Mahakavi Jaishankar Prasad की पुण्यतिथि पर कुमार विश्वास ने शेयर की रचना, प्रेम और प्रकृति से जुड़ी उनकी चंद पंक्तियां यहां पढ़ें
Hindi Poet Mahakavi Jaishankar Prasad Ka Jeevan Parichay: 30 जनवरी, साल 1890 को उत्तरप्रदेश के काशी (वाराणसी) में एक जाने-माने वैश्य परिवार में हिन्दी साहित्य के महान लेखक जयशंकर प्रसाद का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद साहू था।

Hindi Poem, Mahakavi Jaishankar Prasad, kahani, poetry, books in Hindi: महान कवि जयशंकर प्रसाद(Jaishankar Prasad) का जन्म 30 जनवरी 1889 में हुआ था और उनकी मृत्यु 15 नवम्बर 1937 को हुई। वह आधुनिक हिंदी साहित्य के साथ-साथ हिंदी रंगमंच में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। प्रसाद ने ‘कालाधर’ के कलम नाम से कविता लिखना शुरू किया। जयशंकर प्रसाद की पहली कविता संग्रह, जिसका नाम चित्रधर है, हिंदी की ब्रज बोली में लिखा गया था, लेकिन उनकी बाद की रचनाएं खड़ी बोली या संस्कृतनिष्ठ हिंदी में हैं। उन्हें सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के साथ हिंदी साहित्य के चार स्तंभों में से एक माना जाता है। उनके नाटकों को हिंदी में सबसे अग्रणी माना जाता है। प्रसाद के सबसे प्रसिद्ध नाटकों में स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी शामिल हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य के कवि और प्रोफेसर डॉ. कुमार विश्वास ने भी महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचना को याद करते हुए एक ट्वीट शेयर किया। इसमें उन्होंने कविता भी शेयर की है।
जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश के एक वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद साहू था और वह तंबाकू के मशहूर व्यापारी भी थे। आपको बता दें कि जयशंकर प्रसाद शतरंज के एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। अपने बाकी के समय में उन्हें बाग-बगीचे की देखभाल करना, खाना बनाना भी काफी पसंद था। उन्होंने कई प्रसिद्ध कविता, कहानी, किताबें लिखीं हैं। आइए उनके कुछ बेहतरीन कोट्स और कविता-
1. हिमाद्रि तुंग श्रृंग से : देशभक्ति से ओतप्रोत कविता (Patriotic Poet by Jaishankar Prasad)
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती –
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती –
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं – बढ़े चलो बढ़े चलो।
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।
अराति सैन्य सिंधु में – सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो बढ़े चलो।
( कहीं कहीं इस कविता का शीर्षक ‘प्रयाण गीत’ भी है)
यदि आपने कभी कलम में स्याही की जगह पर आँसू भर कर कुछ रच देने की कल्पना भर भी की हो तो महाकवि जयशंकर प्रसाद की पुण्यतिथि पर कालजयी रचना कामायनी के ‘आँसू’ सर्ग का यह अंश सुनें और उन्हें प्रणाम करें-https://t.co/LmfCBgOIqE
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) November 15, 2019
2. झरना (Poetic Lines on Nature)
रहे रजनी मे कहाँ मिलिन्द?
सरोवर बीच खिला अरविन्द।
कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध?
मधुर मधुमय मोहन मकरन्द॥
प्रफुल्लित मानस बीच सरोज,
मलय से अनिल चला कर खोज।
कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध?
वही परिमल जो मिलता रोज॥
राग से अरुण घुला मकरन्द।
मिला परिमल से जो सानन्द।
वही परिचय, था वह सम्बन्ध
‘प्रेम का मेरा तेरा छन्द॥’
3. किरण (Poem for Nature Lover)
किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज,
रँगी हो तुम किसके अनुराग,
स्वर्ण सरजित किंजल्क समान,
उड़ाती हो परमाणु पराग।
धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश,
मधुर मुरली-सी फिर भी मौन,
किसी अज्ञात विश्व की विकल-
वेदना-दूती सी तूम कौन?
चपल! ठहरो कुछ लो विश्राम,
चल चुकी हो पथ शून्य अनन्त,
सुमनमन्दिर के खोलो द्वार,
जगे फिर सोया वहाँ वसन्त।
4. महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचना ‘आंसू’ की चंद लाइनें…
बस गई एक बस्ती हैं
स्मृतियों की इसी हृदय में
नक्षत्र लोक फैला है
जैसे इस नील निलय में।
ये सब स्फुर्लिंग हैं मेरी
इस ज्वालामयी जलन के
कुछ शेष चिह्न हैं केवल
मेरे उस महामिलन के।
5. जयशंकर प्रसाद की रचना आह! वेदना मिली विदाई की चंद पंक्तियां…
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई
लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई