हरियाणा के मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल विज का कहना है कि जब आप पांच साल तक क्षेत्र में काम करते हैं तो चुनावी समय में आप इसका उत्सव की तरह लुत्फ लेते हैं। उन्होंने पांच साल तक हरियाणा की नब्ज देखी थी इसलिए उन्हें सूबे में भाजपा की सेहत दुरुस्त होने का पूरा यकीन था। उन्होंने हमेशा कहा कि सूबे में सिर्फ भाजपा जीतेगी और बाकी सब हारेंगे। जनता का व्यवस्था के प्रति विरोध भाजपा को लेकर नहीं था। जनता को कांग्रेस की पूर्व व्यवस्था का खौफ था कि वह कहीं वापस न आ जाए इसलिए भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया कि एक मजबूत सरकार बन सके। अंबाला छावनी में बेबाक नेता अनिल विज के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।

हरियाणा के मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल विज का कहना है कि जब आप पांच साल तक क्षेत्र में काम करते हैं तो चुनावी समय में आप इसका उत्सव की तरह लुत्फ लेते हैं। उन्होंने पांच साल तक हरियाणा की नब्ज देखी थी इसलिए उन्हें सूबे में भाजपा की सेहत दुरुस्त होने का पूरा यकीन था। उन्होंने हमेशा कहा कि सूबे में सिर्फ भाजपा जीतेगी और बाकी सब हारेंगे। जनता का व्यवस्था के प्रति विरोध भाजपा को लेकर नहीं था। जनता को कांग्रेस की पूर्व व्यवस्था का खौफ था कि वह कहीं वापस न आ जाए इसलिए भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया कि एक मजबूत सरकार बन सके। अंबाला छावनी में बेबाक नेता अनिल विज के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।

हरियाणा की राजनीति में अनिल विज उन नेताओं में शुमार हैं जिनकी राजनीतिक प्रासंगिकता कभी कम नहीं होती। भाजपा की चुनावी रणनीति चाहे जैसी और जितनी बदली हो उसमें अनिल विज की जगह होती है। हरियाणा के गुजरे विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मीडिया ने अपना डेरा अंबाला कैंट में जमा कर इस बात पर नजर रखी कि अनिल विज क्या कर रहे हैं? चुनाव प्रचार के दौरान उनके हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाले अंदाज का विश्लेषण करने में मीडिया नाकाम रहा। सूबे में अपनी स्थिति को लेकर भाजपा भी हिचक रही थी तो अनिल विज लगातार भाजपा की जीत का दावा कर रहे थे। हरियाणा का चुनाव राष्ट्रीय परिदृश्य का बन गया। चुनाव के पहले जो चीजें समझने में सब नाकाम रहे उसे समझाने के लिए अनिल विज से बेहतर कौन होता?

चुनाव की गहमागहमी खत्म हो चुकी है, नई सरकार के कामकाज के साथ विधानसभा सत्र भी शुरू हो गया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे को पूरे परिदृश्य में अप्रत्याशित कहा गया। तो आप इस कथित अप्रत्याशित जीत का श्रेय किसे देना चाहेंगे?
अनिल विज:
कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था। मैंने तो एक बार आशंका तक नहीं जताई कि हम नहीं जीतेंगे। आयोग की घोषित तारीखों के बाद लगभग सौ दिनों का चुनावी अभियान चला। इन सौ दिनों के चुनावी अभियान में मुझे जब भी और जहां भी मौका मिला, मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ यही कहा कि हम जीतेंगे, भारतीय जनता पार्टी जीतेगी। बिना किसी के सहयोग और समर्थन के भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ हरियाणा में सरकार बनाएगी। आकलन सही था कि जनता के मन में व्यवस्था के खिलाफ भावना थी। लेकिन वह भावना भाजपा के खिलाफ नहीं थी। जनता की भावना कांग्रेस की पूर्व व्यवस्था के खिलाफ अब भी बनी हुई थी। भूपिंदर सिंह हुड्डा के बुरे शासनकाल को हरियाणा की आम जनता आज तक नहीं भूल पाई है। जनता को बुरी तरह याद है कि किस तरह से इन्होंने शासन किया, किस तरह से तबादलों की मंडिया लगाई गईं और किस तरह से किसानों की जमीनों का सस्ते दामों पर अधिग्रहण किया। जमीनें भूमाफिया को देने के मामले अभी भी चल रहे हैं। किस तरह से इन्होंने नौकरियां बेचीं। लोगों को इस बात का खौफ था कि अगर भूपिंदर सिंह हुड्डा वापस आ गए तो फिर वही सब होगा। टीवी पर उनका चेहरा देखते ही लोग टीवी बंद कर देते थे। भूपिंदर सिंह हुड्डा के काफिले को देख कर आम लोग रास्ता बदल रहे थे।

