दहशत का दायरा (6 अक्तूबर) पढ़ कर हर किसी को अंदाजा लगेगा कि वास्तव में आतंकी हताश, निराश हैं, क्योंकि उन्हें अब आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही है और न ही स्थानीय जनता की सहानुभूति। लिहाजा वे आम जन को निशाना बना रहे हैं। यह सचमुच उनकी खीज का इजहार है। अब उनकी हकीकत उजागर हो चुकी है। आतंकियों के किसी के प्रति निष्ठा नहीं होती है। यही वजह है कि जमीनी तौर पर काम करने वाले अधिकांश आतंकियों की उम्र बेहद कम होती है। कायदे से उन्हें स्कूली शिक्षा भी नहीं मिल पाती। इसका नाजायज फायदा आतंकी संगठनों के आका उठाते हैं। इसके लिए तंत्र को अनेक तरह के कार्य एक साथ करने होंगे, ताकि गरीबी, बदहाली और अशिक्षा का अंधियारा दूर हो। समाज में कोई किसी की बेबसी का दोहन न कर सके।

हालांकि मक्खनलाल बिंदरू की बेटी श्रद्धा बिंदरू के बयान बेहद प्रशंसनीय हैं, जो उनके पिता की बहादुरी और जुझारूपन से मेल खाते हैं। उनकी कहीं बातें देश-दुनिया की महिलाओं, तमाम युवाओं के लिए नजीर है, जो गरीबी, बदहाली में अधीरता का अवलंबन कर आत्मघाती कदम उठा लेते या किसी के चंगुल में फंस कर अपने जीवन को नरक में धकेल डालते हैं। फिर वापस लौटने के तमाम रास्ते बंद हो जाते हैं। हालांकि जो दो अन्य लोग मारे गए, वे साधारण कारोबारी थे। इसका साफ मतलब है कि उन दहशतगर्दों को गरीबों के प्रति भी कोई हमदर्दी नहीं है। संकीर्णता की राह पर चल कर बहुत दिनों तक विघटनकारी गतिविधियां नहीं चलाई जा सकतीं। घाटी का माहौल धीरे-धीरे ही सही, सुरक्षाबलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस आमजन और स्थानीय नेतृत्व के कौशल के कारण बदल रहा है।
’मुकेश कुमार मनन, पटना</p>

जीवाश्म संकट

हाल ही में ऊर्जा मंत्री ने एक इंटरव्यू में बताया कि देश की प्रमुख ऊर्जा उत्पादक इकाइयों के पास मात्र चार दिनों का कोयला शेष है। यह स्थिति न सिर्फ भारत में, बल्कि संपूर्ण विश्व में बनी हुई है। ब्रिटेन में भी इन दिनों पेट्रोल, डीजल की आपूर्ति को लेकर स्थिति गंभीर बनी हुई है। चीन में भी बीते दिनों अब तक का सबसे कम कोयला उत्पादन हुआ। जीवाश्म र्इंधनों के लगातार बढ़ते उपयोग और घटते स्रोतों ने वैश्विक संकट उत्पन्न कर दिया है, जिससे आज पूरा विश्व जूझ रहा है।

ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए भारत को कोयला क्षेत्र में कुछ सुधार करने की आवश्यकता है, जैसे कोयले की नीलामी में पारदर्शिता लाना, अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना, कोयले के आयात को प्रतिस्थापित करना तथा लोगों को जागरूक करना। क्योंकि इस वैश्विक संकट में सरकार के साथ आम नागरिकों का योगदान भी अत्यंत आवश्यक है।
’अभिषेक जायसवाल, सतना, मप्र

अनुशासन की जरूरत

राजनीतिक शुचिता और सम्यक भाषण स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला है। मगर वर्तमान में देश में जातिवादी राजनीति, धार्मिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक स्वार्थों से प्रेरित भड़काऊ और उन्मादी बयानबाजी निरंतर बढ़ती जा रही है, जो कि लोकतंत्र की सफलता को बाधित करते हैं। इसलिए ऐसी भड़काऊ बयानबाजी पर अंकुश लगाने के लिए राजनीतिक पार्टियों को पार्टी स्तर पर आचार संहिता बनाने, भड़काऊ बयानबाजी वाले नेताओं पर कार्यवाही करने तथा चुनाव आयोग द्वारा ऐसे उन्मादी नेताओं को चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से रोकने की नितांत आवश्यकता है। मीडिया और जनता को भी ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना होगा, तभी हम आने वाले समय में विश्व में भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को सुरक्षित रख पाएंगे।
’वैभव दुबे, पलारी, मप्र