What Will be Value of 1 Crore Rupees after 20, 30 and 50 Years From Now: आर्थिक जीवन का सबसे अजीब पहलू यह है कि सामानों और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती रहती हैं। पीछे मुड़कर देखें तो कुछ दशक पहले तक बेहद कम कीमतों पर उपलब्ध सामानों के दाम अब बहुत ज्यादा बढ़ चुके हैं। इसका एक उदाहरण है कि 1970 के दशक में जो मूवी टिकट 1 रुपये का था, वो आज मेट्रो शहरों में 200 से ऊपर जा चुका है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर महंगाई आती कैसे है? क्या हमें इसके बारे में चिंतित होना चाहिए, खासकर तब जबकि पैसे की भविष्य में वैल्यू का अनुमान लगाया जा रहा हो।

भारत सरकार का आदेश है कि भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य पर रखे, दोनों तरफ 2 प्रतिशत के मार्जिन के साथ। विश्व स्तर पर मुद्रास्फीति पर कड़ी निगरानी की जाती है और केंद्रीय बैंक इसे कम रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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जैसे-जैसे मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था को आकार दे रही है, समाज भी इसे तेजी से इसे ट्रैक करने और मैनेज करने पर फोकस हो गया है। लेकिन सबसे पहले मुद्रास्फीति का कारण क्या है? इस आर्टिकल में हम मुद्रास्फीति के तीन प्राइमरी ड्राइवर्स यानी तीन सबसे बड़े कारणों का पता लगाएंगे…

कॉस्ट-पुश इन्फ्लेशन: Cost-Push Inflation

कॉस्ट-पुश इन्फ्लेशन तब होती है जब उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, और व्यवसाय उन लागतों को ऊंची कीमतों के जरिए उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं। यह कई कारणों से हो सकता है: कच्चा माल अधिक महंगा हो सकता है, मजदूरों की कमी या मजबूत संघ शक्ति के कारण मजदूरी बढ़ सकती है, या कारखानों या कार्यालय स्थानों के लिए उपलब्ध भूमि की कमी के कारण किराया बढ़ सकता है। जब ये लागतें बढ़ती हैं, तो व्यवसायों के पास सर्वाइव करने के लिए कीमतें बढ़ाने के अलावा अक्सर कोई विकल्प नहीं होता है।

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डिमांड-पुल इन्फ्लेशन: Demand-Pull Inflation

जैसा कि नाम से जाहिर है डिमांड-पुल इन्फ्लेशन तब होती है जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है। अक्सर ऐसा तब होता है जब उपभोक्ता अमीर हो रहे होते हैं और ज्यादा पैसा खर्च कर रहे होते हैं। चूंकि ज्यादा लोग सामान और वस्तुओं को खरीदने के साथ-साथ सर्विसेज पर खर्च करने में सक्षम होते हैं, ऐसे में कीमतें स्वाभाविक तौर पर बढ़ती हैं क्योंकि आपूर्ति डिमांड को पूरा नहीं कर पाती।

ज्यादा करेंसी छपने से होने वाली महंगाई: Inflation Due to Excessive Money Printing

मुद्रास्फीति का तीसरा प्रमुख कारण सरकारों द्वारा बहुत अधिक पैसा छापना है। जी हां, आपको यह उल्टा लग सकता है लेकिन सरकारें कभी-कभी ज्यादा नौकरियां बनाने और विकास की उम्मीद में, अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक पैसा छापती हैं। ऐसा वास्तविक मुद्रा निर्माण के जरिए या सरकारी ऋण बढ़ाकर और बैंकों को बड़े कर्ज देने की अनुमति देकर किया जा सकता है। हालांकि, जब वस्तुओं और सेवाओं में समान बढ़ोत्तरी के बिना ज्यादा पैसा प्रचलन में आता है, तो हर व्यक्तिगत नोट का मूल्य कम हो जाता है। इसका परिणाम उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ रही हैं।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में मुद्रास्फीति की दर अपेक्षाकृत कम रही है, लॉन्ग-टर्म प्लानिंग कुछ हद तक स्थिर बनी हुई है। हालांकि, मुद्रास्फीति विश्व अर्थव्यवस्था (Global Economy)की अस्थिरता को भी दिखाती है। कीमतें बढ़ती हैं क्योंकि इकोनॉमी सिस्टम हमेशा प्रवाह में रहता है और अप्रत्याशित कारकों के चलते आपूर्ति और मांग में बदलाव होता है।

