दशहरे से शुरू हुआ त्योहारों का मौसम क्रिसमस और नववर्ष आगमन तक चलेगा। पर जिस तरह पहले दशहरे पर और हाल में दिवाली पर लोगों का संयम टूटा है, उसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ बहुत खतरनाक मान रहे हैं। वायु प्रदूषण के तौर पर यह खतरा जहां लोगों को सांस संबंधी समस्याओं से जूझने के लिए मजबूर कर रहा है, वहीं लोगों के असंयमित रवैए से आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के खतरे के प्रति कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ आगाह कर चुके हैं। त्योहार एक सांस्कृतिक अवधारणा है लेकिन इस समय वैज्ञानिक अवधारणा को ज्यादा तवज्जो देने की दरकार है।
अवसाद का खतरा
उत्सवधर्मिता हमारे देश की संस्कृति है और उत्सव का मतलब है मिलना-जुलना, देवी पंडाल और मेले। लेकिन जब लोगों को इससे दूर रहना पड़ जाए तो उनका अवसाद में आना स्वाभाविक है। वैसे भी अक्तूबर-नवंबर में मौसम बदलता है, जिसका असर दिमागी सेहत पर भी पड़ता है। तमाम तरह की एहतियात की बात करने वाले डाक्टरों ने इस बात को लेकर भी चिंता जताई है कि त्योहारों के इस मौसम में पाबंदियों के कारण लोगों में अवसाद बढ़ सकता है। कोरोना के लंबा खिंच जाने के कारण वैसे भी देश की बड़ी आबादी अवसाद की गिरफ्त में है।
त्योहारी धूम के कारण लोगों को निजता से निकल कर सार्वजनिकता में जाने का मौका मिलता है और वे दिमागी स्तर पर मबजूत बनते हैं। लेकिन जब सेहत के कारण घरों में कैद रहने की मजबूरी हो तो मन दुखी होता है। अच्छा तो यह होगा कि आप उत्सव जरूर मनाएं लेकिन घर पर परिवार के साथ ही इसका आनंद लें। कम संसाधनों में एक-दूसरे को खुश करने की कोशिश करें।
असंयमित होकर उत्सव मनाने के कई खतरे हैं। ये खतरे इतने गंभीर हैं कि जानलेवा तक शामिल हो सकते हैं। बंगाल और महाराष्ट्र में त्योहार के दौरान लोगों के भीड़ की शक्ल में बाहर निकलने के कारण वहां कोरोना संक्रमण के खतरे फिर से बढ़ गए हैं। मौजूदा हालात में हमें अपने संसाधनों के हिसाब से मन लायक पका-खाकर खुश रहने की पूरी कोशिश करनी होगी। समय और सेहत दोनों की यह साझी दरकार है।
बच्चे और बुजुर्ग
बच्चे और बुजुर्ग संवेदनशील होते हैं। वे उपेक्षा महसूस होते ही अवसाद में जा सकते हैं। कोरोना के समय में बच्चों और बुजुर्गों को घर में ही रहने की सलाह दी गई है। पूजा-पाठ में नियम-कायदे पूरे न होने के कारण बुजुर्गों को मानसिक अशांति हो रही है तो हर बार की तरह पूजा पंडालों में मस्ती नहीं करने के कारण बच्चों की दुनिया भी बोझिल है। लिहाजा, घर में ऐसा माहौल बनाएं कि वे समझ पाएं कि सारी पाबंदियां उनकी भलाई के लिए हैं।
बच्चे तो फिर भी अपने हिसाब से खेलकूद कर मन बहला लेते हैं लेकिन यह वक्त बुजुर्गों के लिए सबसे मुश्किल भरा है। इसलिए घर के बुजुर्गों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं और उनके मन को बहलाने के लिए जो कुछ भी आप कर सकते हैं, जरूर करें। बुजुर्ग जिन रिश्तेदारों को ज्यादा याद कर रहे हों, उनसे उनकी बात कराएं। इस बार बहुत सारे धार्मिक आयोजन ऑनलाइन हो रहे हैं तो बुजुर्गों को बड़े स्क्रीन पर उन्हें ये सब दिखाएं। बहुत से बुजुर्ग खुद से स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं तो उनकी पसंद के बारे में जान कर वो चीजें उन तक मुहैया कराएं।
न भूलने वाली बात
– त्योहारों में बाहर निकलें तो शारीरिक दूरी बरतने और मास्क पहनने का पूरा ध्यान रखें। अलग-अलग जगहों से ज्यादा खरीदारी करनी हो तो दस्ताने का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। फिलहाल खुली जगह पर खाने-पीने से बचें। गैरजरूरी चीजों की खरीदारी न करें तो ही बेहतर। त्योहार की तैयारी करते हुए घरों की सफाई भी हिसाब से करें क्योंकि ऐसा करते हुए संक्रमण का खतरा हो सकता है।
–ज्यादा सफाई के नाम पर शरीर को थका कर सेहत खराब करने का खतरा न उठाएं। उत्सवों को लेकर किसी तरह के पारिवारिक और सामाजिक दबाव में न आएं। इन दिनों घरों में रहना ज्यादा होता है तो तेल, मैदा और चीनी के ज्यादा इस्तेमाल वाला खाना बहुत न खाएं। त्योहार के नाम पर किसी भी तरह की ढिलाई न करें।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)