पटाखे जलाएं या नहीं, हर साल दिवाली पर दिल्ली के लोगों को इस असहज सवाल का सामना करना पड़ता है। लेकिन असल समस्या यह नहीं है। समस्या है दिल्ली में साल भर प्रदूषण के प्रति उदासीनता। बढ़ते प्रदूषण के कारणसुप्रीम कोर्ट ने 2018 से पटाखों की बिक्री पर रोक लगा रखी थी। इस साल उसने 18-21 अक्तूबर तक हरित पटाखों की बिक्री की अनुमति दे दी। हालांकि, वह पारंपरिक पटाखों पर अपने पूर्व कड़े रुख पर कायम है। पर्यावरण के अनुकूल घोषित पटाखे 30 फीसद कम नुकसानदेह कण उत्सर्जित करते हैं। दरअसल, बिना किसी प्रतिबंध के अगर लोग ज्यादा पटाखे फोड़ेंगे तो प्रदूषकों की मात्रा बढ़ सकती है। इसलिए पारंपरिक पटाखों पर प्रतिबंध समुचित कदम है। लोगों की भावनाओं को देखते हुए इस बार दिवाली के लिए उत्साह बढ़ाते हुए हरित पटाखों की अनुमति दी गई है। एक निगाह…

संयम और उत्सव का हमेशा से एक बेमेल रिश्ता रहा है। उत्सव अत्यधिक खाने में भी होता है, भले ही थाली में जो कुछ भी हो और वह पोषण विशेषज्ञ की कसौटी पर खरा न उतरे। इसी तरह, उत्सव के मौके पर जब लोगों के उत्साह की कीमत कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड या कार्बन मोनोऑक्साइड के पैमाने पर मापी जाए, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। हाल ही में इस बात पर बहस छिड़ी है कि क्या पटाखे दिवाली की परंपरा का हिस्सा लंबे समय से हैं या उन्हें उत्सव में हाल ही में शामिल किया गया है।

इस बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। वैसे भी, प्रामाणिकता हमेशा सांस्कृतिक व्यवहार को आंकने का एक कठिन पैमाना रही है। लगभग हर साल दिवाली पर पटाखों पर बहस लोगों और संस्थानों के एक विविध वर्ग को उलझा देती है — सुप्रीम कोर्ट से लेकर नीति निर्माताओं तक और व्हाट्सएप पर समाज कल्याण समूहों के प्रतिनिधियों तक। लेकिन इन बातचीत में शायद ही कभी इस बात के लिए जगह होती है कि जब शहर उत्सव में डूबा नहीं होता है तो वह कैसे सांस ले रहा होता है।

क्या शहरियों के फेफड़े ठीक हैं? अध्ययन बताते हैं कि दिल्ली सहित अधिकांश भारतीय शहरी केंद्रों में लोग स्वच्छ हवा में सांस नहीं लेते हैं। लेकिन स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच संबंध केवल दिवाली के दौरान ही सार्वजनिक चिंता का विषय बनता है। बाकी साल के लिए नहीं। दुर्भाग्य से, इस अगंभीरता का असर उत्सवों पर पड़ता है।

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चाहे त्योहारों के प्रति संयम बरतने का तर्क दिया जाए या सख्त पाबंदियों का, पटाखों पर केंद्रित दृष्टिकोण ऐसे माहौल को बढ़ावा देने में कोई मदद नहीं करता, जिससे लोग दिवाली के दौरान अपनी आंखें जलाए बिना, गले में खुजली और पूरे महीने सांस लेने में तकलीफ की चिंता किए बिना खुलकर मौज-मस्ती कर सकें। प्रदूषण का मुद्दा वाकई जटिल है और इससे निपटने के लिए तकनीकी, नियामक और वित्तीय हस्तक्षेपों के संयोजन की आवश्यकता होगी।

हालांकि, यह जटिलता इस मामले को अकेले सरकार पर न छोड़ने का एक अच्छा कारण भी है। अमीर लोग हवा साफ करने वाले यंत्रों और उच्च-गुणवत्ता वाले मास्क के जरिए अस्थायी राहत पा लेते हैं। लेकिन जब कई दिनों तक धुंध शहर की लय बिगाड़ देती है, तो वे भी नहीं बचते। स्कूलों की छुट्टियां लंबी हो जाती हैं, लोग बीमार होने लगते हैं, और अस्पतालों व क्लीनिकों में भीड़भाड़ हो जाती है।

जिस दिल्ली शहर में देश के कुछ बेहतरीन शोध संस्थान हैं, वह सरकार की प्रभावी नीतियों को लागू करने में असमर्थता के कारण खुद को असहाय महसूस करने लगता है। और, वह खुद से कभी यह सवाल नहीं करता कि ऐसा क्यों है। शायद यह अपर्याप्तता का भाव आजादी के बाद दिल्ली की पहचान के स्वरूप से जुड़ा है। शहर खुद को आर्थिक विकास, राजनीतिक शक्ति और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में देखता है।

ये विकास के महत्त्वपूर्ण संकेतक हैं, लेकिन ये अक्सर एक ऐसे समुदाय के निर्माण में बाधक बनते हैं जो अच्छी हवा को महत्त्व देता है। कई बार, लोगों ने संकेत दिए हैं कि वे कड़े फैसले लेने के लिए तैयार हैं – उदाहरण के लिए, 2015-16 में सम-विषम और एक रास्ते में एक ही कार में कई लोग बैठने का प्रयोग। लेकिन वह प्रयोग भी स्थायी जन-संस्कृति का हिस्सा नहीं बन सका।

उच्चतम न्यायालय द्वारा दीपावली के दौरान हरित पटाखों को फोड़ने की अनुमति दिए जाने पर पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। विशेषज्ञों ने कहा कि उचित प्रवर्तन और जन जागरूकता के बिना यह कदम दिल्ली की पहले से ही जहरीली हवा को और खराब कर सकता है। अदालत ने हरित पटाखों की बिक्री और उन्हें फोड़ने की अनुमति कुछ शर्तों के साथ दी है।

न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि हरित पटाखों का उपयोग दीपावली से एक दिन पहले और त्योहार के दिन विशेष समय अवधि — सुबह छह बजे से सात बजे तक और रात आठ बजे से दस बजे तक – तक सीमित रहेगा। पर्यावरण कार्यकर्ता अमित गुप्ता ने अदालत के फैसले को व्यावहारिक बताया क्योंकि यह लोगों के दीपावली के उत्सव के अधिकार का सम्मान करता है। लेकिन उन्होंने वायु प्रदूषण को साल भर की समस्या मानने में व्यापक विफलता की आलोचना की।

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गुप्ता ने कहा, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण साल भर की समस्या है, न कि सिर्फ एक महीने या सर्दियों की। दुर्भाग्य से इसे व्यवस्थित रूप से दूर करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) वर्तमान में 35 फीसद कर्मचारियों की कमी के साथ काम कर रहा है, जबकि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) जैसे राज्य निकाय भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं।

गुप्ता ने कहा, प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई जमीनी स्तर पर कमजोर है क्योंकि जिम्मेदार संस्थानों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और वे अत्यधिक बोझ तले दबे हुए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में एयर लैबोरेट्रीज के पूर्व अतिरिक्त निदेशक और प्रमुख दीपांकर साहा ने इस फैसले को तर्कसंगत बताया। उन्होंने कहा कि प्रमाणित हरित पटाखे पारंपरिक पटाखों का बेहतर विकल्प हैं।

हालांकि, साहा ने इस बात पर जोर दिया कि केवल प्रमाणीकरण से समस्या का समाधान नहीं होगा। उन्होंने कहा, बाजार में केवल प्रमाणित पटाखे ही बेचे जाएं, यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने नागरिकों से पटाखे फोड़ने के समय की पाबंदी का सख्ती से पालन करने का आग्रह किया।

साहा ने कहा कि अनुकूल मौसम होने पर भी प्रवर्तन महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमने नियम और विनियम तो बना दिए हैं, लेकिन गैर-प्रमाणित पटाखों के उत्पादन और आयात को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं। इससे भी खराब बात यह है कि अधिकतर लोग बहुत कम समयावधि के भीतर पटाखे जलाते हैं, जिससे प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि हो जाती है।

पर्यावरणविद् और एनवायरोकैटालिस्ट्स के संस्थापक सुनील दहिया ने आलोचनात्मक रुख अपनाते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले से अनपेक्षित परिणाम सामने आ सकते हैं। दहिया ने कहा, हरित पटाखों के उत्पादन और इन पटाखों के फोड़ने को वैध ठहराना दरअसल त्योहार के दौरान बढ़े हुए उत्सर्जन को वैध ठहराने जैसा है।

उन्होंने बताया कि हालांकि हरित पटाखों से 30 फीसद कम प्रदूषण होता है, लेकिन दीपावली के दौरान भारी मात्रा में पटाखों के इस्तेमाल से यह लाभ प्राप्त करना भी मुश्किल है। इस बीच, उच्चतम न्यायालय की पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ई-कॉमर्स मंच के माध्यम से पटाखों की बिक्री की अनुमति नहीं दी जाएगी।