देश में नशे का जाल बढ़ता जा रहा है। यह एक राष्ट्रीय समस्या का रूप धारण कर चुका है। बॉलीवुड कलाकारों पर समाज को दिशा देने की बड़ी जिम्मेदारी होती है, लेकिन यह वर्ग नशे की गिरफ्त में डूबा हुआ है। सुशांत सिंह राजपूत के तथाकथित आत्महत्या मामले में यह बात सिद्ध हो चुकी थी कि पूरा बॉलीवुड नशे की चपेट में है। शाहरुख खान को बॉलीवुड का बादशाह माना जाता है, जब बादशाह अपनी ही संतान का मार्गदर्शन नहीं कर सका, तो समाज का क्या मार्गदर्शन करेगा? शाहरुख खान के पुत्र आर्यन की नशाखोरी के मामले में गिरफ्तारी यह सिद्ध करती है कि रईसजादों को कानून का डर नहीं है। प्राय: बड़ी हस्तियों को इस तरह के मामले में रफा-दफा कर दिया जाता है।
कानून सभी के लिए समान है, लेकिन यह बात शायद रईसजादों को समझ नहीं आती है। युवा वर्ग को नशे की गिरफ्त से बचाना सरकार का कर्तव्य है। सरकार को इस मामले में ईमानदारी और निष्पक्ष तरीके से जांच करनी चाहिए और दोषियों को कानून सम्मत सजा मिलनी चाहिए, ताकि समाज के लिए एक उदाहरण बन सके।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया
चीन की चाल
भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थायी सदस्यता के लिए भरसक प्रयास करता रहा है। चीन को छोड़ कर सभी देश इसके पक्ष में थे। संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थायी सदस्यता के लिए कई देशों इसी प्रकार प्रयास कर चुके हैं। भारत आतंकवाद, अलगाववाद, तस्करी जैसे विषयों का हमेशा विरोध करता रहा है, पर उसके बावजूद उसको संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थान नहीं मिल पा रहा। हाल में संपन्न हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री ने विभिन्न विषयों की चर्चा करते हुए अपना पक्ष भी रखा। मगर चीन हमेशा भारत का विरोधी रहा है, उसकी नीति भारत को अलग-थलग करने की रही है। वह नहीं चाहता कि भारत को संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थायी सदस्य के रूप में जगह मिले। मगर इस प्रकार के प्रयासों में भारत को अवश्य कामयाबी मिलेगी।
’विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली</p>
दरकते रिश्ते
आज विश्व में हर तरफ बेचैनी, अशांति फैली हुई है। भारत, पाकिस्तान, चीन, अमेरिका, इराक, अफगानिस्तान, जहां भी देखो, कहीं भी शांति नहीं है। हर तरह से संपन्न होने के बावजूद न जाने इन्हें किस चीज की तलाश है, हर तरफ युद्ध के आसार नजर आते हैं। अखबार उठा कर देखते हैं तो बंद, प्रर्दशन, तोड़-फोड़, रैलियां और हत्याओं के अलावा कुछ भी पढ़ने में नहीं आता। एक भी खबर सकारात्मक नहीं होती। हर आदमी, हर देश भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है। ताकतवर होते हुए भी और ताकत पाना चाहता है।
दुनिया एक चौथे दर्जे के डिब्बे की तरह हो गई है, जहां जीने लायक जिंदगी बहुत कम लोगों के पास है। यहां सीधे-सादे इंसानों के लिए कोई गुंजाइश नजर नहीं आती, हर आदमी खुद को आशंका, आतंक और असुरक्षा के भयानक माहौल में पा रहा है। हर आदमी को इस बात का पता है कि जीवन जीने की एक सीमा है, फिर भी न जाने क्यों वह लड़ रहा है? इंसान यह क्यों नहीं समझ पा रहा कि दूसरों की मुसीबत में दौड़ कर जाना और उनकी भरसक मदद करना सबसे ऊंचा रिश्ता है।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली