देश भर की निगाहें महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम पर लगी हैं। अगर निष्पक्ष रूप से देखा जाए, तो यह राजनीतिक अवसरवाद की पराकाष्ठा है। निर्वाचित सरकार को इस तरह अपदस्थ करने की मंशा लोकतांत्रिक मूल्यों के गिरते स्तर को ही दर्शाता है। यही कारण है कि देश के उपराष्ट्रपति और गणमान्य लोगों ने दल-बदल कानून को और अधिक मजबूत बनाने पर बल दिया है।

शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे पार्टी तोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने में बेशक कामयाब हो जाएं, लेकिन ढाई वर्ष बाद जब विधानसभा के चुनाव होंगे तो निश्चित रूप से इन सभी नेताओं को जवाब देना होगा और यह संभव है कि अधिकांश नेता चुनाव जीत न पाएं, क्योंकि इन पर कौन विश्वास करेगा।

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सरकारी आवास छोड़ने और विधायकों के कहने पर पद त्याग की इच्छा से उपजी सहानुभूति उद्धव ठाकरे को न केवल मजबूत करेगी, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे।