Arvind Kejriwal Politics: भाजपा नेता कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) ने कहा कि देश में बहुत से राजनीतिक दल (Political Party) ऐसे हैं जो अपने बोले को नहीं कर पाए। लेकिन, आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ऐसी है जिसने अपने बोले हुए का उलटा किया। कपिल मिश्रा का आरोप है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भारतीय राजनीति का सबसे अश्लील चेहरा हैं। अरविंद केजरीवाल एक चुनावी कारोबारी (Election Dealer) हैं जो चुनाव वाली जगह पर पहुंच कर घनघोर प्रचार के माध्यम से खुद को विकल्प बनाने का हंगामा मचाते हैं। इसके बाद शुरू होता है टिकटों के लेन-देन का कारोबार। उत्तराखंड से लेकर गुजरात के चुनाव (Elections from Uttarakhand to Gujarat) इसके उदाहरण हैं कि ये चुनावों में सबसे ज्यादा हंगामा मचाते हैं और उसके बाद सन्नाटा छा जाता है। कपिल मिश्रा अण्णा आंदोलन के बारे में कहते हैं कि बहुत से ईमानदार लोगों का नेतृत्व बेईमानों का एक समूह कर रहा था। बातचीत का संचालन कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज ने किया।

पंकज रोहिला : एक समय था जब आप आम आदमी पार्टी का चेहरा रहे, और आज उसकी पोल-खोल के पूरे ज्ञानकोष हैं। खैर, आगे कर्नाटक और अन्य राज्यों के चुनावों में आम आदमी पार्टी की कैसी भूमिका देख पा रहे हैं?

कपिल मिश्रा : आम आदमी पार्टी के काम करने का ढांचा ही यही है कि जहां चुनाव हो वहां प्रचार और टिकटों के लेन-देन का व्यापार करो। चुनाव होने के बाद वहां से निकल लो। यही ढांचा कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में दिखेगा। चुनाव के पहले ऐसा हंगामा बरपाया जाएगा कि फलां जगह आम आदमी पार्टी ही विकल्प बन सकती है। उससे पहले न कोई जमीनी काम और न आगे का उत्तरदायित्व। उत्तराखंड का उदाहरण देखिए। वहां बड़ा चुनाव लड़ा, अब सन्नाटा है। गुजरात में तो सरकार बनाने तक का दावा था और आज हाल देखिए। यही आगामी चुनावी राज्यों में होगा। लेकिन ये जहां झूठ बेचने जाएंगे सच बताने के लिए हम मौजूद रहेंगे।

मुकेश भारद्वाज : आप के आम आदमी पार्टी में रहते हुए भी यही ढांचा था या बाद में बना?

कपिल मिश्रा : तब हम इस सच को जानते नहीं थे। मैं नहीं जानता था, मेरे जैसे बहुत लोग नहीं जानते थे। एक आंदोलन का माहौल था कि वैकल्पिक राजनीति खड़ी की जाएगी। जनता के हाथ में सत्ता देने का सपना था। हम जैसे युवा आए, बहुत से लोग विदेशों से अपनी नौकरी छोड़ कर आए। लेकिन, अरविंद केजरीवाल आज भारत की राजनीति में सत्ता के विकेंद्रीकरण का सबसे अश्लील चेहरा बन चुके हैं। जिस दिन आम आदमी पार्टी बनी कांस्टीटूशन क्लब में नेताओं की सूची जारी हुई कि इन्हें राजनीति से हटाने के लिए हम आए हैं। शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, मायावती सहित 51 नेताओं के नाम थे। आज से लगभग दो साल पहले एक मंच पर अरविंद केजरीवाल उन 51 में से कई नेताओं के साथ खड़े थे। आम आदमी पार्टी जिस उद्देश्य से बनी थी, उसका उलटा काम कर रही है।

सुशील राघव : आप लंबे समय से कहते रहे कि अब तिहाड़ जेल में दिल्ली कैबिनेट की बैठक होने जा रही है। आप मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर इतने आश्वस्त कैसे थे?

कपिल मिश्रा : मैंने मई 2017 में कहा था कि तीन लोग सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार में जेल जाएंगे। मैंने उस भ्रष्टाचार को बहुत नजदीक से देखा था। जब मैंने आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार पर सवाल उठाए थे, तब मुझे अंदाजा नहीं था कि इतनी जल्दी हो जाएगा। मुझे लगता था कि अगले दस या पंद्रह साल लड़ना होगा, क्योंकि ये पढ़े-लिखे भ्रष्टाचारी हैं। लेकिन, छह साल के अंदर सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया जेल में और अरविंद केजरीवाल अपनी बारी के इंतजार में हैं, यह ईश्वर का न्याय है।

महेश केजरीवाल : अरविंद केजरीवाल समेत पूरा विपक्ष कह रहा कि सरकार एजंसियों का इस्तेमाल कर फंसा रही है। आपका क्या कहना है?

