देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली को कानून-व्यवस्था के लिहाज से अपेक्षया ज्यादा चौकस और सुरक्षित माना जाता है। मगर हकीकत यह है कि यहां आपराधिक तत्त्वों को अपनी मनमानी करने में शायद ही कोई बड़ी बाधा पेश आती है। यह बेवजह नहीं है कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बिगड़ते हालात पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है कि अपराधी गिरोहों से कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए और समाज को इनसे मुक्ति मिलनी चाहिए। अगर आम लोगों का कानून और न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ रहा है, तो इसे गंभीरता से लेना होगा।
राजधानी से सटे इलाकों में गिरोह एक से दूसरी जगह कर रहे वारदात
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी भी गौरतलब है कि दिनदहाड़े हत्या करके भी कोई सबूतों के अभाव में बेखौफ छूट जाता है। आखिर गवाहों को सुरक्षा देने के लिए क्या किया जा रहा है? अपराध का दायरा कितना बड़ा हो गया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी से सटे इलाकों में चल रहे गिरोह एक से दूसरी जगह जाकर वारदात को अंजाम देते हैं।
यह स्थिति तब है जब दिल्ली में दो सरकारें हैं। सुरक्षा व्यवस्था केंद्र के हाथों में है। फिर भी कानून का राज अगर कमजोर है, तो इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। चिंता की बात है कि कुछ गिरोहबाज सलाखों के पीछे जाने के बाद भी अपनी गतिविधियां संचालित करते रहते हैं। ऐसे कई अपराधी कभी गिरफ्तार होते भी हैं तो उनके खिलाफ कई मामले लंबित होने पर भी आरोप तय करने में ही लंबा वक्त लग जाता है। जाहिर है, यह जांच अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है।
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अपराधों पर काबू पाने के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा के साथ-साथ त्वरित सुनवाई अदालतें बनाने की जरूरत भी बताई है। विडंबना यह है कि कानून-व्यवस्था के मोर्चे से लेकर शीघ्र न्याय सुनिश्चित कराने के मसले पर सरकारों को बहुत ज्यादा गंभीर होकर पहल करने की जरूरत महसूस नहीं होती। गिरोहबाजों से दिल्ली को छुटकारा दिलाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए औपचारिक आश्वासनों से आगे बढ़ कर ठोस इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा।