Separation Between JDU and BJP in Bihar: कहावत है ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’। कल तक आप जो दूसरों के साथ कर रहे थे, वही अब आपके साथ हो गया तो बिलबिलाने लगे। कल तक सत्ता में काबिज होकर जिस नीतीश कुमार के साथ गलबहियां करते नहीं थक रहे थे, उसी नीतीश ने आपको अंदरखाने रंग बदलता देखकर आपसे अपना हाथ छुड़ा लिया तो आप उन्हें अवसरवादी कहते हुए हुए राजनीतिक अछूत घोषित करने पर आमादा हो गए।
दरअसल, अपनी विस्तारवादी नीति पर जिस तेज रफ्तार से उठापटक और तोड़फोड़ करती हुई भारतीय जनता पार्टी आगे बढ़ती चली जा रही थी, उसमें बिहार के धुरंधर राजनीतिज्ञ एवं वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ब्रेक लगा दिया। आगे बिहारी राजनीति का ऊंट किस करबट बैठता है, यह कोई नहीं जानता, लेकिन अहंकार पर विराम तो लगना ही चाहिए, घमंड को चूर-चूर होना ही चाहिए, सियासी दादागीरी खत्म होनी ही चाहिए। साम, दाम, दंड, भेद वैसे तो राजनीति का आवश्यक फर्मूला है, जिसका भरपूर प्रयोग केंद्र में सत्तारूढ़ दल द्वारा अब तक किया जाता रहा है और निश्चित रूप से आगे भी किया जाता रहेगा।
बड़ी मछली छोटी मछली को निगल… का कहावत चरितार्थ
कई राज्यों में धींगामुश्ती, हॉर्स ट्रेडिंग से हुए सत्ता परिवर्तन को तो पूरी दुनिया ने देखा और आगे भी देखेगी, क्योंकि आपकी फितरत यही है। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार को गिराकर शिव सेना व भारतीय जनता पार्टी की सरकार का बनना है। अब शिवसेना अपने ही राज्य में अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है। कहते हैं कि बड़ी मछली छोटी मछली को निगल लेती है। भारतीय जनता पार्टी ने देश के कई राज्यों में इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है।
इसी का परिणाम है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने अहंकार को जगजाहिर करते हुए सार्वजनिक मंच से कहा कि यदि हमलोग अपनी विचारधारा पर खड़े रहे तो क्षेत्रीय दल को समाप्त कर देंगे। इसी तोड़फोड़ की नीयत से आरसीपी सिंह को बिना जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की अनुमति के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया और चिराग पासवान को जदयू के सदस्यों को विधानसभा चुनाव में पराजित करने के लिए मैदान में छोड़ दिया गया।
आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री की बिरादरी से ही आते हैं, इसीलिए केंद्र में सत्तारूढ़ दल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कद को छोटा करके सत्ता पर काबिज होने की व्यूह-रचना इस उम्मीद से की थी कि जातिवाद के उन्माद में देश के अव्वल राज्य बिहार की जनता दिग्भ्रमित होकर रह जाएगी। फिर भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र की तरह ‘खेल’ करके बिहार में भी हाथ साफ करने का अवसर मिल जाएगा।
वैसे, बिहार में विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग के मामले के प्रमाण तो अब तक सामने नहीं आए हैं, लेकिन जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सत्ता परिवर्तन कराया गया, वहां के विधायकों को अपने पक्ष में इसी नीति के तहत कराया गया। वह सब विधायकों में अचानक ‘दिव्य ज्ञान’ प्राप्त होने के कारण नहीं होता है, बल्कि इस सब को हॉर्स ट्रेडिंग या फिर ईडी-सीबीआई का खौफ दिखाकर ही अपने पाले में किया जाता है, जिससे उनका संख्या बल बढ़ जाता है। फिर सत्ता परिवर्तन कानूनी रूप से मजबूरी बन जाता है।
नीतीश कुमार की छवि बेदाग रहा है
