जातिगत जनगणना के औचित्य पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सकारात्मक रुख से माना जा रहा है कि सरकार इस दिशा में गंभीरता से विचार कर सकती है। हालांकि विपक्षी दलों को इतने भर से संतोष नहीं है। वे चाहते हैं कि संघ और भाजपा इस पर अपना रुख स्पष्ट करें, केवल ‘उपदेशात्मक’ बात न करें। दरअसल, इस विषय पर फिर से चर्चा इसलिए छिड़ गई है कि केरल के पलक्कड़ में संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय स्वयंसेवक बैठक के अंतिम दिन उसके अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कांफ्रेन्स कर कहा कि जातिगत जनगणना का उपयोग राजनीतिक या चुनावी उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसका इस्तेमाल पिछड़ रहे समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए।

अभी तक संघ और भाजपा इस मसले पर कुछ भी कहने से बचते आ रहे थे। जातिगत जनगणना का मुद्दा असल में, पिछले कुछ समय से कांग्रेस काफी जोर-शोर से उठा रही है। कर्नाटक चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक में उसने इस पर जोर दिया। राहुल गांधी अपने हर भाषण में यह मुद्दा उठाते देखे जाते हैं। इसलिए कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा और आरएसएस को लगने लगा है कि इस विषय में लंबे समय तक चुप्पी साधे रहना नुकसानदेह हो सकता है। इसीलिए वे अब जातिगत जनगणना को उचित बताने लगे हैं।

आरक्षण का मुद्दा पिछले कुछ वर्षों में काफी संवेदनशील हो चुका है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ज्यादातर दल इसका इस्तेमाल अपना जनाधार बढ़ाने, आरक्षण से वंचित जातियों को अपने पाले में खींचने के मकसद से ही करते रहे हैं। मगर संवैधानिक बाध्यताओं के चलते राज्य सरकारें पचास फीसद की सीमा पार नहीं कर पातीं। कुछ वर्ष पहले केंद्र सरकार ने भी आरक्षण का दायरा बढ़ा कर उसमें कुछ और जातियों को शामिल किया था। मगर तमाम प्रयोगों के बावजूद आरक्षण को लेकर बहुत सारे समुदायों और जातियों में असंतोष बना हुआ है।

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ऐसे में सिद्धांत रूप में यह उपाय निकाला गया कि जातिवार जनगणना होनी चाहिए और जिस जाति की जितनी संख्या हो, उसी आधार पर आरक्षण तय किया जाए। इसके लिए संविधान संशोधन हो। सर्वोच्च न्यायालय ने भी पिछले दिनों व्यवस्था दी कि मलाईदार तबके को आरक्षण की व्यवस्था से बाहर रखा जाना चाहिए और जातियों के भीतर उपजातियों का भी वर्गीकरण होना चाहिए। मगर इस व्यवस्था के विरोध में बहुजन समाज पार्टी ने देशव्यापी आंदोलन कर दिया था।

कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण के प्रावधान का सैद्धांतिक रूप से विरोध नहीं कर सकता। अब जिस तरह कांग्रेस ने जातिगत जनगणना को बड़ा मुद्दा बना दिया है, उसमें हर पार्टी को अपना जनाधार संभालने की चिंता पैदा हो गई है। इसलिए यह कहना कि इसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, आदर्श वाक्य जैसा हो सकता है। मगर वास्तव में सभी दल इसके जरिए अपना राजनीतिक हित साधने के प्रयास कर रहे हैं।

यह तो सही है कि वंचित समुदायों और जातियों को उनकी संख्या के आधार पर वरीयता देकर ही उनके कल्याण की उम्मीद बन सकती है। पर हमारे देश में जिस तरह की जातिगत जटिलताएं हैं, उन्हें सुलझाना आसान काम नहीं है। अगर संघ और भाजपा सचमुच इसके पक्ष में हैं, तो उन्हें जातिगत जनगणना से जुड़ी गुत्थियों को सुलझाने के लिए समन्वित प्रयास करने होंगे। इसमें दूसरे दलों से भी सकारात्मक सहयोग की अपेक्षा होगी।