काबुल हवाई अड्डे पर आतंमकी हमले की जिम्मेदारी आइएसआइएस-खुरासान संगठन ने ली है। इसके बाद बदले में अमेरिकी सेना ने चौबीस घंटे के भीतर ही आइएस के ठिकानों पर ड्रोन हमले कर डाले। जाहिर है, अब लड़ाई की शुरुआत हो चुकी है। अफगानिस्तान नए तरह के युद्ध में फंसने जा रहा है। फिलहाल आइएस के हमलों के बाद तालिबान के बड़े नेताओं ने इस आतंकी संगठन से दूरी बनानी शुरू कर दी है। अब उनको भी आतंकवादी गतिविधियों से सबक लेने की जरूरत है। अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि काबुल में अभी और आतंकवादी हमले हो सकते हैं। यदि काबुल में और हमले होते हैं तो नया संकट खड़ा हो जाएगा।

वैसे काबुल हवाई अड्डे पर हमले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का हाथ होने की भी आशंका है। अब बड़ा खतरा यह है कि आइएस आतंकवादियों के निशाने पर अमेरिका, ब्रिटेन और भारत जैसे देश हैं। यदि अमेरिका लगातार आतंकवादियों पर हमले कर उन्हें खत्म करने का अभियान जारी रखता है तो आतंकवादी गुट भी चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनके सीधे निशाने पर अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिक होंगे। वैसे भी हिंसा की प्रतिहिंसा सदैव खतरनाक होती है। इससे साफ है कि अफगानिस्तान में एक बड़ी लड़ाई का खतरा खड़ा हो गया है। ऐसी हिंसा ही दुनिया को बड़े युद्ध में झोंकती है।
’संजीव ठाकुर, रायपुर

इंतजार की नीति

अफगानिस्तान के हर दिन बदलते घटनाक्रम को देखते हुए भारत ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति पर चल रहा है। इस कारण वह तालिबान पर अभी खुल कर नहीं बोल रहा है। इस वक्त भारत की प्राथमिकता अपने नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने की है। वैसे भी तालिबानी सरकार को मान्यता देने का मामला जल्दीबाजी का विषय होगा। हाल में सर्वदलीय बैठक में भी विदेश मंत्री ने इस बात पर ही जोर दिया था और विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन कर जो एकता दिखाई है, वह निश्चित तौर पर सराहनीय है।

भारत यदि आतंकवाद को जरा भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चलते हुए अगर तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं देता है तो उसका सबसे ज्यादा प्रभाव वहां फंसे नागरिकों पर पड़ेगा। इस कारण भारत चुप है। वहीं तालिबान को लेकर विश्व के कई देशों द्वारा उनकी कूटनीति में बदलाव आया है। जहां कई देश अब तालिबान शासन को मान्यता देने के बारे में सोच रहे हैं, संभव है कि भारत का रुख भी कुछ वैसा ही बनने लगे। क्योंकि भारत का अफगानिस्तान में बड़ा निवेश है। और कूटनीति यह भी कहती है कि कभी-कभी दुश्मन को भी दोस्त बनाना पड़ता है। हाल में तालिबान की ओर से भी भारत को लेकर जो बयान आए हैं उनसे पहली नजर में तो यही मतलब निकल रहा है कि तालिबान भारत के साथ फिलहाल कोई टकराव नहीं चाहता।
’देवानंद राय, दिल्ली</p>