कपिल मिश्रा : अरविंद केजरीवाल का नारा था-पहले इस्तीफा फिर जांच। नौ महीने जेल में रहे सत्येंद्र जैन से इस्तीफा क्यों नहीं लिया गया? लालू यादव, कलमाड़ी के मामले में भी इस्तीफा हुआ था। अरविंद केजरीवाल के खाली दो मंत्री नहीं हटे हैं, भ्रष्टाचार या दुराचार में। जितेंद्र तोमर के बारे में अरविंद केजरीवाल ने पाक-साफ बताते हुए कहा था कि मैंने सारे कागज जांचे। जितेंद्र तोमर दोषी पाए गए। उनकी सदस्यता खत्म हुई और अदालत ने दुबारा उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया। अदालत ने यह तक बोला कि आप अपने नाम के पीछे पूर्व विधायक भी नहीं लिख सकते क्योंकि आपने फर्जी कागज से विधायक का चुनाव जीता था। तो, केजरीवाल ने सफेद झूठ बोला।

राजेंद्र पाल गौतम तो खुलेआम हिंदू देवी-देवताओं को गाली देते थे। संदीप कुमार किन हालात में हटाए गए? शायद भारत की राजनीति में उस तरह का दुराचार का वीडियो कभी नहीं आया होगा। पिछले छह साल में आम आदमी पार्टी के नेता कतार लगा कर भ्रष्टाचार और दुराचार में जेल जा रहे हैं, दोषी साबित हो रहे हैं। क्या यह संभव है कि मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन ने भ्रष्टाचार किया हो और केजरीवाल को पता न चला हो। इन दोनों को सबसे ज्यादा विभाग दिए। अगर वे दोनों भ्रष्ट हैं तो केजरीवाल ईमानदार कैसे हो सकते हैं? या तो वे अक्षम हैं कि उन्हें पता ही नहीं कि उनके नीचे क्या हो रहा है या वे बेईमान हैं। अब इन दोनों में वे क्या हैं ये उन्हें आकर बताना है दिल्ली की जनता को।

सूर्यनाथ सिंह : आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार पर आप लंबे समय से मुखर हैं। इस मामले में अपनी पार्टी को कहां देखते हैं?

कपिल मिश्रा : छह साल हो गए भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ते हुए। मुझ पर भ्रष्टाचार का आरोप तो केजरीवाल भी नहीं लगा पाए। मेरी सारी फाइल, मेरे सारे काम उसी सचिवालय में रखे हुए हैं, जहां से मैं लड़ कर निकला हूं। क्या मेरी कोई पुरानी फाइल उठा कर एक पैसे का दाग भी आम आदमी पार्टी लगा पाई? आवाज तो वहीं से उठेगी जहां गलत हुआ होगा। कोई पुजारी बन कर मंदिर में शराब तो नहीं पी सकता। आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार पर अन्य दलों के मापदंडों के साथ नहीं रखा जा सकता क्योंकि उसका उद्देश्य ही भ्रष्टाचार के खिलाफ था।

पंकज रोहिला : शराब पर आरोप के बाद आम आदमी पार्टी अपने शिक्षा के काम को लेकर लोगों से भरोसा मांग रही है।

कपिल मिश्रा : कौन सा शिक्षा का ढांचा है इनका? आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कहां पर स्कूल बनाए हैं? कौन सी जगह है जहां नया स्कूल बनाया है? शराब के आठ सौ ठेकों का पता मैं दे सकता हूं, जहां नया ठेका पहले नहीं था। क्या वो ऐसे आठ पते दे सकते हैं जहां पहले स्कूल नहीं था, इनके शासन में बना है। मनीष सिसोदिया का अभी शराब घोटाला सामने आ रहा है। जिस दिन मनीष सिसोदिया का शिक्षा घोटाला सामने आ गया उस दिन वे किसी की आंखों में आंखें डाल कर बात करने लायक नहीं बचेंगे। दिल्ली में 2011 का दसवीं का नतीजा क्या था और 2021 का दसवीं का नतीजा क्या है? दिल्ली में आज कितने स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई होती है, कितने स्कूलों में विज्ञान नहीं है।

आम आदमी पार्टी ने पिछले आठ साल में शिक्षा का जो बजट घोषित किया, उसमें से कितना पैसा खर्च किया? साठ फीसद बजट हर साल खाली जाता है। शायद देश में किसी सरकार का साठ फीसद शिक्षा का बजट खाली नहीं जाता है। लेकिन, दिल्ली सरकार का यही ढांचा है। शिक्षा का सिर्फ विज्ञापन है। अभी दिल्ली के 60 फीसद स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई नहीं होती है। बिना विज्ञान के डाक्टर-इंजीनियर कैसे बनेंगे?

