कमाल का खेल! जेब में छदाम भर, लेकिन करोड़ों का माल मुफ्त! जवाब में विपक्ष का आरोप कि आपके ही राज में उसने इतना माल उड़ाया और अब विदेश में मौज कर रहे हैं। वापस उनको लाओ तो मानें! फिर जैसे ही ‘वक्फ कानून’ एक लंबी बहस के बाद संसद से पास होकर आया, वैसे ही अपने साथ विरोध भी लाया! सबसे अधिक हिंसा और आगजनी बंगाल के कई शहरों में होती दिखी। मुर्शिदाबाद में दंगाइयों ने दो लोगों को मारा। तीसरा बीएसएफ की गोली से मरा। तकरीबन चार सौ गरीब परिवार अपने घरों को छोड़ जान बचाकर मालदा भागे। इस तरह की खबरें आती रहीं। एक नेता कहिन कि बंगाल के लोग एक इलाका छोड़ दूसरे में गए हैं। यानी यह पलायन नहीं है। इसके साथ ही ‘इमामों’ की एक बैठक में ‘वक्फ कानून लागू नहीं होंने देंगे’ का वादा भी किया गया।
कुछ चर्चक चकित कि जब कह दिया कि लागू नहीं होने देंगे, तब हिंसा क्यों! पुलिस मूकदर्शक क्यों बनी रही? क्या हमलावरों को किसी का संरक्षण था? हिंसा रोकने की एक अर्जी पर अदालत तक को कहना पडा कि मुर्शिदाबाद को नियंत्रण में लाने के लिए तत्काल केंद्रीय सुरक्षा बल भेजे जाएं।
आज के गोएबल्स पुराने गोएबल्स से मीलों आगे हैं। पुराने गोएबल्स का मानना था कि एक झूठ को हजार बार बोलो तो झूठ भी सच हो जाता है, लेकिन आज के गोएबल्स मानते हैं कि टीवी एक अनुकूल धारणा गढ़ कर सच को झूठ और झूठ को सच बनाता है। जैसे कि आप कहते रहें कि मारा जाने वाला खुद ही अपनी मौत मरा। न वह वहां होता, न मरता। यानी न कानून बनाया जाता, न कोई मरता। सीमा को केंद्र देखता है… वही घुसपैठियों को आने देता है.., इसलिए केंद्र ही जिम्मेदार..! आप पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी धारणा गढ़िए और फिर कहिए कि उपद्रवग्रस्त बंगाल में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाते? यानी केंद्र राष्ट्रपति शासन लगाए तो गया, न लगाए तो गया। यह ‘उकसावेबाजी’ का खेल है जिसे इन दिनों अपने चैनलों पर खुलेआम खेला जा रहा है।
़अब मामला सिर्फ ‘उकसावे’ तक सीमित नहीं, बल्कि खुलेआम धमकियां दिए जाने का है। एक चैनल पर एक नेता धमकी देता दिखता है: हम पचास चौराहों पर दो-दो हजार को तैनात कर मुरमुरा-गुड़Þ खाएंगे और सारे कोलकाता को जाम कर देंगे। ऐसे ही दूसरा धमकाता है कि उन्होंने छत्ते पर हाथ डाला है, मधुमक्खियों को गुस्सा दिलाया है। ऐसे निशाना बनाए जाने में विपक्षी दल के एक प्रवक्ता की वाणी अचानक बदलती है। वे कहने लगते हैं कि छत्ते को नष्ट भी किया जा सकता है..! ऐसी ही एक अन्य बहस में एक कहिन कि सत्ता में आए तो संघ को जेल भेजेंगे..! ऐसे प्रलापों को देख एक चर्चक क्षुब्ध होकर कह उठता है कि यही हमारा भविष्य है।
एक अन्य कहिन कि हिंदुओं के लिए कोई नहीं बोलता! इन दिनों की बहसें एकदम बेरहम हैं। सब कुछ ‘सबके लिए मुफ्त’ है। ़़कोई कुछ भी बक सकता है। नफरतें भी बदलाखोर हुई जाती हैं! ऐसे ही एक दिन पाकिस्तान के सेना प्रमुख के ‘दो राष्ट्र’ संबंधी भड़काऊ वीडियो पर हुई कई बहसों में ‘दो राष्ट्र’ की सारी कहानी एक बार फिर दुहराई जाती रही और बहसें बताती रहीं कि कब, किस मुसलिम नेता ने ‘दो राष्ट्र के सिद्धांत’ को कैसे आगे बढ़ाया जो आखिर 1947 के बंटवारे में परिणत हुआ। आश्चर्य कि कई बहसों में एक नए ‘बंटवारे’ की सुगबगाहटें भी आती-जाती दिखीं।
फिर एक दिन ‘नेशनल हेरल्ड’ केस में विपक्ष के दो-तीन बड़े नेताओं के खिलाफ ‘चार्जशीट’ दाखिल किए जाने की खबर आई और बहसें आरोप-प्रत्यारोप से भर गईं। नाराज विपक्ष कहता रहा कि ये ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ है, लेकिन हम डरने वाले में नहीं हैं। ऐसे ही राबर्ट वाड्रा से ईडी की पूछताछ ने बड़ी खबर बनाई। एक वाड्रा समर्थक कहिन कि यह ‘राज्य का अपराध’ है! दूसरे कहिन कि हम सत्ता में आए तो आरएसएस को जेल भेजेंगे। फिर आया सर्वाेच्च अदालत का ‘वक्फ कानून’ पर अंतरिम आदेश कि फिलहाल ‘वक्फ कानून’ पर अभी अमल न किया जाए… और एक सप्ताह में केंद्र अपनी स्थिति स्पष्ट करे।
इससे भी बड़ी खबर बनाई उपराष्ट्रपति के उस वक्तव्य ने, जिसमें उन्होंने कहा कि क्या अब अदालतें राष्ट्रपति को आदेश देंगी! उनका संकेत एक राज्य द्वारा पारित कानूनों पर जरूरत से ज्यादा समय तक ‘बैठे रहने’ वाले राज्यपाल को दिए गए आदेशों के बारे में रहा। साथ ही उन्होेंने एक न्यायाधीश के घर पर मिले करोड़ों के नोटों के मामले को लेकर न्याय व्यवस्था की चुप्पी पर भी कटाक्ष किया। जाहिर है, इस सबने फिर एक नई बहस को जन्म दिया!