अब ऊपर बताए गए तीनों कारणों को ध्यान में रखें तो मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद, 50 सालों में 1 करोड़ रुपये का मूल्य क्या होगा? और इस सवाल का जवाब आपको चौंका सकता है। इसका जवाब, आर्थिक ताकतों वाली दुनिया में भविष्य के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग से जुड़े कई अहम जवाब खड़े करता है।

हर महीने SIP में 10000 रुपये जमा करने से कितने साल में इकट्ठे होंगे 1 करोड़ रुपये?

भविष्य में 1 करोड़ रुपये की वैल्यू क्या होगी, इससे पहले जान लेते हैं कि आपको म्यूचुअल फंड में 12 प्रतिशत के अनुमानित रिटर्न के साथ SIP (Systematic Investment Plan) के जरिए 1 करोड़ रुपये जुटाने में कितना समय लगेगा।

इन्वेस्टमेंट डिटेल:Investment details

हर महीने SIP में निवेश: 10,000 रुपये

संभावित सालाना रिटर्न: 12 प्रतिशत

अगर आप नियमित तौर पर म्यूचुअल फंड में 12 प्रतिशत के सालाना रिटर्न के साथ 10000 रुपये हर महीने निवेश करते हैं तो आपको 1 करोड़ रुपये इकट्ठा करने में करीब 20 साल लग जाएंगे।

1 करोड़ रुपये की आने वाले समय में वैल्यू और मुद्रास्फीति का इस पर असर

अब, आइए देखें कि समय के साथ मुद्रास्फीति उस 1 करोड़ रुपये के मूल्य को कैसे कम कर देगी। भले ही आप अपने नियमित निवेश के जरिए 1 करोड़ रुपये जमा कर लें, लेकिन मुद्रास्फीति इसकी क्रय शक्ति यानी purchasing power को कम कर देगी। हम प्रति वर्ष 6% की औसत मुद्रास्फीति दर मानकर 20 साल, 30 साल और 50 साल के बाद 1 करोड़ रुपये के समायोजित मूल्य (Adjust Value) की गणना करेंगे।

20 साल बाद 1 करोड़ रुपये की वैल्यू: Value of Rs 1 crore after 20 years

20 साल बाद आज के 1 करोड़ रुपये की वैल्यू, 1 करोड़ नहीं होगी। जी हां, पर्चेजिंग पावर के चलते 1 करोड़ रुपये की वैल्यू, मुद्रास्फीति के चलते कम हो जाएगी। आज की मुद्रास्फीति के हिसाब से चलें तो 20 साल बाद 1 करोड़ रुपये की वैल्यू सिर्फ 31.18 लाख रुपये होगी।

30 साल बाद 1 करोड़ रुपये की वैल्यू: Value of Rs 1 crore after 30 years

जैसे-जैसे समय बढ़ेगा, मुद्रास्फीति के चलते पैसे की वैल्यू कम होती जाएगी। 30 साल बाद आज के 1 करोड़ रुपये की वैल्यू और कम हो जाएगी। 30 साल बाद 1 करोड़ रुपये की वैल्यू उस समय सिर्फ 17.41 लाख रुपये होगी।

50 साल बाद 1 करोड़ रुपये की वैल्यू:Value of Rs 1 crore after 50 years

जितना लंबा समय गुजरेगा, मुद्रास्फीति का असर उतना ज्यादा होगा। 50 साल बाद आज के 1 करोड़ रुपये की वैल्यू उस वक्त सिर्फ 5.43 लाख रुपये होगी और इसकी वजह इन्फ्लेशन का कंपाउंडिग इफेक्ट होगा।

इससे पता चलता है कि कैसे मुद्रास्फीति, समय के साथ पैसे की पर्चेजिंग पावर कम कर सकती है। 1 करोड़ रुपये निवेश के जरिए इकट्ठा करना बढ़िया लक्ष्य हो सकता है, लेकिन यह जरूरी है कि लॉन्ग-टर्म फाइनेंशियल गोल के लिए मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर प्लानिंग करें।

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