देश में किसानों की हालत शुरू से दयनीय रही है। जिस किसान को हम अन्नदाता कहते नहीं थकते, वह अपने जायज हक के लिए कभी सड़कों पर उतरता है और कभी आत्महत्या का रास्ता चुनता है। हमारे देश की ज्यादातर आबादी खेती-बाड़ी से जुड़ी हुई है, लेकिन जो किसान अपनी मेहनत से पूरी दुनिया का पेट भरता है उसे दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। किसान, जिसके कंधों पर भारत के एक सौ चालीस करोड़ लोगों का पेट भरने की जिम्मेदारी है, खुद अपना पेट काट कर अपने ही खेत में दिन-रात मेहनत-मजदूरी करता है, ताकि दूसरों का पेट भर सके।
अगर कोई किसान लाचार होकर या हालात के सामने मजबूर होकर आत्महत्या कर लेता है, तो प्रशासन के लिए उत्सव का मौका बन जाता है। मरने वाले किसान के घर नेताओं की भीड़ उमड़ पड़ती है, उसके दरवाजे पर लंबी-लंबी गाड़ियां पहुंचने लगती हैं। जीते-जी जो किसान अपने परिवार का इज्जत से पेट भी न भर सका, उसके मरने के बाद परिवार के लिए नौकरी और मुआवजे का एलान किया जाता है। फिर उसके बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। सवाल है कि किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला जाता?
चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>
राजनीतिक प्रतिशोध
वर्तमान सरकार सीबीआइ, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, ईडी आदि स्वायत्त संस्थाओं का राजनीतिक दुरुपयोग अपने प्रतिद्वंद्वियों को बदनाम तथा परेशान करने के लिए कर रही है। सरकार का तरीका यह है कि जिस प्रतिद्वंद्वी को फंसाना हो पहले उसके खिलाफ फाइल और उसके बाद मामला तैयार किया जाता है, फिर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सीबीआई, ईडी आदि हरकत में आती हैं।
अब शिवसेना नेता संजय राउत इनके चंगुल में फंस गए हैं। इससे पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने अपने कार्यालय में बुलाकर कई दिनों तक पूछ पूछताछ की। यह सब तरीका सरकार द्वारा अपने विरोधियों को खत्म करने का है। असल में सरकार यह सब जनता का ध्यान बढ़ती कीमतों, बेकारी, मंदी आदि से हटाने के लिए कर रही है।
शाम लाल कौशल, रोहतक
नीति से पहले
संपादकीय ‘नया पैमाना’ (1 अगस्त) विचारणीय है। शराब नीति को लेकर जिस प्रकार दिल्ली सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव हुआ इसी का नतीजा है कि सरकार को अपनी पुरानी नीति पर लौटना पड़ा है। संपादकीय में जिन पहलुओं पर ध्यानाकर्षण किया गया है, उन पर सरकार अगर समय रहते गौर करती, तो शायद इस विवाद से बचा जा सकता था। भविष्य में किसी भी नीति को बदलने से पूर्व राज्य सरकार को उसके नफे-नुकसान का आकलन कर लेना चाहिए।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर</p>