उद्देशिका इस बात की घोषणा करती है कि यहां के प्रत्येक नागरिक को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने के लिए राज्य हर संभव प्रयास करेगा। लेकिन अगर गौर करें तो स्थिति इतनी आसान नहीं है, जितनी दिखती रही है। अगर हमें समाज में न्याय को स्थापित करना है तो जरूरी है कि हम न्यायपालिका में व्यापक स्तर पर सुधार करें। न्याय किसी समाज और देश के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है, इसकी प्रासंगिकता इस बात से भी तय होती हैं कि इसे सतत विकास लक्ष्यों में भी स्थान दिया गया है, जहां शांति और न्याय की बात हो रही है।

हाल ही में देश के प्रधान न्यायाधीश ने देश की निचली अदालतों की स्थिति पर चिंता जाहिर की और कहा कि जिला अदालतों में बुनियादी सुविधाएं तक बेहतर नहीं हैं और इसके पीछे वित्त की कमी नहीं है, बल्कि दृष्टिकोण की कमी दिखाई देती है। अभी हम एक आदर्श समाज और राष्ट्र की स्थापना करना चाहते हैं तो हमें न्याय मिलता दिख रहा है। लेकिन यह भी ध्यान देना होगा कि न्याय मिलने की दर क्या है और इसकी लागत क्या है।

इसलिए विधायिका और कार्यपालिका को परस्पर सहयोग से ये सुधार किए जाने चाहिए। सबसे पहले शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का पालन किए जाने की जरूरत है। हम लगातार देख रहे हैं कि किस तरीके से भारत सरकार और शीर्ष न्यायालय के मध्य कालेजियम व्यवस्था को लेकर मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं। इसका जल्द से जल्द निराकरण किया जाना चाहिए। न्यायालयों में पड़े लंबित करोड़ों मामलों को जल्द से जल्द कैसे निपटाया जाए, इसके लिए एक व्यापक चर्चा की जरूरत है।

इसके अलावा, न्यायपालिका में जिन बुनियादी चीजों की कमी है, उनकी पूर्ति जल्द किया जाए, चाहे वह जजों की भर्ती हो या अन्य कर्मचारियों की भर्ती। इसके प्रति सरकारें गंभीरता दिखाएं। साथ ही न्याय की पहुंच सभी तक हो, यानी अंत्योदय के सिद्धांत पर आधारित हो। सस्ता न्याय भी हमारे लिए एक चुनौती है। न्यायपालिका, पुलिस प्रशासन और देश की सभी जांच एजंसियों, संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थाओं में भी बेहतर सामंजस्य होना चाहिए, क्योंकि इनकी लेटलतीफी और अनुचित कार्रवाइयों के चलते भी आज न्यायपालिका के ऊपर काम का अतिरिक्त बोझ है।
सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र

श्रम की कद्र

पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर, वित्तीय लेनदेन के डिजिटलीकरण और ई-श्रम जैसे सरकारी पोर्टलों पर अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के नामांकन जैसे कदमों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने के कई प्रयास करने की घोषणा की। इन सुविचारित प्रयासों के बावजूद भारत के लिए अनौपचारिकरण की चुनौती बनी हुई है। कोरोना महामारी ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। भारत सहित विकासशील विश्व के कई भागों में अनौपचारिकता में अत्यंत धीमी गति से कमी आई है, जो गरीबी और बेरोजगारी के रूप में सबसे अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।

शुरुआत में रोजगार को बढ़ावा देने के प्रयास में भारत सरकार ने श्रम गहन विनिर्माण में संलग्न छोटे उद्यमों को राजकोषीय रियायतें प्रदान कर और लाइसेंस के माध्यम से बड़े उद्योगों को विनियमित कर संरक्षित किया। चूंकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के कारोबार प्रत्यक्ष रूप से विनियमित नहीं होते हैं, वे आमतौर पर नियामक ढांचे से आय और व्यय छिपाकर एक या अधिक कर की अदायगी से बचते हैं।

यह सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कर के दायरे से बाहर रह जाता है। अनौपचारिकता का निरंतर प्रभुत्व अल्प-विकास की स्थिति को प्रकट करता है। अर्थव्यवस्था औपचारिक होगी और राष्ट्र विकास के मार्ग पर बढ़ेगा। जब अनौपचारिक उद्यम अधिक पूंजी निवेश एवं शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ अधिक उत्पादक बनेंगे और जब श्रमिकों को कौशल प्रदान किया जाएगा।
सागरिका गुप्ता, नई दिल्‍ली।

दर्दनाक पाठ

शिक्षक अगर अच्छा हो तो विद्यार्थियों को पाठ हमेशा के लिए याद रह जाता है, लेकिन एक हिंसक अध्यापिका द्वारा दिया गया दर्दनाक पाठ एक छात्रा को बुरे सपने की तरह हमेशा याद रह जाएगा। पहले कहा जाता था कि विद्यार्थियों का भविष्य सुधारने के लिए शिक्षक अहम तरीके अपनाते हैं। लेकिन दिल्ली में एक शिक्षिका ने हिंसा की सारी सीमा लांघ कर बच्ची के जीवन और भविष्य से खिलवाड़ किया।

नाहक ही गुस्से में आई शिक्षिका ने छात्रा के बाल काटे, उसे पीटा और पहली मंजिल से नीचे फेंक दिया। छात्रा के माता-पिता को खबर हुई और वे स्कूल दौड़े चले आए। छात्रा को अस्पताल में भर्ती कराया गया। डाक्टरों का कहना है कि हिंसा से छात्रा के मुंह की हड्डी टूट गई, जिससे उसे खाने और बोलने में परेशानी हो रही है।

भारतीय संविधान में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। इस अधिनियम के तहत, बच्चों को किसी भी तरह के शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना व भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया है। अगर कोई शिक्षक किसी भी विद्यार्थी को शारीरिक दंड देता है या मारता है तो उस पर कार्रवाई हो सकती है। माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों के साथ हो रहे व्यवहार का ध्यान रखें और सही समय पर कदम उठाएं।
सायमा परवीन फरीदाबाद, हरियाणा

नया बादशाह

अर्जेंटीना ने फ्रांस को पराजित कर छत्तीस साल बाद तीसरी बार फीफा विश्वकप का खिताब अपने नाम किया। इस तरह अपने अंतिम विश्व कप में लियोन मेसी ने अपने बचपन के सपने को साकार कर लिया। अर्जेंटीना के कप्तान मेस्सी ने पूरी प्रतियोगिता में शानदार खेल दिखलाया। उन्होंने फाइनल में अपनी टीम का मनोबल बनाए रखा। मेस्सी ने विश्व कप में सर्वाधिक छह गोल दागे।

इस तरह उन्होंने ब्राजील के दिग्गज खिलाड़ी पेले की बराबरी भी कर ली है। अब तक उन्होंने पांच विश्वकप में बारह गोल दागे और आठ गोल में योगदान दिया है। अब मेस्सी की गिनती पेले और माराडोना जैसे सफल खिलाड़ियो में की जाएगी। मेस्सी का खेल सैदव युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।
हिमांशु शेखर, गया