जब भी गोरक्षा के नाम पर किसी की हत्या की जाती है, मुझे याद आती है वह बात जो मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक आला नेता से सुनी थी। गोरक्षकों की हिंसा उस समय शुरू ही हुई थी, और मैं गई थी संघ के उस नेता से मिलने इस उम्मीद से कि उनसे बातें करके समझ सकूंगी मैं कि जो लोग अपने आप को देशभक्ति के ठेकेदार मानते हैं, वे क्या सोचते हैं इस हिंसा के बारे में। सोचा था कि इस आला संघी को भी साफ दिखेगा कि अगर गोमाताओं की जान मुसलमानों की जानों से ज्यादा कीमती होंगी भारत में तो जो खाई पहले से है हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, वह ज्यादा गहरी हो जाएगी।

निहत्थे इंसान पर भीड़ का हमला बहादुरी नहीं बुजदिली का सबूत है

जिनसे मिलने गई थी उस दिन, उनकी गिनती संघ के दस सबसे बड़े नेताओं में है। उन्होंने मेरे सवाल, मेरी सारी बातें ध्यान से सुनने के बाद कहा, ‘अच्छा है कि हिंदू कम से कम मारने तो लगे हैं। अभी तक तो मरते ही रहे हैं’। हैरान हुई यह सुनकर कि उनकी नजर में गोरक्षकों की हरकतें हिंदुओं की बहादुरी का सबूत थीं। असल में, जब भीड़ इकट्ठा होकर एक निहत्थे इंसान पर हमला करती है, तो वह बहादुरी का सबूत नहीं, बुजदिली का होता है। लेकिन मैंने जब यह बात कहनी शुरू की थी उस दिन, मुझे फौरन ऐसा लगा कि संघ के ये नेता मेरे साथ बिल्कुल सहमत नहीं हैं।

कानून को अपने हाथों में लेने का अधिकार किसने दिया है

जब कुछ दिन पहले उन्नीस साल के आर्यन मिश्रा की हत्या गोरक्षकों ने फरीदाबाद में की थी उसको गो-तस्कर समझ कर तो उसके पिता ने पूछा कि इन लोगों को किसने अधिकार दिया है कानून को अपने हाथों में लेने का? ये सवाल अगर हम सबने पूछा होता दस साल पहले जब मोहम्मद अखलाक की हत्या देश की पहली ‘लिंचिंग’ बनी थी, गोमांस के नाम पर, तो शायद आज इस तरह की हत्याएं बंद हो गई होतीं। न सिर्फ ऐसा नहीं हुआ, बल्कि गोरक्षकों ने ऐसी हत्याओं के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालने शुरू कर दिए गर्व से। उनके खिलाफ अगर कार्रवाई हुई तो ऐसी कि जमानतें फौरन मिल जाने लगीं अगर गिरफ्तारियां हुईं भी। हो सकता है, जिन हत्यारों ने आर्यन मिश्रा को मारा, उनके साथ इतनी नर्मदिली न दिखाई जाए, इसलिए कि आर्यन न गोतस्कर था, न मुसलमान।

जो जहर फैल गया है गोमाता के नाम पर, वह अब देश की रगों में उतर चुका है। इसलिए मुंबई की एक ट्रेन में नौजवानों के एक झुंड ने बहत्तर वर्ष के अशरफ अली सैयद को घेर कर इतना पीटा कि उसकी एक आंख सूज गई और उसके कपड़े फट गए। उसको ट्रेन के डिब्बे से फेंकने की धमकी दी गई और यह सब हुआ इसलिए कि वह अपनी बेटी के घर जा रहा था दो मर्तबानों में भैंस का मांस लेकर। भैंस काटना जायज है भारत में। बल्कि भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक हम दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक हैं भैंस के मांस के या शायद दूसरे नंबर पर आते हैं ब्राजील के बाद।

जिन नौजवानों ने इस बूढ़े मुसलमान को बुरी तरह पीटा और इस पिटाई का गर्व से वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला, उनको शायद इस बात की जानकारी नहीं थी। दुख की बात यह है कि ये नौजवान मुंबई जा रहे थे पुलिस में भर्ती होने की उम्मीद से। मुसलमानों के साथ उनका क्या बर्ताव होगा पुलिस में नौकरी लगने के बाद, वह अभी से दिखता है। लेकिन जब नफरत के जहर को किसी देश के आला नेता जानबूझ कर फैलाते हैं उस देश की रगों में, तो ऐसी चीजों को होने से कोई नहीं रोक सकता है।

सोशल मीडिया पर हत्या का एक और वीडियो चारों ओर प्रसारित हुआ था हरियाणा से। इसमें चरखी दादरी के किसी गांव के चौक में दिखते हैं कुछ लोग एक कमजोर से बंदे को जमीन पर गिराकर लाठियों से पीटते हुए। वह बंगाल का एक मजदूर था, जिसको गोमांस खाने के शक के कारण इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई। उसको उसकी झोपड़ी से घसीट कर लाया था हत्यारों ने उसकी पत्नी और दो साल की बच्ची के सामने। बाद में जब पुलिस गिरफ्तार करने गई भीड़ में शामिल लोगों को, तो पता लगा कि उनमें दो नाबालिग लड़के थे। उन्होंने यह काम किया होगा, यह सोच कर शायद कि ऐसा करके वे देशभक्ति दिखा रहे हैं। जब भी गोरक्षकों के इंटरव्यू दिखते हैं टीवी पर, यही कहा करते हैं कि वे इस काम में जुट गए हैं न सिर्फ गोमाता की रक्षा के लिए, बल्कि इसलिए भी कि वे देशभक्ति दिखा रहे हैं।

सवाल पूछना चाहिए अपने आला राजनेताओं से कि यह कैसी देशभक्ति है, जो समाज को बांटने का काम कर रही है, इस हद तक कि अगर आगे चलकर भारत का बंटवारा एक बार फिर होता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इस देश में मुसलमानों की आबादी इतनी बड़ी है कि उनको किसी दूसरे देश में भेजना असंभव है। इसके बावजूद नफरत फैलाने वालों से कई बार सुनने को मिलता है कि हिंदुओं के लिए सिर्फ भारत है, मुसलिम मुल्क बहुत सारे हैं। यानी कहीं भी जा सकते हैं वे भारतीय मुसलमान जो नफरत और हिंसा से तंग आकर देश छोड़ने की सोचने लगते हैं। बेवकूफ हैं ये लोग। जानते नहीं हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश चुपके से इस उम्मीद में बैठे हैं कि भारत के फिर से टुकड़े होंगे और उनका विस्तार। असली ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ वाला ‘गैंग’ जेएनयू में नहीं है। इस गैंग के सदस्य हमारी सड़कों पर घूमते हैं गोरक्षक बनकर। जब किसी मुसलमान की हत्या कर देते हैं तो गर्व से उसका वीडियो सोशल मीडिया पर डालते हैं।