हमारे ग्रंथ और साहित्य हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहे हैं। कहा जाता है कि जो महाभारत में लिखा है, वह हर चीज यहां घटित होती है। यह भी माना जाता है कि जो चीज महाभारत में नहीं है, वह कहीं नहीं होती। आज अपने आसपास हम विज्ञान के जितने भी चमत्कार देख रहे हैं, जितनी भी तरह की घटनाएं देख रहे हैं, अगर उन सबकी कथा किसी ग्रंथ में वर्णित हो, तो इसका कारण उसके रचयिता का दूरद्रष्टा और उनमें उच्च कोटि की कल्पनाशीलता का होना है। साहित्यकारों के बारे में कई बार ऐसा कहा जाता है। वे अपने समय की तो सोचते ही हैं, अपने समय से आगे की बात भी कह देते हैं।
मसलन, करीब सवा सौ साल पहले हमारे एक महान साहित्यकार प्रेमचंद के विचार तत्कालीन समाज के साथ-साथ आज के समय के लिए भी कई स्तर पर प्रासंगिक हैं। उन्होंने स्त्री और पुरुष की प्रकृति की परिभाषा देते हुए ‘गोदान’ उपन्यास में कहा कि जब पुरुष में स्त्री के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। यानी पुरुष को स्वयं में थोड़ा नारीत्व का गुण लाना चाहिए! इसका तात्पर्य यह है कि अगर कोई पुरुष अपने पुरुषत्व का अहम छोड़कर थोड़ा कोमल और सुगढ़ हो जाए तो घर स्वर्ग हो जाता है।
देखा जाए तो हमारे यहां शुरू से ही घर और बच्चे संभालना औरतों के काम माने गए हैं। उनसे अक्सर एक ही समय में अच्छी पत्नी, मां, नर्स, शिक्षिका, कमाने वाली और गृहिणी बनने की अपेक्षा की जाती है। मगर महिलाओं का काम अक्सर अदृश्य होता है जो किसी को नजर ही नहीं आता। कुछ दशक पहले महिलाओं का जीवन और भी कठिन था। अपनी पेट की भूख भी वे तब शांत करती थीं, जब पूरा परिवार खा चुका होता था। आज भी बहुत सारे परिवारों में यह प्रथा कायम है। जबकि घर भर के कामों के साथ-साथ खेती-बाड़ी में भी उन्हें लगना होता था। उन्हें भी सही खुराक की उतनी ही जरूरत होती है, जितना कि एक पुरुष को होती है।
यह सही है कि धीरे-धीरे समय के साथ बदलाव आना शुरू हुआ है। आज कई घरों में लड़के बेहिचक कामकाजी पत्नी के साथ घर के कामों में हाथ बंटाते नजर आ जाते हैं, लेकिन इनका अनुपात बहुत अच्छा नहीं है। खासकर तब, जब पत्नी गृहिणी हो। उनके घर के पुरुष घर के कामों में हाथ लगाना अपनी तौहीन समझते हैं। लेखिका जूलिया अल्वारेज महिलाओं की घरेलू भूमिका और परिवार में उनके योगदान पर अपनी कविता ‘महिला के काम’ में अपनी मां के बारे में बताती हैं कि कैसे एक गृहिणी के रूप में उनकी भूमिका ने कवयित्री के भविष्य के जीवन को प्रभावित किया। अपनी कविता में जूलिया अल्वारेज एक गृहिणी की भूमिका को कमतर नहीं आंकने का आग्रह करती हैं, क्योंकि यह उनकी कला और महानता दोनों है।
घर में सिर्फ एक महिला आराम और सहजता पैदा कर सकती है। वह जानती है कि चीजों को खूबसूरती से कैसे व्यवस्थित करना है, फूलदान कहां रखना है और घर को कैसे एक सुखद स्थान बनाना है। मगर उनके किए कार्यों और मेहनत के मूल्य के बारे में सोचना तो दूर, परिवार वाले उनका सम्मान तक करना जरूरी नहीं समझते।
अब इस समस्या का एक समाधान यह हो सकता है कि सभी महिलाओं को कामकाजी होना चाहिए। तभी उन्हें अपने घर के कामों में अन्य लोगों की मदद मिल सकती है। लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि आज भी हमारे यहां कई महिलाएं योग्य होने के बाद भी घर से बाहर अपनी योग्यता के मुताबिक मिल सकने वाला अपना काम छोड़ देती हैं या शुरू ही नहीं करती हैं। उनके इस कदम को उठाने के मुख्य कारण बच्चों की परवरिश, घर के कामों और दफ्तर के बीच तालमेल न बिठा पाना ही होता है। वे दिन भर बाहर काम करके आने के बाद घर में भी एक आदर्श बहू की तरह काम करने और सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने के दोहरे दबाव में जी रही होती हैं। इसका नतीजा उनकी नौकरी छूटने के रूप में दिखता है।
महिलाओं की नौकरी छूट जाना मामूली-सी बात माना जाता है। जबकि इस बात की जड़ें हमारे ही सामाजिक ताने-बाने से गहरे जुड़ी हैं। शुरू से ही लड़कों की परवरिश, लड़कियों से अलग तरह से की जाती है, जिससे उनके मन में बैठ जाता है कि बच्चे और घर संभालना औरतों के काम हैं। कुछ समय पहले एक परिचित के घर में महिला अपने तेरह साल के बेटे को चाय बनाना और मैगी उबालना सिखा रही थी। उसने इसका कारण बताया कि वह लड़का है और उसे भी यह सब सीखना चाहिए, ताकि वह घर के कामों का सम्मान करना सीखे। उसके दिमाग में ये न चढ़े कि यह सब केवल लड़कियों के काम हैं। जाहिर है, उसका जवाब आश्चर्यजनक रूप से प्रभावित करने वाला था। ऐसी सोच रखने वाले माता-पिता समाज को एक सही नजरिया देते हैं। महिलाओं के हिस्से आने वाले कार्यों के प्रति सम्मान जगाते हैं।
अगर हम चाहते हैं कि आधी आबादी भी सम्मान के साथ जिए तो सामाजिक नजरिए में बदलाव जरूरी है। इसकी शुरुआत घर से ही की जा सकती है। यह समाज हमसे ही है। हम जैसा होंगे, वैसा ही यह समाज भी बनेगा। अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज उन्नत हो, तो अपनी सोच भी उन्नत बनानी होगी। अपनी दृष्टि ऐसी रखनी होगी कि वह दूर तक जाकर हमारे रास्तों पर गिरे कंकड़-पत्थर को भी देख सके, ताकि हमें उन्हें फेंकने में मदद मिले।