भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस द्वारा मतदाता सूची को लेकर चुनाव आयोग पर लगाए इल्जामात के बारे में कहा कि धूल इनके चेहरे पर थी और आईना साफ करते रहे। कांग्रेस के आरोपों के जवाब में अनुराग ठाकुर ने छह लोकसभा सीटों पर गड़बड़ियों के आरोप लगाए, जिन पर विपक्ष के नेता जीते थे। कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने भाजपा नेता के आरोपों को लपकते हुए चुनाव आयोग पर इल्जामात की सूची बढ़ा दी। अनुराग ठाकुर के कांग्रेस पर लगाए आरोप जिस तरह चुनाव आयोग के खिलाफ चले गए उसे देख कर अनुराग ठाकुर से पूछा जा सकता है कि धूल तो चुनाव आयोग के चेहरे पर थी, चेहरा आप अपना क्यों साफ कर रहे हैं? भाजपा के नेता चुनाव आयोग को सुरक्षा का घेरा क्यों दे रहे हैं? इतिहास गवाह है कि कभी-कभी अंगरक्षक ही जान को नुकसान पहुंचा देते हैं। अनुराग ठाकुर की प्रेस कांफ्रेंस ने चुनाव आयोग पर लगे आरोपों को दोगुना कर दिया है। क्या चुनाव आयोग को सुरक्षा-घेरा देने के पीछे भाजपा नेताओं का कोई अपना डर काम कर रहा है? आयोग को अंगरक्षकों की जरूरत क्यों, सवाल पूछता बेबाक बोल।
दलीलें छीन कर मेरे लबों से
वो मुझ को मुझ से बेहतर काटता है
-खुर्शीद अकबर
विपक्ष के सवालों की झड़ी में चुनाव आयोग भीग रहा था। उम्मीद थी कि अपना बचाव चुनाव आयोग अपने प्रावधानों व संसाधनों के साथ कर लेगा। इस उम्मीद के उलट भाजपा के नेता चुनाव आयोग के अघोषित अंगरक्षक के रूप में सामने आ जाते हैं। चुनाव आयोग पर उठाए हर सवाल को झूठा करार देते हुए वे विपक्ष को ही सवालों के कठघरे में ले आए हैं। सवाल है कि क्या चुनाव आयोग ने भाजपा के नेताओं के पास अपनी ढाल बनने की अपील भेजी थी?
आखिर भाजपा के नेताओं को क्यों लगा कि उन्हें चुनाव आयोग को सुरक्षा घेरा देना चाहिए? भाजपा के नेताओं और चुनाव आयोग का क्या कोई सुरक्षात्मक अंतरअनुशासनात्मक संबंध है? आखिर आयोग पर सवालों के हमले का वार झेलने के लिए भाजपा के नेता अपना सीना क्यों आगे कर रहे हैं? चुनाव आयोग की साख के किले को बचाने के लिए पहली पंक्ति के मोर्चे पर भाजपा के नेता डटे हुए से क्यों दिख रहे हैं? मानो कह रहे हों कि आयोग तक पहुंचने से पहले हमसे निपटो।
इन सवालों की विवेचना हम ढाल या सुरक्षा घेरे की अवधारणा से ही करने की कोशिश करते हैं। आखिर, सुरक्षा का घेरा किसे दिया जाता है? पहला बिंदु तो यह कि जो तकनीकी रूप से आपसे वरिष्ठ है। मान लीजिए किसी पुलिस अभियान में वरिष्ठ कप्तान को जवानों के सुरक्षा घेरे में आगे बढ़ाया जाता है। कई तरह के अभियानों में कप्तान की भूमिका अहम होती है। वजह यही है कि नेतृत्व मनोबल बढ़ाता है। कप्तान के जाने से किसी भी तरह के अभियान की कमर टूट सकती है। दूसरे बिंदु में वैसे लोग आते हैं जो किसी खास कारण से कमजोर हो जाते हैं। लेकिन अपनी कमजोरी के साथ वे वृहत्तर महत्त्व रखते हैं। उनकी कमजोरी उनके लिए जानलेवा न हो जाए इसलिए उन्हें सुरक्षा घेरे में रखा जाता है।
तीसरे और सबसे अहम बिंदु में वे लोग हैं जिनके पास किसी तरह का कोई खास राज छुपा होता है। यही सबसे रोमांचकारी पहलू होता है। इनके राज बाहर आने का बहुतों को डर होता है। कुछ ऐसे राज, जिसके बाहर आने के बाद पूरी व्यवस्था पर ही सवाल उठ जाए। तो सवालों की जद में चुनाव आयोग है।सड़क से अदालत तक उठे सवालों के जवाब चुनाव आयोग से मांगे गए हैं और उसे ही देने हैं। लेकिन, विपक्ष के हर सवाल को झूठ करार देते हुए भाजपा के नेता जिस तरह चुनाव आयोग की ढाल बनने के लिए जुट गए हैं वह मामले को संदेहास्पद बना देता है।
