इन दिनों समाज में एक विशेष तरह की समस्या व्याप्त है। वह है संवेदनशीलता की कमी। इसके कारण अनेक समस्याएं जन्म लेती हैं। प्रकृति के प्रति तो हम सदैव अनुदार रहे हैं। इसी अनुदारता का प्रतिफल है पर्यावरण संकट। इसके कारण हम सब अनेक बीमारियों की चपेट में आते हैं। खाद्यान्न जल संकट की समस्या उत्पन्न होती है। हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है।
मनुष्य में ऐसी संवेदनशीलता लाने की जरूरत है ताकि वह स्वीकार करे कि हमने किसी चीज को बनाया नहीं है, बल्कि उसमें उपयोगिता का सृजन किया है। इसलिए इस बात का सदैव ध्यान रखें कि उस चीज का उपयोग इस तरह करें कि वह आने वाली पीढ़ी के लिए उपयोगी बनी रहे। लेकिन हमारी भोगवादी संस्कृति ने हमें कभी प्रकृति से सहचर बन कर रहना सिखाया ही नहीं। बात करने से अच्छा है कि हम कुछ उन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें।
जैसे हमें देखना चाहिए कि कौन-से ऐसे कार्य हमारे द्वारा किए जा रहे हैं, जिसमें प्रकृति प्रदत्त अनमोल उपहार बर्बाद हो रहे हैं और जिसका खामियाजा अंत में हमारे बच्चे को ही भुगतना पड़ेगा। सबसे बड़ी चिंता आने वाले वक्त में यह रहेगी कि क्या हम स्वच्छ पर्यावरण छोड़ जाएंगे? यानी अगर हम प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनेंगे तो बहुत सारी समस्याएं खुद-ब-खुद हल हो जाएंगी।
’मुकेश कुमार मनन, पटना, बिहार