मौसम की अपनी गति होती है और सामान्य स्थितियों में वह पारिस्थितिकी चक्र को बनाए रखने का एक जरूरी हिस्सा होती है। मगर पिछले कुछ समय से इसके स्वरूप में तेजी से बदलाव दर्ज किया जा रहा है और खासतौर पर बारिश की वजह से होने वाली तबाही की तस्वीर ज्यादा बिगड़ती जा रही है। यों हर वर्ष मानसून के पूरे मौसम में बारिश की वजह से देश के ज्यादातर हिस्से कम या ज्यादा प्रभावित होते हैं, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि बरसात अब बेलगाम हो रही है और तबाही का सिलसिला-सा बनता जा रहा है।
पिछले दिनों उत्तराखंड के धराली और हर्षिल में, फिर जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में बादल फटने और उससे हुई जानमाल की भारी तबाही की जैसी घटनाएं हुई, उन्होंने देश के बाकी हिस्सों के लोगों को भी दहला दिया। अब कश्मीर के कठुआ में भी बादल फटने और भूस्खलन की घटना में सात लोगों की जान चली गई। दूसरी ओर, मुंबई में लगातार तीन दिन की बारिश के बाद हालत यह हो गई, मानो शहर में बाढ़ आ गई हो। वहां कई इलाकों में जलभराव की वजह से जनजीवन पूरी तरह बाधित हो गया, कई जिलों में चेतावनी जारी कर दी गई है। वहीं मराठवाड़ा क्षेत्र में बादल फटने की घटना में नांदेड़ के पांच लोगों के लापता होने की खबर आई।
बार-बार बादल फटने की घटनाएं सामने आ रही
इसी तरह, हिमाचल प्रदेश के मंडी सहित कई इलाकों में जिस तरह लगातार बार-बार बादल फटने की घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे समूची स्थानीय आबादी के सामने किसी तरह खुद को बचाने की चुनौती खड़ी हो रही है। यह समझना मुश्किल हो रहा है कि कम या ज्यादा बरसात वाले जिस मानसून को देश की खेती-किसानी के लिए एक जरूरत के तौर पर देखा जाता था, अब वह कई राज्यों में व्यापक तबाही का कारण क्यों बन रहा है। कई इलाकों में अब बारिश के समांतर बादल फटने की घटना में भी इतनी तेजी से बढ़ोतरी क्यों देखी जा रही है?
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दूसरी ओर, कई शहरों में एक-दो घंटे की बरसात में ही सब कुछ ठहर-सा जाता है और चारों ओर बाढ़ का दृश्य बन जाता है। यह निश्चित रूप से अनियोजित शहरी विकास का नतीजा है, जहां बहुत अच्छी सड़कें तो बना दी जाती हैं, लेकिन पानी के निकास का उचित और पर्याप्त इंतजाम नहीं किया जाता है। नतीजतन, दिल्ली जैसे महानगर का बड़ा हिस्सा कुछ देर की घनघोर बरसात में ही जलभराव, सड़क जाम से त्रस्त हो जाता है और पेड़ों के गिरने से होने वाले जानमाल के नुकसान की अनेक घटनाएं सामने आती हैं।
वैश्विक तापमान का नतीजा
हालांकि समूची दुनिया में मौसम के बिगड़ते स्वरूप को लेकर चिंता जताई जा रही है और इसे वैश्विक तापमान का नतीजा माना जा रहा है। इस मसले पर वैज्ञानिक अध्ययनों में बारिश के बेलगाम होने और उससे तबाही की मूल वजहों की खोज की जा सकेगी और फिर उसी मुताबिक उसका सामना करने के उपाय भी ढूंढ़े जाएंगे। प्राकृतिक आपदाओं को शायद रोका नहीं जा सकता है, लेकिन उससे बचाव के उचित इंतजाम किए जाएं, तो तबाही से जानमाल के नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है।
मौसम का बदलता मिजाज और बढ़ती त्रासदियां, वो चेतावनी जिसे हम अब भी अनसुना कर रहे हैं
विडंबना यह है कि पहाड़ी इलाकों में नदियों के किनारे आबादी बस जाती है, पर्यटन के लिहाज से बड़े होटल बना लिए जाते हैं, लेकिन इस बात का खयाल रखना जरूरी नहीं समझा जाता कि अगर कभी मौसम की वजह से नदी का रुख बिगड़ा तो उससे बचना कैसे मुमकिन होगा। जरूरत इस बात की है कि प्रकृति और मौसम के चक्र को लेकर एक गंभीर समझ बनाई जाए और उसी अनुकूल जीवनशैली को विकसित किया जाए।