एक-दूसरे को नीचा दिखाने से एक-दूसरे को सहयोग और सत्कार्य में साथ देने की ओर होना चाहिए। लेकिन अफसोस कि वास्तव में ऐसा होता नहीं है। गलाकाट प्रतियोगिता की इस दौड़ में हम सभी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होते जा रहे हैं। हम सभी एक-दूसरे के विरोधी हैं।

एक व्यक्ति के स्तर पर, एक समुदाय के स्तर पर या फिर एक राष्ट्र के स्तर पर पूरी दुनिया में यही हो रहा है। खुद को श्रेष्ठ और सामने वाले को निकृष्ट दिखाने की होड़ में अहिंसा और प्रेम की बातें कहीं पीछे छूट गई हैं। जरूरत इस बात की है कि प्रेम की धारा चाहे जहां से भी फूटे, हम उसका स्वागत करें। नफरत और हिंसा से अपना दामन बचा कर प्रेम और अहिंसा का दामन थाम लेना ही आज सबसे बड़ा परोपकार है।

सन 1991 तक रूस और यूक्रेन के लोगों की नागरिकता एक ही देश की थी, लेकिन आज दोनों एक-दूसरे को नेस्तनाबूद कर देने पर उतारू हैं। यही स्थिति भारत और पाकिस्तान की भी कई बार बन चुकी है। इन अराजक स्थितियों से पार पाने का रास्ता गांधीजी के विचारों में खोजा जा सकता है। गांधीजी जिस सत्य और अहिंसा को अपना सबसे बड़ा हथियार मानते थे, वे कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकते हैं, बल्कि उनकी प्रासंगिकता आज के वैश्विक परिदृश्य में और भी अधिक बढ़ जाती है।

देश के भीतर की स्थिति हो या बाहर की, इन्हीं सत्य और अहिंसा जैसे हथियारों की आवश्यकता है। जिस दिन पूरे विश्व से और हमारी मानसिकता से भी दूसरे को नष्ट कर देने की भावना खत्म हो जाएगी और केवल सच्चे प्रेम की ही भाषा होगी, सही मायने में उसी दिन समझा जाएगा कि यह मानव सभ्यता का उत्कर्ष है।
मृत्युंजय पासवान, पटना विवि

तकनीक का संजाल

आज पूरी दुनिया दिन दोगुनी और रात चौगुनी उन्नति कर रही है। विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नई-नई चीजें ईजाद की जा रही हैं। आविष्कार आवश्यकता की जननी है तो दूसरी तरफ आविष्कार का दुरुपयोग भी है। हाल ही में एक ऐसी ही घटना सामने उभर कर आई है। चीन का साइबर स्पेस प्रशासन, देश का साइबर स्पेस चौकसी या निगरानी या डीप सिंथेसिस तकनीक के उपयोग को प्रतिबंधित करने और गलत सूचना पर अंकुश लगाने के लिए नए नियम बना रही है।

बता दें कि यह ‘डीप फेक’ तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और गहन शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों और आवाज में हेरफेर करने की एक विधि है। इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य गलत कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिए किया जाता है।

इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका कृत्रिम बुद्धिमता द्वारा समर्थित तकनीकी समाधान है जो गहरे नकली को पहचान कर उसे ब्लाक कर सके। यही नहीं, बल्कि डीप फेक से जुड़े मुद्दों को हल करने से पहले मीडिया साक्षरता में सुधार करना होगा। डीप फेक का पता लगाने, मीडिया को प्रमाणित करने और आधिकारिक स्रोतों को बढ़ाने के लिए उपयोग में आसान और सुलभ प्रौद्योगकी समाधानों की भी हमें आवश्यकता है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि तकनीक जितना लाभकारी है, गलत हाथों में पड़ जाए तो यह उतना ही विनाशक भी है।
समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम

प्रतिगामी दिशा

‘तालिबान के राज में’ (संपादकीय, 29 दिसंबर) पढ़ा। यह कितनी विडंबना की बात है, जहां लोग अपने कामयाबी के पीछे किसी महिला के होने की बात करते हैं, जहां महिला घर के कामकाज से लेकर देश की उन्नति में अग्रिम भूमिका निभा रही हैं, परिवार से लेकर देश के विकास में अग्रणी है, वहीं महिलाओं पर इतनी सारी पाबंदियां लगाई जा रही हैं! क्या हम वास्तव में इक्कसवीं सदी में जी रहे हैं? यह प्रश्न भी संशय का विषय लगता है।

एक ओर विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के उपराष्ट्रपति के रूप में एक महिला का होना, भारत में महिला राष्ट्रपति का होना और दूसरी ओर अफगानिस्तान में महिलाओं की अत्यंत दयनीय स्थिति। विश्व के गरीब से गरीब देश भी अपनी महिला नागरिकों को सशक्त और प्रभावशाली बनाने और महिलाओं की स्थिति में सुधार की तमाम योजनाएं और अभियान चला रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र भी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अनेक कार्यक्रम चला रहा है। पर मुद्दा लैंगिक असमानता का नहीं है, बल्कि यह तो तालिबानी विचार का मुद्दा है। कई ऐसे देश हैं जो महिलाओं को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं है। हालांकि ईरान में महिलाओं की आवाज के आगे सरकार को झुकना पड़ा और ‘नैतिक पुलिस’ की व्यवस्था ही खत्म करने की बात करनी पड़ी।

अफगानिस्तान में भी कुछ ऐसे ही व्यापक जन आंदोलन की जरूरत है, जिससे इस तरह की तालिबानी विचार का खात्मा किया जा सके। अफगानिस्तान की इस स्थिति के लिए सभी देश और संयुक्त राष्ट्र को विशेष रूप से तालिबानी सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।
आशीष कुमार पाल, जहानाबाद, बिहार

धारणाओं की जंग

वर्तमान समय में विभिन्न क्षेत्र, चाहे वह आयुध निर्माण हो या अंतरिक्ष भारत हर क्षेत्र में वैश्विक रूप से सशक्त रूप से उभर रहा है, जिससे कई देश भारत को चुनौती देने की प्रतिस्पर्धा में सम्मिलित हैं। ऐसे समय में वह देश जो भारत से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करने से कतराते हैं, उन्होंने धारणाओं की जंग का नया तरीका निकाला है। इसे एक तरह का अप्रत्यक्ष और छिपा हुआ युद्ध माना जा सकता है।

इसके तहत देश के लोगों को सूचनाओं के संजाल में फंसा कर देश विरोधी ताकतें मजबूत होती हैं और देश में अस्थिरता फैलाने का प्रयास करती हैं। विभिन्न सूचकांकों, जैसे वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत को पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल जैसे देशों से भी नीचे स्थान दिया गया था, लेकिन हम देख सकते हैं कि इतनी बुरी स्थिति में भारत कभी नहीं रहा, जब पाकिस्तान जैसे देश आगे निकल जाएं। अब हमें वैचारिक रूप से परिपक्व होना पड़ेगा और परिस्थितियों को समझना पड़ेगा, ताकि कोई अन्य देश स्वार्थवश हमारे नागरिकों को बरगला न सके।
मोहित पाण पाटीदार, धामनोद, मप्र