यह बात सही है कि आप अकेले थे जो लगातार कह रहे थे कि भाजपा जीतेगी। हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…वाला आपका वीडियो इसकी तस्दीक भी करता है। सारे जमीनी आकलनों यहां तक भाजपा के भी आकलनों के विपरीत आप जीत का दावा कैसे कर रहे थे? क्या ये महज तुक्का था? अगर तुक्का नहीं तो आपके इस आत्मविश्वास की वजह क्या थी?
अनिल विज:
इस आत्मविश्वास की यही वजह थी कि मैं जनता के बीच रहता हूं। जनता की नब्ज का मुझे भी पता है, क्योंकि हमारी नब्ज भी उनसे जुड़ी हुई है। लोग क्या चाहते हैं उन महंगी एजंसियों के कर्मचारी नहीं जान पाए जिन्हें मोटे पैसे देकर सर्वेक्षण करने के लिए भेजा गया था। मैंने पहले ही कहा था कि ‘एग्जिट पोल’ की ‘पोल’ कई बार खुल चुकी है और इस बार भी खुलेगी। मैंने बेधड़क हर जगह कहा था कि भारतीय जनता पार्टी जीतेगी और सब हारेंगे। हमने पांच साल तक कभी जनता से नाता नहीं तोड़ा। हमने लोगों के बीच काम किया था, हम लोगों की नब्ज जानते थे तो हमें ही वापस आना था।

भाजपा के अंदर हार का भय तो इस तरह दिखा था कि ऐन चुनावी वक्त पर मुख्यमंत्री को बदल दिया गया। व्यवस्था के खिलाफ लोगों की भावना देख कर ही तो खट्टर को हटाया गया। वरना क्या वजह हो सकती है चुनाव के पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदल देने की?
अनिल विज:
मनोहरलाल जी ने हरियाणा में दस साल तक सफलतापूर्वक काम किया। खट्टर कई नई नीतियां लेकर आए थे। उन्होंने व्यवस्था को जनता के हक में बदलने की कोशिश की थी। उनके कामकाज से प्रभावित होकर ही मोदी जी ने उन्हें राज्य के ऊपर भेजा। उनकी सेवा का इस्तेमाल केंद्र में करने के लिए सोचा। इसलिए उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वा कर केंद्र में मंत्री बनाया ताकि वो वहां भी सार्थक योगदान दे सकें और हरियाणा में नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया।

पहली बार इन फैसलों का भाजपा में विरोध भी देखा गया। पार्टी में अनुशासन भंग होने जैसी स्थिति कई बार सार्वजनिक रूप से सामने आई। क्या पार्टी को इसका कोई नुकसान हुआ?
अनिल विज:
अब जो भी नतीजा है, सबके सामने है। प्रजातंत्र का तो यह पैमाना है कि हर कोई अपनी बात रखता है, अब आप उसे विरोध का नाम दें या फिर कुछ और कहें। नतीजे के रूप में हरियाणा की जनता ने यहां भाजपा को उसका सर्वश्रेष्ठ दिया है। हमें इतना अच्छा बहुमत मिला। यह जीत तो अब सब स्पष्ट कर रही है।

एक पहलू है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि चुनाव में ज्यादातर मंत्री बुरी तरह हार गए। मंत्रियों के हारने का मतलब यह भी है कि जनता ने उनके काम को नकार दिया। जबकि हरियाणा में अप्रत्याशित जीत का दावा काम के आधार पर किया जा रहा है।
अनिल विज:
यह एक विषय है जिस पर मैं चाहूंगा कि पार्टी के स्तर पर बात हो। इसका विश्लेषण हो कि मंत्रियों की हार क्यों हुई? पार्टी इस पर जरूर मंथन करेगी।

हरियाणा में भाजपा की ऐसी छवि बनी है कि वह जाट बनाम अन्य करती है। इस चुनाव को भी जातिगत ध्रुवीकरण के नजरिए से देखा जा सकता है। क्या आपको लगता है कि अलग विचारधारा वाली भाजपा भी अब जातिगत मुद्दों पर केंद्रित हो गई है?
अनिल विज:
जातिवादी राजनीति कांग्रेस करती है। हम तो कभी जातिवादी राजनीति नहीं करते हैं। हमारी राजनीतिक विचारधारा में तो पहले दिन से सिखाया जाता है कि हम हिंदुस्तानी हंै, हम भारतीय हैं। हम इसी राष्ट्रीय पहचान की भावना के आधार पर ही काम करते हैं। मैंने तो रात के दो बजे तक शिविर लगाए जहां जनता दूर-दराज से आती थी। कौन किस जाति का है, कौन किस धर्म का है और कौन किस क्षेत्र का है इस पर किसी को विचार करते नहीं देखा। हमने तो बस यही देखा कि हम किसकी समस्या का किस तरह समाधान कर सकते हैं। लोगों की हमसे उम्मीदें क्या हैं और वो हम किस तरह पूरी कर सकते हैं। जात-पात का मुद्दा मेरे सामने तो कभी उभर कर नहीं आया।

टिकट बंटवारे से लेकर मंत्रिमंडल गठन तक। राजनीति में जातिगत गोलबंदी व रणनीति तो दिख ही जाती है। भाजपा के खेमे में भी यह दिखता है। क्या आपको लगता है कि जनता जातिगत पहचान से आगे निकलना चाहती है?
अनिल विज:
मैं इस मुद्दे पर दूसरी तरह से सोचता हूं। मैं सोचता हूं कि अब हमारा प्रजातंत्र जवान हो चुका है। लोग अब जाति के मुद्दों पर नहीं आते हैं। खास कर नरेंद्र मोदी जी जब से आए हैं उन्होंने देश की राजनीति की दिशा बदल दी है। अब चर्चा राजनीति नहीं विकास पर होती है। अब चर्चा काम पर होती है। अब भी शोर होता है कि इस जाति के इस उम्मीदवार को वोट डाल दो तो इस धर्म के इस उम्मीदवार को वोट डाल दो। इन जातिगत और धर्मगत हल्लों को जनता मतदान केंद्र पहुंचते ही अपने कान और दिमाग से बाहर निकाल देती है। मतदान केंद्र जाते ही जनता एक भारतीय के रूप में मतदान करती है। रणनीतिक रूप से भले दिख जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि अब इतना असर नहीं है जातिवादी राजनीति का। मेरा कहना है कि जातिवादी राजनीति को सिरे से छोड़ देना चाहिए। अब क्यों न विकास के मुद्दे पर चर्चा हो? क्यों न सिर्फ और सिर्फ विकास के मुद्दे पर मतदान हो? मेरी मानिए तो ऐसा अब शुरू हो चुका है। भारत की जनता अपनी पहचान एक भारतीय के रूप में देखना शुरू कर चुकी है।

