आज देश में आम जन के बीच राज्यपाल और जांच एजेंसियों का विश्वास दांव पर है। जिस किसी राज्य में विपक्षी दल की सरकार है, राज्यपाल और जांच एजेंसियां उसके पीछे पड़ी हैं। अपने पूरे कार्यकाल में राज्य सरकार अगर जांच एजेंसियों से ही निपटती रहे, तो राज्य का विकास कार्य प्रभावित होगा, लोग प्रभावित होंगे, यहां तक कि स्वयं केंद्र सरकार के पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य भी प्रभावित होगा।

यह स्थिति कतई हमारे देश के हित में नहीं है। वर्तमान प्रकरण शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत की गिरफ्तारी और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उस गिरफ्तारी को अवैध ठहराना है। क्या इस प्रकरण से जांच एजेंसियों की साख नहीं गिरी? केरल में राज्यपाल द्वारा दस कुलपतियों से इस्तीफा मांगा जाना और फिर वहां के उच्च न्यायालय का राज्यपाल के आदेश पर रोक लगाना भी एक तीसरी शक्ति की तरफ इशारा करता है। क्या वह तीसरी शक्ति केंद्र सरकार नहीं है?

राज्यपाल की नियुक्ति और सरकारी जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर पहले से ही प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं। जिस तरह केंद्र सरकार चुनाव के माध्यम से सत्ता में आती है, वैसे ही राज्य सरकारें भी आती हैं। हमारे देश की प्रगति इस बात पर भी निर्भर है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार भले अलग-अलग पार्टियों की हों, पर मिलकर कार्य करें और देश और राज्य की प्रगति में एक-दूसरे का साथ दें।