दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि पिछले दस वर्षों में सदन में उनके साथ जो भी हुआ, अब बदली भूमिका में वे किसी बदले की भावना के साथ काम नहीं करेंगे। सदन में दोनों पक्षों व जनता के अभिभावक के रूप में वे सिर्फ लोकतांत्रिक विधायी रवायतों को ही आगे बढ़ाएंगे। गुप्ता ने कहा कि विपक्ष का मकसद जब सिर्फ हंगामा करना ही हो जाए तो अनुशासन बनाने के लिए सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। गुप्ता ने आरोप लगाया कि आप सरकार ने सीएजी जैसी संवैधानिक संस्था की रपटों को कूड़ेदान में रखा लेकिन हम हर रपट को मुकम्मल अंजाम तक पहुंचाएंगे। नई दिल्ली में विजेंद्र गुप्ता के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।

आप उस समय भी दिल्ली विधानसभा में थे जब भाजपा कमजोर विपक्ष थी। उसी सदन में अपनी बदली हुई भूमिका को कैसे देखते हैं?
विजेंद्र गुप्ता:
मेरी भूमिका जरूर नई हो गई है लेकिन दस वर्षों के अनुभव ने मुझे हर परिस्थिति में सदन में खड़े रहना सिखाया है। आज सदन में मेरी भूमिका एक अभिभावक की तरह हो गई है। विधानसभा के अभी तक संपन्न दो सत्रों में मैंने पूरी ईमानदारी से यह भूमिका निभाई है।

आपने बहुत अहम बात कही कि आप जनता सहित सदन में दोनों पक्षों के अभिभावक हैं। आपने सदन में वह समय भी देखा जब हर प्रतिरोध पर सदन से बाहर कर दिए जाते थे। आपके साथ जो हुआ सब दर्ज है। अब सदन चलाते वक्त क्या मन में कभी पुरानी बातें याद आती हैं?
विजेंद्र गुप्ता:
किसी बदले की भावना के साथ सदन को चलाने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि यह अन्याय होगा। मैंने विपक्ष को पूरा मौका दिया। मेरे साथ जो हुआ वह कभी अच्छा उदाहरण बन ही नहीं सकता क्योंकि जनता के मुद्दों पर कभी बात ही नहीं हुई।

विधानसभाओं से लेकर संसद के दोनों सदनों में अब सदन अध्यक्षों की भूमिका काफी सक्रिय हो गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का उदाहरण सामने है। उन्होंने न्यायपालिका से लेकर कई अन्य मुद्दों पर टिप्पणी की है। सदन के अध्यक्ष और सक्रिय राजनेता के बीच की महीन रेखा किस हद तक रेखांकित रह सकती है?
विजेंद्र गुप्ता:
मैं मानता हूं कि अध्यक्ष की भूमिका ज्यादा बड़ी है। धनखड़ जी पर मैं टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जिन पर राजनीति से हट कर विमर्श होना चाहिए लेकिन उसमें कोई प्रपंच नहीं होना चाहिए।

मेरा यह सवाल धनखड़ जी की उस टिप्पणी के संदर्भ में है जो उन्होंने दिल्ली में एक जज के आवास परिसर में आग लगने और करोड़ों के जले नोट मिलने के आरोपों पर की थी। सवाल दिल्ली पुलिस पर था कि शुरुआती दौर में पंचनामा भी दर्ज नहीं हुआ। आपका दिल्ली पुलिस से वास्ता पड़ते रहा है। क्या आपको लगता है कि दिल्ली पुलिस इस तरह की कोताही कर सकती है? जो जनता के लिए जिम्मेदार हैं उनकी जिम्मेदारी कौन तय करेगा?
विजेंद्र गुप्ता:
संसद कानून बनाती है, जो अदालत के ऊपर अदालत है। धनखड़ जी ने निश्चित रूप से विवेक से टिप्पणी की है। यह मामला इतने स्तरों से गुजरा है कि पूरी बात को समझे बिना मेरे लिए कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।

पिछले लंबे समय से दिख रहा है कि सत्ता में चाहे जो भी हो वह विपक्ष को दुश्मन की तरह देखने लगता है। इस प्रवृत्ति को आप कितना उचित मानते हैं?
विजेंद्र गुप्ता:
पक्ष और विपक्ष के बीच बस वैचारिक और कार्यशैली का विभेद होता है। दोनों लोकतंत्र के सिक्के के दो पहलू हैं। आपके आरोपों के अनुसार जहां भी ऐसी स्थिति बनी है एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दोनों पक्षों को मिल कर स्थिति सुधारनी चाहिए।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि वह विपक्ष नहीं प्रतिपक्ष है…।
विजेंद्र गुप्ता:
उन्होंने बिल्कुल सही कहा। विपक्ष का मतलब है सत्ता के सामने प्रतिरोध। पक्ष व विपक्ष को विचारों का आदान-प्रदान करना चाहिए। दोनों पक्षों के वैचारिक मंथन से लोकतंत्र के लिए अमृत निकलता है।

एक प्रवृत्ति दिखी है कि कोई बिल पास करवाना है और विपक्ष का प्रतिरोध है तो सभी विपक्ष को सदन से निकाल दो। आपके अभिभावकत्व में भी ऐसा दृश्य दिखेगा?
विजेंद्र गुप्ता:
विपक्ष अगर ठान ले कि किसी भी तरह बिल पास नहीं होने देंगे, कोई काम नहीं होने देंगे तो यह हर जगह होता है। हमारे सदन में भी हुआ। कड़े फैसले लेनाआसन की मजबूरी बन जाती है। लेकिन सिर्फ बिल पास करने के लिए विपक्ष को निकाल देना…मेरे संज्ञान में न ऐसा हुआ है और न ऐसा होना चाहिए। मैंने बजट सत्र में विपक्ष को पूरा मौका दिया। प्रश्नकाल सबसे अहम होता है। प्रश्नकाल सदन और सरकार के बीच पुल है। जनता के प्रश्न होते हैं। प्रश्न दो से दस तक सारे विपक्ष के हैं क्योंकि ड्रा से निकला है। इसके बाद भी विपक्ष सदन नहीं चलने देने पर आमादा है तो अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी पड़ती है। अपने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर विपक्ष गायब है। मंत्री जवाब दे रहे हैं और पूछने वाले गायब हैं। मतलब आप जनता को गुमराह कर रहे हैं। आप समाधान नहीं सिर्फ हंगामा चाहते हैं।

देश की विधायी व्यवस्था में कई रवायतें रही हैं। शून्यकाल का अस्तित्व ही खत्म है। आरोप है कि ध्यानाकर्षण में उन्हीं सवालों को लिया जाता है जो सत्ता पक्ष के अनुकूल होता है। स्थगन प्रस्ताव तो मंजूर होता ही नहीं है। विपक्ष के बिंदुओं पर गौर नहीं किया जाता है। फिर लोकतांत्रिक रवायतों का क्या होगा?
विजेंद्र गुप्ता:
पिछले दस वर्षों में जो हाल रहा उन्होंने इन सब चीजों को कभी कबूल नहीं किया। अभी मैंने आपको कई उदाहरण दिए। आपकी बताई सभी रवायतें होनी चाहिए। अगर मैं कह रहा हूं होनी चाहिए तो इसका शब्दार्थ यही है कि मैं इसे करूंगा। मुझे ये करना ही है। मैंने यह करके दिखाया। वाद-विवाद-संवाद के बिना सदन अर्थहीन हो जाएगा।

आपकी शख्यिसत के दो रूप हैं। पहले वाले रूप पर मेरे काफी सवाल हुए। आपका दूसरा रूप वो है जब दिल्ली में भाजपा के वजूद पर सवाल उठ रहे थे, सदन में दहाई का भी आंकड़ा नहीं था तब आपने पार्टी का परचम उठा कर लड़ाई की अगुआई की। अपने इस रूप के आधार पर बताइए कि ऐसा क्या हुआ कि दो बार प्रचंड बहुमत पाने वाली आम आदमी पार्टी आज अपना अस्तित्व बचाने के कगार पर आ गई।
विजेंद्र गुप्ता:
2015 के बाद केजरीवाल जी ने मुझसे कहा था कि हम आपको हराना चाहते थे, अब अगली बार आपको हराएंगे। लेकिन फैसला केजरीवाल जी को नहीं जनता को लेना था। आज मैं केजरीवाल जी से कहना चाहता हूं कि जब उनकी हवा थी तो उन्होंने दो बार मुझे हराने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। वहीं, एक बार भाजपा की हवा क्या आई केजरीवाल खुद साफ हो गए। अरविंद केजरीवाल को घमंड हो गया था कि वे जनता के ऊपर होकर फैसला दे देंगे। हर बार मैं पहले के मुकाबले ज्यादा वोटों से जीता।

आपके उद्धृत उदाहरण से मेरे मन में एक सवाल आया। कहीं यह दिल्ली का मिजाज तो नहीं बन गया है कि जो तीन या दो बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में रहे उन्हें घर बिठा दिया जाए। इसके पहले शीला दीक्षित के साथ भी ऐसा हुआ।
विजेंद्र गुप्ता:
शीला दीक्षित पंद्रह साल और अरविंद केजरीवाल दस साल रहे। दोनों को नई दिल्ली सीट से ही जनता ने निपटा दिया। इसके लिए नई दिल्ली सीट के मिजाज का अध्ययन तो करना चाहिए ही।

आम आदमी पार्टी हारी क्यों?
विजेंद्र गुप्ता:
आम आदमी पार्टी हारी क्योंकि वह जनता की अपेक्षाओं के उलट चली। कथनी और करनी में अंतर रहा जिसे जनता ने विश्वासघात की तरह लिया। जनता के साथ विश्वासघात करना हमेशा भारी पड़ता है।

दिल्ली में लगातार तीन बार शासन करने वाली कांग्रेस तीन बार से एक भी सीट नहीं ला पा रही है। दिल्ली की राजनीति में अप्रासंगिक सी हो रही कांग्रेस को आप कैसे देखते हैं?
विजेंद्र गुप्ता:
यह भी इत्तफाक कहिए कि लगातार तीन बार जिस पार्टी की सरकार रही हो वह विधानसभा में शून्य हो जाए। कांग्रेस को इसका आत्ममंथन करने की जरूरत है। सिर्फ दिल्ली नहीं पूरे देश में उसकी स्थिति खराब है।

कांग्रेस जब राजनीतिक रूप से इतनी कमजोर है तो फिर आपका शीर्ष नेतृत्व उसे लेकर इतना आक्रामक क्यों रहता है? कांग्रेस के विरोध में इतनी राजनीतिक ऊर्जा खर्च करने की क्या वजह है?
विजेंद्र गुप्ता:
विरोध कांग्रेस से नहीं उसके कृत्यों से है। कांग्रेस को अपने में बदलाव लाने की जरूरत है। उसे वैचारिक रूप से देश के साथ खड़े रहने की जरूरत है।

भाजपा पर आरोप है, दिल्ली से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पर कि वरिष्ठ नेताओं को उपेक्षित किया जा रहा है। जिन लोगों ने पार्टी को स्थापित करने में जीवन लगा दिया उन्हें घर बिठा दिया गया है।
विजेंद्र गुप्ता:
मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं। मैं सदन के अध्यक्ष पद पर हूं। इतना जरूर कहूंगा कि मैं जिस पार्टी से आता हूं वहां व्यक्ति नहीं विचारधारा की अहमियत है। यह पार्टी नहीं मिशन है। जब 1984 में सिर्फ दो सीट रह गई थी तब भी भाजपा के कार्यकर्ताओं का न तो विश्वास डिगा था और न ही वैचारिक मुद्दों से किसी तरह का समझौता किया था। हमारे लिए मिशन अहम है न कि सत्ता से जुड़े जोड़-तोड़। यही भाजपा की ताकत है।

अब तो ऐसा नहीं है। आरोप लगाया जाता है कि भाजपा के पास एक ऐसी धुलाई मशीन है जिसके जरिए वह किसी भी विचारधारा के लोगों को अपने में शामिल कर लेती है। दिल्ली में भी भाजपा ने कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के नेताओं को स्वीकार किया।
विजेंद्र गुप्ता:
अब ये सारे मजाकिया आरोप दिल बहलाने को गालिब…। दूसरे दलों से लोगों को काफी सोच-समझ कर शामिल किया जाता है। वे सब पार्टी की विचारधारा पर ही चल रहे हैं।

अब तो दिल्ली में तिहरे इंजन की सरकार है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि आपके दो रूप हैं, तो आपके राजनीतिक वाले रूप से ही सवाल कि भाजपा ने दिल्ली की जनता से जो बड़े-बड़े वादे किए हैं वे कब तक पूरे होंगे?
विजेंद्र गुप्ता:
अभी तो शुरुआत है। सारे वादों को पूरा करने के लिए काम करने की शुरुआत हो चुकी है। आज के समय में सबसे अहम है सकारात्मकता। दिख रहा है कि सरकार काम कर रही है।

आम आदमी पार्टी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप बुनियादी वजह रही उसकी सत्ता से बेदखली की। इन आरोपों की आज क्या स्थिति है खास कर सीएजी के मुद्दे पर?
विजेंद्र गुप्ता:
सीएजी को हम मुस्तैदी से ले रहे हैं। मानसून सत्र में हमारी कोशिश है कि पीएसी की रपट पेश हो जाए। पिछले वर्षों में चाहे वह कांग्रेस रही हो या आम आदमी पार्टी दोनों सीएजी की रपटों को कूड़ेदान में डाल रही थीं। सीएजी सरकार की मित्र है जिसे दोनों पूर्ववर्ती सरकारों ने शत्रु बना दिया था। सीएजी एक संवैधानिक संस्था है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि हम समयबद्ध तरीके से सीएजी की अभी तक की सभी 14 रपटों को पेश कर सिरे लगाएंगे।

एक फर्क दिख रहा है। चुनावों के पहले ईडी और सीबीआइ की अति सक्रियता थी। आम आदमी पार्टी के नेताओं के घर इनकी आवाजाही लगी रहती थी। चुनाव के बाद लग रहा कि इन संस्थाओं को याद नहीं कि केजरीवाल कौन हैं।
विजेंद्र गुप्ता: तब भी कानून अपना काम कर रहा था, अब भी कानून अपना काम कर रहा है। इसका सटीक जवाब तो आपके द्वारा उद्धृत एजंसियां ही दे सकती हैं।

देश में हिंदू-मुसलिम का विवाद उग्र होता जा रहा। दिल्ली ने दंगा भी झेला। अभी पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला भी हिंदू-मुसलिम विवाद को बढ़ा गया। ऐसा क्यों होता है?
विजेंद्र गुप्ता:
पहलगाम का हमला झकझोर देने वाला है। आतंकवाद इस देश का सबसे बड़ा दुश्मन है। आतंकवादी से बड़ा खतरा आतंकवाद है। आज पूरी दुनिया तय कर चुकी है आतंकवाद के खात्मे का। भारत सहित अन्य देशों ने जो रुख अख्तियार किया है तो मुझे लगता है कि एक समय ऐसा आएगा जब नक्शे में पाकिस्तान को खोजना पड़ेगा।

केंद्र ने जो कहा है वह चरितार्थ होगा?
विजेंद्र गुप्ता: जो भारत सरकार ने बोला है वह पूरा होगा।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने माना कि दिल्ली में सुरक्षा की स्थिति ठीक नहीं है। आपका क्या कहना है?
विजेंद्र गुप्ता: दिल्ली में चीजें पहले से बेहतर हुई हैं। मैंने कहा न कि अभी तो काम की शुरुआत है।

दिल्ली के पूर्ण राज्य के दर्जे पर आपका क्या कहना है?
विजेंद्र गुप्ता:
दिल्ली को विकास और सामंजस्य की जरूरत है। सभी एजंसियों को साथ काम करने की जरूरत है। इसके अलावा कोई भी मुद्दा राजनीति से प्रेरित है।

मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की कोई कसक?
विजेंद्र गुप्ता:
कोई कसक नहीं है। बचपन से संगठन में मिशन की तरह काम कर रहा हूं। हमें प्रशिक्षण मिला है पार्टी के फैसले को सर्वोपरि मानने का।