मतदाता सूची तैयार करना चुनाव आयोग का काम है और इसमें गड़बड़ी के आरोप लगे। विपक्ष के सवालों के जवाब में भाजपा के नेता अस्सी के दशक की मतदाता सूची ले आए। साथ ही विपक्ष के नेताओं की जीत वाली सीटों के आंकड़े भी प्रस्तुत करके उनसे इस्तीफा मांगा। ऐसा करते ही आयोग की ढाल में खड़े भाजपा के नेताओं ने उसकी साख को और मुश्किल में डाल दिया। यानी अब चुनाव आयोग के खाते में दोगुनी गड़बड़ी है। आरोप-प्रत्यारोप के इस खेल में आयोग की बनाई मतदाता सूची कई मोर्चे पर सवालों के घेरे में आ रही है। जब थोड़ी-बहुत गलतियां हों तो हम उसे मानवीय भूल के खाते में रख सकते हैं। लेकिन दोनों पक्षों के गड़बड़ियों के कथित सबूतों के पुलिंदे के बाद आप पर सवालों का दायरा और बढ़ जाता है। इस्तीफा चाहे प्रतिपक्ष मांगे या फिर पक्ष मांगे, जिम्मेदारी तो आयोग की बनती है।
भाजपा के नेताओं को जवाबी हमले के लिए जिस विद्युत की गति से चुनाव आयोग के इतने पुराने दस्तावेज और मुश्किल आंकड़े मिल गए वह भी आश्चर्यजनक है। क्योंकि विपक्ष का रोना यही है कि आयोग उसे किसी तरह के आंकड़े नहीं दे रहा है।
आज भारत की मतदाता सूची में ऐसे करोड़ों मतदाता जुड़ चुके हैं जो अस्सी के दशक में पैदा भी नहीं हुए थे। बात आज के चुनाव और आज के मतदाताओं की है। अस्सी के दशक में अगर कुछ गड़बड़ी हुई थी तो उसके आधार पर भाजपा के नेता आज किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होने की गारंटी कैसे दे सकते हैं? वह भी तब जब केंद्र की राजग सरकार के शीर्ष से इन आरोपों पर आधिकारिक तौर से अभी तक कुछ भी नहीं कहा गया है।
चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और इसके पास पूरी व्यवस्था है। उसे संवैधानिक निकाय का दर्जा इसलिए दिया गया है ताकि वह पक्ष व विपक्ष की खेमेबंदी से परे रहे। चुनाव आयोग सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों को लेकर जिम्मेदार है। विपक्ष के सवालों के जवाब आयोग से ही संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर आने चाहिए। फिर भाजपा के नेता चुनाव आयोग के अघोषित अंगरक्षक क्यों बने हुए हैं? जो मामला अदालत में चल रहा है उसके लिए भाजपा के नेता वकील बन कर दलील क्यों दे रहे हैं?
हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि संविधान आलमारी में सजा कर रखने वाली साजिल्द किताब भर नहीं है। संविधान के शब्दों की व्याख्या करते हैं संवैधानिक निकाय जिनमें एक चुनाव आयोग भी है। भाजपा के नेताओं को यह जान लेना चाहिए कि जनता से लेकर विपक्ष तक को हर संवैधानिक निकाय से सवाल पूछने का हक है।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को लेकर एक बड़ा फैसला दिया। समाज में एक तबका इस फैसले से सहमत नहीं है तो दूसरा तबका इसका स्वागत कर रहा है। इसे लेकर टीवी से लेकर हर तरफ बहस चल रही है। कुत्तों को लेकर चल रही बहस, फैसले पर उठाए गए सवालों से किसी को परेशानी नहीं है। हो सकता है कि एक बड़ी बहस छिड़ने पर अदालत के सामने कुछ और तस्वीर आए व आने वाले समय में अदालत का रुख कुछ और हो जाए। अहम यह है कि इस फैसले में अदालत से नाखुश लोगों से कोई यह नहीं कह रहा कि आप सवाल क्यों उठा रहे हैं। चुपचाप सिर झुका कर फैसला क्यों नहीं मान ले रहे हैं? ऐसे में भाजपा के नेता चुनाव आयोग पर सवाल उठाने को ही गुनाह क्यों मान रहे हैं?
यहां पर सवाल चुनाव आयोग से है कि आप जैसे स्वायत्त, स्वावलंबी निकाय को भाजपा के नेता सुरक्षा घेरा देते हुए दिख रहे हैं तो क्या आपको असहज महसूस नहीं होता? क्या इससे शक पैदा नहीं होता कि कुछ ऐसा है जिसे भाजपा के नेता सामने नहीं आने देना चाहते हैं? या कुछ ऐसा है जिसके सामने आने से आपको परेशानी हो सकती है और इन अघोषित अंगरक्षकों को अघोषित रूप से मंजूरी दे दी है? सवालों के जवाब देने से किसका नुकसान होने की आशंका है?
मतदाता सूची का मामला अभी अदालत में चल रहा है। इसलिए अभी कोई फैसलानुकूल टिप्पणी नहीं की जा सकती। हम अभी सवाल आयोग की ढाल बने भाजपा के नेताओं पर उठा रहे हैं। आखिर वे आयोग के अवैतनिक अंगरक्षक सरीखे क्यों दिख रहे हैं? अनुराग ठाकुर ने भी वही काम किया जो सात अगस्त को राहुल गांधी ने किया था। इसलिए जनता अब आयोग और भाजपा नेता दोनों से पूछ सकती है-क्या राज है जिसको छुपा रहे हो?