आपकी यह सोच पार्टी की रणनीति के रूप में नहीं दिखती। बात हरियाणा की ही करें तो जब नेतृत्व का चेहरा बदलना था तो आप सबसे तजुर्बेकार थे लेकिन प्राथमिकता में जातिगत समीकरण ही थे।
अनिल विज:
जहां तक नेतृत्व की बात है वह राष्ट्रीय स्तर पर चुना जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर हमारा शीर्ष नेतृत्व तय करता है और वो किस नजरिए से, किस आधार से तय करता है, मैं यह नहीं बता सकता। उनकी सोच का दायरा वृहत्तर होता है। वृहत्तर अनुभव और नजरिए के आधार पर ही फैसला लेते हैं।

नेतृत्व को लेकर आपने भी दावेदारी जताई थी।
अनिल विज:
मैंने कभी भी ऐसी किसी तरह की दावेदारी नहीं जताई। एक प्रश्न उठने लग गया था, जिसका चुनाव में स्पष्टीकरण करना जरूरी था। हरियाणा के लिए भी और मेरे अपने क्षेत्र के लोगों के लिए भी यह अहम था। जब नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री के रूप में मनोनीत किया गया तो बहुत सारे लोगों ने प्रश्न किया कि अनिल विज को मौका क्यों नहीं मिला? इसे लेकर एक बात फैल गई कि अनिल विज बनना ही नहीं चाहते। मैंने केवल इस बात का उत्तर दिया था कि जिम्मेदारी मिलने पर मैं तैयार हूं। मैंने आज तक कोई दावा नहीं किया। मैंने आज तक पार्टी से कोई चीज नहीं मांगी। मैंने केवल इतना स्पष्टीकरण दिया कि अगर पार्टी मुझे जिम्मेदारी देगी तो मैं उसे निभाने के लिए तैयार हूं। लोगों को यह लगा कि हां, अनिल विज भी तैयार हैं। जो मेरे खिलाफ कुप्रचार था, चुनाव में उन सब चीजों का उत्तर देना होता है। मैंने तो महज कुप्रचार का उत्तर दिया था।

अब पार्टी ने जो भूमिका दी है उससे संतुष्ट हैं?
अनिल विज:
मैं तो बहुत खुश हूं। काम कर रहा हूं और सबसे ज्यादा काम करूंगा।

आप कई विभागों में रहे। आपका पसंदीदा कौन सा विभाग रहा।
अनिल विज:
सभी विभाग मेरे पसंदीदा थे। शरीर के सभी अंगों को एक समान प्यार करना होता है नहीं तो कोई पक्षाघात का शिकार हो सकता है।

आपकी छवि एक कड़क नेता की है। लेकिन जमीन पर आपको देखने-परखने के बाद अंदाजा होता है कि आप जनता के बीच बहुत सामान्य और सहज रहते हैं। आपने चुनाव को भी बहुत सामान्य और रोजाना के काम की तरह ही लिया। कहीं पर यह आपकी नाराजगी के रूप में भी प्रचारित हुआ।
अनिल विज:
मैं हमेशा जनता से जुड़ा रहता हूं। जब हम पांच साल काम करते हैं तो चुनाव के समय ज्यादा भागदौड़ करने की जरूरत नहीं रहती है। हम इसे प्रजातंत्र के उत्सव के रूप में लेते हैं। जैसे दिवाली का त्योहार मनाते हैं, वैसे ही इसे भी खुशी से मनाते हैं। मैं तो सारे शहर में वोट मांगने गया भी नहीं। हमने पांच साल राजनीतिक सक्रियता रखी तो चुनाव के समय मजे-मजे से काम किया। दोपहर डेढ़ बजे से पहले मेरा चुनाव का कोई भी कार्यक्रम नहीं बनता था। इस बार तो हरियाणा को ‘कवर’ करने के लिए राष्ट्रीय स्तर का मीडिया अंबाला छावनी पहुंचा था। सब यही पूछते थे कि बाकी सब तो सुबह छह बजे नहा-धो कर निकल गए आप बारह बजे तक यहीं बैठे हैं। मैं यही कहता था कि ये सब तो सिर्फ चुनाव के समय निकलते हैं। मैं तो पांच साल तक जनता के बीच रहता हूं।

