भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के कई रंग और स्तर हैं। इसमें एक तरफ आंदोलनात्मक तेवर है तो वहीं दूसरी तरफ कला और विज्ञान के क्षेत्र में हासिल हुईं वे उपलब्धियां हैं, जिनसे स्वाधीनता की देहरी चूमने से पहले ही भारतीय होने का गर्व स्वावलंबी भरोसे की शक्ल में सामने आया। महान वैज्ञानिक सीवी रमन का नाम इस गौरव को नई ऊंचाई तक ले जाने वालों में शुमार है। वे आजादी से पूर्व ही विज्ञान की दुनिया में ऐसी शख्सियत के तौर पर शुमार हो चुके थे, जिनके पास वैज्ञानिक चिंतन भी था और आविष्कार भी।

रमन ने 28 फरवरी 1928 में “रमन प्रभाव” का आविष्कार किया था। देश इस उपलब्धि से प्रेरणा लेने के लिए हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाता है। पारदर्शी पदार्थ से गुजरने पर प्रकाश की किरणों में आने वाले बदलाव पर की गई इस अहम खोज के लिए 1930 में उन्हें भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1930 में यह पुरस्कार ग्रहण करने वाले वे भारत ही नहीं बल्कि एशिया के पहले वैज्ञानिक थे।

रमन कहते थे कि हम अक्सर यह अवसर तलाशते रहते हैं कि खोज कहां से की जाए, लेकिन हम यह देखते हैं कि प्राकृतिक घटना के प्रारंभिक बिंदु में ही एक नई शाखा का विकास छिपा है। वे इस क्रम में आगे कहते हैं कि मैं किसी भी सवाल से नहीं डरता। अगर सवाल सही किया जाए तो प्राकृतिक रूप से उसके लिए सही जवाब के दरवाजे खुल जाएंगे। साफ है कि रमन भारतीय ज्ञान परंपरा से गहरे तौर पर जुड़े थे।

उनका जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर भौतिकी के प्राध्यापक थे। उनकी माता पावर्ती अम्मल एक सुसंस्कृत महिला थीं। रमन की प्रारंभिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई। वहां के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगत ने उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया। बचपन में सुनी रामायण-महाभारत की कथाएं आजीवन उनके लिए प्रेरणा बनी रहीं। जिस रमन प्रभाव की इतनी चर्चा होती है, उसके बारे में कहा जाता है कि 1921 में जब वे आक्सफोर्ड में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर भारत लौट रहे थे तो उन्होंने इस बारे में पहली बार सोचना शुरू किया।

दरअसल, उस वक्त उन्होंने भूमध्य सागर में अनोखा नीला व दूधियापन देखा। इससे उनके मन में सवाल उठा और उन्होंने इस बारे में खोज की। करीब सात साल बाद रमन ने खोज कर इसके कारण का पता लगाया।

रमन प्रभाव का उपयोग आज विज्ञान से जुड़े कई क्षेत्रों में किया जाता है। यह प्रकाश विज्ञान का एक ऐसा आविष्कार है, जिसके आधार पर आगे कई अनुसंधान हुए और उपकरणों के निर्माण हुए। जब भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी “रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी” का ही कमाल था। इसके अलावा फारेंसिक साइंस में भी रमन प्रभाव का उपयोग किया जा रहा है।

रमन प्रभाव को आसान शब्दों में समझना हो तो कहेंगे कि यह प्रकाश के प्रकीर्णन या बिखराव की प्रक्रिया है जो माध्यम के कणों की वजह से होती है। यह बिखराव तब होता है जब प्रकाश किसी माध्यम में प्रवेश करता है और इस वजह से बदलाव होता है। रमन प्रभाव के अनुसार, जब प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम से निकलता है तो उसकी प्रकृति और स्वभाव में परिवर्तन हो जाता है।

यह माध्यम ठोस, द्रव और गैसीय कुछ भी हो सकता है। देश की आजादी के अगले साल रमन ने अध्यापकीय और दूसरी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर रमन शोध संस्थान की बेंगलुरु में स्थापना की। 1954 में भारत सरकार ने उन्हें “भारत रत्न” की उपाधि से विभूषित किया गया। उन्हें 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।