नीतीश कुमार को देश में ‘पलटू कुमार’ भी कहा जाता है, लेकिन राजनीतिक जीवन में उनकी छवि इतनी साफ रही है कि कोई उन पर यह आरोप नहीं लगा सकता कि उन्होंने भ्रष्टाचार करके धन कमाया। परिवारवाद का भी उन पर आरोप नहीं है। आज देश में ऐसे बहुत कम राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने अपना लंबा जीवन सत्ता के शीर्ष पर रहकर गुजरा हो और भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त हों। परिस्थितियों के कारण दल बदलने और ऊंची आशाओं-उम्मीदों के लिए उड़ान भरने में कुछ भी अनैतिक नहीं है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह भी कहा जाता है कि उनकी महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है। इसमें गलत क्या है? उन्होंने पढ़-लिखकर राजनीति की दुनिया में अपने जीवन को खपाया है। कोई चारित्रिक दोष है नहीं। अनुभव की भी कोई कमी नहीं है। प्रधानमंत्री बनने के लिए और क्या चाहिए? इतने लंबे समय तक बिहार का नेतृत्व करने की बात तो सोने पर सुहागा जैसा ही है।
अब यह गहन रिसर्च का मुद्दा हो सकता है कि आखिर अपने इतने लंबे मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने बिहार का कितना ‘विकास’ किया? यह गहन समीक्षा का विषय है। इसकी समीक्षा में सामने यह बात तो जरूर आई है कि बिहार का उतना विकास नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था। देश आजाद तो एक ही दिन, एक ही समय में हुआ था, लेकिन कई राज्यों का उतना विकास नहीं हुआ, जितनी उम्मीद की जाती थी। ऐसे राज्यों में बिहार का नाम भी शामिल है।
पिछले मंगलवार को नीतीश कुमार ने भाजपा गठबंधन तोड़ने का एलान करते हुए राज्यपाल फागू चौहान को अपना त्यागपत्र सौप दिया और फिर 164 विधायकों का समर्थन पत्र भी हाथ में थमा दिया। राष्ट्रीय जनता दल सहित सात पार्टियों ने महागठबंधन के साथ सरकार बनाने का ऐलान किया। 10 अगस्त को नीतीश कुमार आठवीं बार मुख्यमंत्री, तो तेजस्वी यादव दूसरी बार उपमुख्यमंत्री बन गए। नीतीश कुमार ने त्यागपत्र देने के बाद अपने को भाजपा से अलग होने का कारण बताते हुए कहा कि जो कुछ हो रहा था, वह अच्छा नहीं हो रहा था।
नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि एनडीए में उन्हें बार-बार अपमानित होना पड़ रहा था
इसलिए पार्टी के सभी सदस्यों ने एक स्वर में भाजपा से संबंध तोड़ने के लिए कहा। नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि एनडीए में उन्हें बार-बार अपमानित होना पड़ रहा था। षड्यंत्र रचकर जदयू का कद छोटा करने का प्रयास किया जा रहा था। इसलिए अगर अभी सतर्क नहीं हुए होते तो यह पार्टी हित में अच्छा नहीं होता। इस पर जनता दल यूनाइटेड के सभी नेताओं ने निर्णय लेने का अधिकार मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया था।
इधर, पटना में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सांसद रविशंकर प्रसाद ने कहा कि नीतीश कुमार जंगल राज के खिलाफ जीतकर मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने भ्रष्टाचार के दर्जनों मामले में फंसे परिवार से हाथ मिलाकर जनादेश और बिहार की जनता का अपमान किया है। इस दौरान सम्राट चौधरी के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता और भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी उपस्थित थे।
भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय अग्रवाल पत्रकारों से बात में जमकर अपना गुस्सा निकाला और कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार की जनता को ठगा है। भाजपा के साथ धोखा किया है। जनता ने जंगल राज के खिलाफ एनडीए को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने अपने वादे को पूरा किया।
जदयू को मात्र 43 सीट मिलने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनाया गया। अब जो भी हो, बात हाथ से बाहर हो गई है और महागठबंधन के साथ बिहार सरकार ने काम भी शुरू कर दिया है। इसलिए अब देखना है कि 2024 में क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनते हैं या वह बिहार के मुख्यमंत्री ही बने रहना पसंद करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है)