आप टीवी पर सबसे ज्यादा दिखने वाले नेताओं में से एक हैं। जनता के बीच आपकी अपील का असर होता है। आपके चुनावी क्षेत्र के अलावा पूरे राज्य में आपकी बातों का असर होता है। हर मंच पर पार्टी का पक्ष रखने की अपनी इस अप्रत्यक्ष भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
अनिल विज:
मैं हर मौके पर पार्टी का पक्ष रखता हूं। पिछले दिनों मुद्दा आया कि चंडीगढ़ में हमें नई विधानसभा बनाने के लिए जगह मिली है तो उसका पंजाब के मुख्यमंत्री जी ने विरोध किया तो मैंने कहा कि जब तक हमें हिंदीभाषी क्षेत्र हस्तांतरित नहीं हो जाते हैं, जब तक हमें एसवाइएल का पानी नहीं मिल जाता, तब तक चंडीगढ़ पर भी हमारा उतना ही हक है जितना पंजाब का।

ये मुद्दे कब तक हल होंगे? अब तो दोहरे इंजन की सरकार है।
अनिल विज:
जब हल होना होगा हो जाएंगे, हमारा काम अपना पक्ष और अपना तर्क मजबूती से रखना है जो कि हम कर रहे हैं।

हरियाणा की जीत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को कैसे देखते हैं?
अनिल विज:
संघ ने पूरा काम किया है और पूरा ध्यान दिया है। पूरे राज्य पर नजर रखी कि चुनाव ठीक से हो।

आपके विपक्ष में भूपिंदर सिंह हुड्डा हैं जिन्हें हरियाणा की राजनीति में महारत हासिल है। भाजपा के नेताओं में थोड़ी नाराजगी भी दिख रही है। ऐसा कोई डर कि सूबे में पार्टी कमजोर हो सकती है?
अनिल विज:
किसी तरह का कोई डर नहीं है। किसी भी विपक्ष की इतनी हिम्मत नहीं है कि हमारे विधायकों को तोड़ सके। पिछली बार तो हम बहुमत में नहीं थे। इस बार तो हमारी सरकार बहुमत में है।

जनता ने कांग्रेस को क्यों खारिज किया?
अनिल विज:
कांग्रेस की कोई विचारधारा नहीं है। हम अपनी विचारधारा पर कायम रहते हैं, जनता यह समझती है। हम जनता के बीच जाकर जूझते हैं और उनकी समस्या को हल करने की कोशिश करते हैं।

आम आदमी पार्टी के बारे में क्या ख्याल है?
अनिल विज:
यह धोखे से खड़ी हुई पार्टी है। अण्णा आंदोलन की आड़ में इसे खड़ा किया गया था। अण्णा आंदोलन की लोकप्रियता को भुनाते हुए उनकी विचारधारा के खिलाफ पार्टी चुनाव लड़ी। अब यह सब कुछ खो चुकी पार्टी है। इसका कोई भविष्य नहीं।

उत्तर प्रदेश से निकला बंटेंगे तो कटेंगे का नारा जो हर जगह चल रहा है। योगी के दिए इस नारे पर विपक्ष नफरती होने का आरोप लगा रहा है। आप कैसे देखते हैं?
अनिल विज:
योगी ने इस नारे में किसी धर्म का नाम नहीं लिया। इसके बराबर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि हम एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे। यह तो बहुत समझदारी की बात है।

आने वाले समय में भारत का राजनीतिक परिदृश्य कैसा रहेगा?
अनिल विज:
पहली बार किसी प्रधानमंत्री यानी नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत बनाने की बात की है। इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक ने ये बात नहीं कही। राष्ट्रों के वर्गीकरण की परिभाषा तो पहले भी थी। अविकसित और विकासशील तक ही सीमित रहे सब। मोदी जी ने भारत को विकसित बनाने की पहलकदमी की है। उनके साथ कदमताल करके हम भी उसी दिशा में बढ़ना चाहते हैं। यही राजनीतिक परिदृश्य रहेगा।

प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी

विशेष सहयोग: सुमन भटनागर