हेमंत कुमार पारीक
वैसे तो सुबह-सुबह वाट्सएप पर कई तरह के संदेश आते रहते हैं। सुबह की राम-राम और राधे-राधे से लेकर उपदेशात्मक वाक्य पढ़ने को मिलते रहते हैं। वर्तमान में जहां मैं रहता हूं, उस कालोनी की एक सोसायटी है। उस सोसायटी का एक वाट्सएप एकाउंट समूह है। उस पर कालोनी में होने वाली हर गतिविधि की जानकारी मिलती है। कोई भी उस पर अपनी समस्या लिख कर बता सकता है, ताकि वह रहवासियों के संज्ञान में आ जाए। उस समस्या के उपाय भी तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं। दीपावली के अवसर पर विभिन्न प्रकार की शुभकामनाओं के साथ मेरी नजर एक चित्र पर पड़ी।
एक लड़की रिक्शे पर सोलर पैनल की सहायता से चलने वाली प्रेस लिए दिखी। मुझे अच्छा लगा। मैंने वह चित्र वाट्सएप के माध्यम से आगे बढ़ा दिया। कुछ देर में ही टिप्पणियां थीं। लिखा था, वाट्सएप का उपयोग केवल कालोनी की समस्याओं के लिए होना चाहिए। इसके समर्थन में इक्का-दुक्का लोगों ने ही जवाब दिया। दरअसल, होता यह है कि आसपास के कूड़े-करकट और पानी आदि की रोजमर्रा की समस्याओं की जानकारी रहती है। मगर ऐसा कोई नवाचार प्रेरक संदेश देखने को नहीं मिलता।
मेरे पड़ोस में एक मकान काफी समय से खाली था। अभी मालिक मकान रहने आ गए हैं। दीपावली के अवसर पर मैं उनसे मिलने गया, तो छत पर टहलते वक्त सोलर पैनल पर मेरी नजर पड़ी। मैं आश्चर्यचकित था। ऐसे पैनल पूरे इलाके में कहीं भी नहीं दिखे। मैंने आश्चर्य प्रकट किया, तो वे मुस्कुराते हुए बोले, बहुत फायदेमंद है। हमें बिजली का बिल देना नहीं पड़ता, बल्कि अनुपयोगी इकाइयां हमारे खाते में जमा हो जाती हैं। अभिनव प्रयोग है। मैं कल्पना करने लगा कि अगर हरेक छत पर ऐसे पैनल लग जाएं तो छत का सही उपयोग भी हो सकेगा और बिजली खपत की जो राशि हर माह हम बिजली विभाग को देते हैं, उसकी बचत भी हो सकेगी।
वह जो चित्र मैंने वाट्सएप पर भेजा था, वह सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए था। सोसायटी के सदस्यों के संज्ञान में लाना था। सामान्यतया होता यह है कि सुबह-सुबह फौरी तौर पर हम अखबार पढ़ कर छोड़ देते हैं या ऐसे समाचारों पर ध्यान ही नहीं देते। इसी का नतीजा था कि दो-तीन टिप्पणियां देखने को मिलीं। किसी ने भी उस चित्र में छिपे नवाचार को नहीं सराहा।
दरअसल, वह चित्र एक नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक बालिका का था। यह बालिका तमिलनाडु के गांव तिरुवन्नामलाई के एक निजी स्कूल में पढ़ती है। यह चित्र पर्यावरण सरंक्षण के लिए आयोजित होने वाली सीओपी-26 के पहले अखबार में छपा था। ऐसा कुछ अठारह वर्ष की ग्रेटा थनबर्ग ने बदलते पर्यावरण के लिए दुनिया भर के नेताओं को चेतावनी देते हुए कहा था। दरअसल, हम बच्चों की भावनाओं की कद्र नहीं करते। बच्चा दिमाग कह कर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन कभी-कभी बच्चे भी ऐसा कुछ कह जाते हैं, जो हमारी आंखों पर पड़े पर्दे को साफ करने का काम करता है।
करोड़ों साल से सौर उर्जा विश्व भर में संचरित हो रही है। शायद इसके एक अंश का भी उपयोग हम नहीं कर पाते। अगर व्यर्थ जाती इस उर्जा को उपयोग में लाएं तो देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। लेकिन हम नई सोच के प्रति उदासीन रहते हैं। दीपावली के मौके पर पटाखे जलाने और लक्ष्मी माता की पूजा कर एक पर्व की इतिश्री कर लेते हैं। पर यह अवसर नई सोच और नए विचारों को अपनाने का पर्व है।
दरअसल, र्इंधन के लिए आज हम प्राकृतिक साधनों पर पूरी तरह निर्भर हैं। कोयले से बिजली पैदा की जाती है। बांध बना कर पानी से बिजली का उत्पादन होता है। लेकिन ये भंडार एक न एक दिन चुक जाने हैं। फिर हम क्या करेंगे? दुनिया भर के व्यापार व्यवसाय आज बिजली पर निर्भर हैं। दस मिनट की बिजली कटौती होने पर हाय-तौबा मच जाती है। मोमबत्ती और स्टोरेज बैट्री से घर में उजाला किया जाता है। लेकिन आज के दौर में बिना बिजली के मोबाइल और कंप्यूटर की गति नहीं है। बिजली आज की सर्वोपरि जरूरत है।
इसी संदर्भ में आजकल अखबारों में इलेक्ट्रिक कारों के विज्ञापन देखने को मिल रहे हैं। इलेक्ट्रिक कारें, डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों को अपदस्थ करेंगी। जैसे कि पहले कोयले से चलने वाले इंजन अब बिजली से चलने लगे हैं। इस संदर्भ में मैथिलीशरण गुप्त की कविता की एक पंक्ति याद आती है- परिवर्तन ही यदि उन्नति है तो हम बढ़ते जाते हैं।…
उत्तरोत्तर आने वाले समय में हम उम्मीद करते हैं कि सूर्य से प्राप्त अक्षय उर्जा का उपयोग विद्युत उपकरणों को संचालित करने में हो सकेगा। सड़क पर चलने वाले वाहन और पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ी सौर उर्जा से चलती दिखेंगी।