
Hindi Poet Mahakavi Jaishankar Prasad Ka Jeevan Parichay: 30 जनवरी, साल 1890 को उत्तरप्रदेश के काशी (वाराणसी) में एक जाने-माने…
पढ़ें सांत्वना श्रीकांत की कविता
शब्द र्इंट नहीं हैं, मगर विचार पलस्तर की तरह, झड़ने लगते हैं, एक हथौड़े के पड़ते ही
पंखुरी की सांस सूख रही है, जो सुंदर चोंच मीठे गीत सुनाती थी, उससे अब हांफने की आवाज आती है
एक गैल थी, जिसे बिल्ली काट गई, कल पता चला, उसके ठीक दाहिने कोने
धूप हो गई तेज-गरम, मौसम में फिर नई कहानी, आई-आई हंसती आई, प्यारी-प्यारी गरमी रानी।
कितना जोखिम, अचानक अनगढ़ पत्थर , मुझसे मिलने आते हैं , पढ़ा जाते नसीब का पाठ।
बिंब-प्रतिबिंब: अगर बगैर काम-काज के, संसद चल रही है, तो राज्य की, अन्य संस्थाएं भी
पगडंडियां कवित पंक्ति में एक के पीछे एक चलते, बनती है पगडंडी. साथ-साथ, समांतर चलने के लिए. बनानी पड़ती है…
कि मनुष्य को कभी स्त्री की तरह, या पुरुष की तरह, या वर्ग की तरह, या जाति की तरह, कोंच-कोंच…