स्कूलों के प्रमुख मापदंड होते हैं-परीक्षाफल बढ़िया हो, विज्ञान की पढ़ाई बढ़ी या नहीं, प्रधानाचार्य है या नहीं। इनमें से किस मापदंड पर दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था खरी उतर रही है? दिल्ली के सरकारी स्कूलों का ढांचा और रख-रखाव हमेशा से अच्छा था। एशियाड के समय ही तरणताल बन चुके थे। कोई काम नहीं हुआ है शिक्षा पर। शराब घोटाला तो झांकी है, शिक्षा घोटाला बाकी है।

मृणाल वल्लरी : आम आदमी पार्टी की स्थापना के समय से आप साथ थे। वह कौन सा मोड़ था जब आपने अपनी राह अलग करने की ठानी? आपने खुद को पुनर्स्थापित कर लिया लेकिन कुमार विश्वास से लेकर कई ऐसे चेहरे हैं जिनकी राजनीतिक पहचान नहीं बन पाई तो इसकी वजह क्या देखते हैं?

कपिल मिश्रा : एक तो मैं अकेला हूं जिसने अलग होने के पहले और अलग होने के बाद यह संकल्प लेकर बोला था कि हमने जिस मुद्दे से पार्टी बनाई थी, अगर उस मुद्दे के खिलाफ काम हो रहा है, अगर इस बेल को लगाने का पाप हमसे हुआ है तो इस बेल को उखाड़ने का काम भी हम ही करेंगे। ज्यादातर लोगों ने अलग होने के बाद चुप रहना बेहतर समझा। अलग तो प्रशांत भूषण सहित कई लोग हुए। लेकिन क्या कारण है कि अलग होने के साथ ही इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया कि जो पाप हुआ उसके खिलाफ हम नहीं बोलेंगे। कभी-कभी बस अपनी सुविधानुसार बोलेंगे।

चाहे प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव हों, उनका पहला धर्म है कि आपसे जो पाप हुआ है जनता के हित के लिए उसे खत्म करें। मैं एक बात साफ तौर पर कहना चाहता हूं। अण्णा आंदोलन क्या था? यह एक ऐसा आंदोलन था जिसमें बहुत सारे ईमानदार लोगों का नेतृत्व बेईमान लोगों का छोटा समूह कर रहा था। यह समूह या तो चारित्रिक रूप से भ्रष्ट था या पैसों को लेकर भ्रष्ट था। इसलिए ज्यादातर लोग आम आदमी पार्टी से अलग होने के बाद बोलने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। चंदे की पारदर्शिता, स्वराज, भ्रष्टाचार, किसी चीज पर कोई कहां बोल रहा है। मैंने अपनी गलती समझी तो उसके बाद उसकी दुरुस्तगी की अपनी जिम्मेदारी भी समझी, जिसमें जुटा हुआ हूं।

महेश केजरीवाल : आम आदमी पार्टी से निकले हुए नेताओं को आपने अपने स्तर पर एकजुट करने की कोशिश क्यों नहीं की?

कपिल मिश्रा : सबसे पहली बात तो उन लोगों के मुकाबले मैं बहुत छोटा था। और सबसे अहम बात यह है कि उनके साथ विचारधारा का इतना अलगाव है कि एक मंच पर खड़ा नहीं हुआ जा सकता।

पंकज रोहिला : आपके दो पूर्व सहयोगी दिल्ली सरकार में नए मंत्री हैं। उन दोनों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
कपिल मिश्रा : आतिशी और सौरभ भारद्वाज इन दोनों को मेरी सलाह है कि ऐसी किसी फाइल पर दस्तखत नहीं करें जिसमें अरविंद केजरीवाल ने कुछ न लिखा हो। नहीं तो आप दोनों भी वहीं जाएंगे।

सुशील राघव : आपने कहा कि तीसरा व्यक्ति भी वहां पहुंचना चाहिए। लेकिन, तीसरे व्यक्ति के पास न तो कोई विभाग है और न कोई दस्तखत।

कपिल मिश्रा : अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार में तय किया कि किसी फाइल पर दस्तखत नहीं करेंगे। मतलब, उनकी आपराधिक मंशा थी। आठ साल पहले उन्हें पता था कि इतनी गड़बड़ होनी है, इसलिए मुझे किसी चीज को छूना नहीं है। वरना जो इंसान कहता था मैं ऐसा पढ़ा-लिखा हूं वह कहे कि मैं किसी काम की जिम्मेदारी नहीं लूंगा तो यह अचरज की बात है।

अरविंद केजरीवाल ने तय कर रखा था कि वे मुख्यमंत्री के नाते नहीं फंसेंगे। गोवा के चुनाव में जो हवाला का पैसा इस्तेमाल हुआ था प्रवर्तन निदेशालय उसकी निशानदेही कर चुका है। एजंसी के आरोपपत्र से बात स्पष्ट हो जाएगी। गोवा के चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रमुख के तौर पर अरविंद केजरीवाल पूरी तरह फंस रहे हैं। वहां से कैसे बचेंगे? आपने कुर्सी पर मुख्यमंत्री होते हुए दस्तखत नहीं किए, लेकिन हवाला के पैसे का इस्तेमाल आपकी पार्टी के चुनाव प्रचार में हुआ है तो पार्टी के प्रमुख होने के नाते आप उससे बाहर नहीं होंगे।