क्यों नहीं रखा। कैग की रपट को बहुत विश्वसनीय माना जाता है। माना जाता है कि वह किसी भी विषय को लेकर बहुत बारीकी और पारदर्शी तरीके से ब्योरे पेश करता है। उस रपट के आधार पर कार्रवाई का सिलसिला तभी शुरू हो सकता है, जब उसे विधानसभा की मंजूरी मिल जाए।

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उसे विधानसभा में न रखे जाने के कुछ तकनीकी कारण माने जा सकते हैं। एक तो यह कि आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार को इसे लेकर हिचक रही होगी। दूसरी, जो कि संदेह पैदा करती है कि सरकार इस चुनावी माहौल में अपने खिलाफ किसी भी तरह का नकारात्मक तथ्य सार्वजनिक करने से परहेज कर रही होगी। दूसरी बात ज्यादा प्रबल लगती है। ऐसे में सवाल उठने स्वाभाविक हैं।