हमारा कानून कहने को बहुत ही मजबूत है, पर उसमें इतनी गलियां हैं कि अपराधी निकल जाते हैं। अब देखिए, करोड़ों के कर चोरी के नगद नोटों को, जिसे सारी दुनिया देख रही है, जिन्हें बरसों में ही नहीं, बल्कि कुछ सालों में इत्र व्यवसायी पीयूष जैन ने अपने तलघर में रखे और जो छापे के दौरान बाहर आ गए और बैंक में जमा कर दिए गए हैं छापामार एजेंसी द्वारा। अब जेल में बंद जैन शान से कह रहा है कि मैंने जीएसटी की चोरी की है, रकार पेनल्टी ले ले और बाकी रुपए मुझे लौटा दे। उसकी जमानत के लिए वकील भी तैयारी कर रहे हैं। ठीक वैसे ही शाहरुख खान के बेटे आर्यन भी जेल से बाहर आ गए नारकोटिक्स केस में। आगे क्या होगा पता नहीं। ऐसे अनेक मामले हुए और होते भी रहेंगे जब तक कानून और उसके पालन में ईमानदारी नहीं आती।

एक गरीब अगर छोटा-सा भी अपराध करता है, तो बरसों जेल में पड़ा रहता है और अगर रसूखदार करे तो वह अपनी रसूख के सहारे झटपट बहार आ जाता है। सरकार और न्यायालय इस पर संज्ञान ले, ताकि देश का कोई भी नागरिक, अगर वह अपराधी है, तो उसे उसके किए की पूरी सजा मिलनी चाहिए। तभी न्याय पारदर्शी और सक्षम न्याय कहलाएगा।
’शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर</p>

झूठा बयान

उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनेता नए-नए और अजीब भाषण दे रहे हैं। ऐसे भाषण देने में सपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सबसे आगे हैं। अभी कन्नौज में प्रेस कान्फ्रेंस करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि हमारी सरकार होती तो अब तक मंदिर बन गया होता। अखिलेश का यह बयान कहीं न कहीं हास्यप्रद और अचंभित करने वाला है। यूपी सहित देश की जनता को पूरी तरह पता है कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर समाजवादी पार्टी की सोच क्या रही है। मुसलिम वोट पाने के लालच में हमेशा से सपा राम मंदिर का विरोध करती आई है, यह जगजाहिर है।

अगर अखिलेश यादव को राम मंदिर बनाने की इतनी ही चिंता थी तो कभी मुख्यमंत्री रहते एक शब्द मंदिर निर्माण के लिए बोल देते, लेकिन कभी नहीं बोले। उन्होंने तो कभी अपनी पार्टी के उन नेताओं के वक्तव्यों पर भी कुछ न बोला, जब वे राम मंदिर बनने पर खून की नदियां बहाने की बात करते थे। अब अखिलेश यादव क्यो मंदिर के प्रति नरम दिख रहे हैं, यह भलीभांति यूपी की जनता जानती है। केवल चुनावी षड्यंत्र के तहत आज वे राम मंदिर निर्माण की बात कह रहे हैं। उनके मन में मंदिर के प्रति क्या सोच है, उससे कोई अनजान नहीं है।
’ललित शंकर, गाजियाबाद