हाल ही में भारत सरकार ने चुनाव सुधार बिल संसद के दोनों सदनों से विपक्ष के विरोध प्रदर्शन और बहिर्गमन के चलते पारित करवा लिए। आज जिस प्रकार से एक ही व्यक्ति का नाम एक से अधिक स्थानों की चुनाव सूचियों में दर्ज होता है, महिला सैनिकों के वोट उनके पतियों के द्वारा दिए जाने के नियम नहीं है, इलेक्टोरल बांड जिस प्रकार चुनाव को प्रभावित कर रहा है, उसमें कई समस्याएं हैं। इन्हें दूर करने के लिए चुनाव सुधार आवश्यक था। यह चुनाव सुधार विधेयक इनमें से कुछ समस्याओं को दूर करने में भी सक्षम है, पर इसके प्रावधान में मतदाता सूची को आधार से लिंक करना भविष्य की एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर सकता है, जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट पहले ही केएस पुट्टास्वामी केस में कर चुका है।

ऐसे संवेदनशील मुद्दे को कानूनी जामा पहनाने से पहले सदन में विचार विमर्श आवश्यक था जो कि नहीं हुआ। पूर्व में जिस कार्य को सुप्रीम कोर्ट ने डेटा सुरक्षा का खतरा बताकर बंद करवा दिया था, उसे सरकार ने कानूनी रूप देकर फिर से शुरू करने का फैसला ले लिया है। ये सभी घटनाएं सरकार की मंशा को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर रही हैं।

इससे पहले भी पुदुचेरी में भाजपा पर चुनाव प्रचार के लिए आधार कार्ड से डेटा चुराने का आरोप लग चुका है। जिस आधार कार्ड के जरिए फर्जी वोटों को दूर करने का प्रयास करने का दावा सरकार कर रही है, वास्तव में वह आधार कार्ड भी सवालों के घेरे में है, जिसके फर्जी रूप से बनने की खबरें आए दिन अखबारों की सुर्खियां बटोरती हैं। आधार कार्ड को बनाने वाली संस्था यानी यूआइडीएआइ सरकार के अधीन है, जबकि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है। आधार और मतदाता पहचान पत्र के लिंक होने से चुनाव आयोग की स्वायत्तता के भी प्रभावित होने के खतरे हैं।

चुनाव में सुधार के जरिए फर्जी वोटों पर नकेल कसना निश्चित रूप से आवश्यक है, पर इसका एकमात्र विकल्प आधार नहीं हो सकता, क्योंकि आधार कार्ड पहले से ही सुरक्षित नहीं है। सरकार को चुनाव सुधार में इलेक्टोरल बांड जैसे विषयों पर भी विचार करना चाहिए जो कि देश की जनता से छिपा हुआ है और चुनाव के साथ-साथ सरकार की नीतियों को भी प्रभावित करता है। उम्मीद है कि सरकार इन सभी समस्याओं का एक उचित समाधान निकालेगी।
’अनुभव सिंह, प्रयागराज, उप्र