जिस दिन पिछले सप्ताह चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के चुनावों की घोषणा की, मैं इत्तिफाक से कोंकण के एक गांव की आदिवासी बस्ती में थी। यहां आई थी पूछने कि पिछले पांच सालों में लोगों के जीवन में क्या परिवर्तन आया है, लेकिन सवाल पूछने के बाद मैं शर्मिंदा हुई, इसलिए कि साफ जाहिर था कि सवाल मेरा बेकार था। अब सुनिए, बस्ती का हाल। ज्यादातर मकान कच्चे थे। उनमें न फर्श थी, न पक्की छतें, न दीवारें, इसलिए उनको मकान कहना गलत था। उस बस्ती के ज्यादातर बच्चे नंगे पांव थे और उनके चेहरों से दिखता था कि वे कुपोषण का शिकार थे।

किस्मत अच्छी थी कि उस समय बिजली थी

कड़ी धूप थी उस दिन और गर्मी इतनी कि जब हम एक पक्के घर में बैठकर बातें करने लगे, तो इतनी गर्मी थी कि मेरी नोटबुक गीली हो रही थी। मेरे चेहरे से पसीने की बूंदें गिरने से। बस्ती का वह पंचायत घर था। बिजली थी, इसलिए पंखा चलाया लोगों ने, लेकिन साथ-साथ यह भी बताया कि मेरी किस्मत अच्छी थी कि उस समय बिजली थी तो सही। बातें शुरू हुईं तो लोगों ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया है। कुछ औरतों ने कहा कि पिछले तीन महीनों से उनके बैंक खातों में सरकार की लाडली बहन योजना द्वारा जमा किए जा रहे हैं पंद्रह सौ रुपए हर महीने। जिनको मिले हैं, वे खुश थे, लेकिन सबको नहीं मिले हैं। कई ऐसी औरतें थीं जो बैंकों के चक्कर रोज लगा रही हैं, अपने नाम दर्ज करवाने, अपने आधार कार्ड दिखाने।

पिछले दो महीनों से नहीं आ रहा पानी

मैंने जब पूछा कि इसके अलावा भी योजनाओं से उनके जीवन में कोई परिवर्तन आया है, तो सबने एक आवाज में कहा ‘कुछ नहीं’। बस्ती की सबसे बड़ी समस्या है पानी की। नहाने-धोने के लिए जो पानी आता था हर रविवार, कोई दस घंटों के लिए, वह पिछले दो महीनों से नहीं आ रहा है। ग्राम पंचायत में कई बार लोगों ने शिकायत की है, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा है। रही बात पीने के पानी की, तो उसको लाना पड़ता है एक गांव से, जो करीब पांच किलोमीटर दूर है। बात पानी की कर ही रहे थे कि एक पतली, बुजुर्ग महिला सामने से गुजरी जो दो बड़े प्लास्टिक के कनस्तर सिर पर रखे हुए थी, जिन में पानी था। विनोद नाइक नाम के एक व्यक्ति ने हंस कर कहा, ‘देखिए कैसे लाते हैं हम पीने का पानी’। बस्ती में घूमने के बाद मैं बच्चों का प्राथमिक स्कूल देखने गई जो केवल दो कमरों का था, लेकिन कम से कम इमारत पक्की थी। बस्तीवालों ने बताया कि बरसात के मौसम में स्कूल बंद रहता है, इसलिए इसी में वे जाते हैं रात को शरण लेने। जब उनके कच्चे घरों में पानी भर जाता है।

ऐसी बस्तियां मैंने जगह-जगह देखी हैं, लेकिन इस बस्ती को देखने के बाद मुझे शर्म के साथ क्रोध भी आया, इसलिए कि यह एक ऐसे सुंदर, समंदर किनारे गांव में है, जहां मुंबई के धनवानों के आलीशान मकान बने हुए हैं। यहां आते हैं मुंबई से ये लोग छुट्टियां मनाने समंदर किनारे और इनकी कोठियों की कीमत करोड़ों में है। आसपास के गांवों में घर हैं शाहरुख खान और विराट कोहली जैसे लोगों के और रतन टाटा का भी मकान है आसपास के किसी गांव में।

ऐसा लगा मुझे कि अगर इन धनवानों को इस बेहाल बस्ती की खबर होती तो शायद अपनी तरफ से कोई न कोई आर्थिक सहायता करते, लेकिन थोड़ी-सी और जानकारी हासिल करने के बाद मालूम हुआ कि समस्या असल में क्या है। समस्या पंचायत स्तर के लोगों की है। भ्रष्टाचार इतना है पंचायतों में कि दान अगर कोई करता भी है, तो आधा पैसा लोगों की जेबों में जाता है, गरीबों तक पहुंचता ही नहीं है। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि भ्रष्टाचार जब आला राजनेता करते हों तो छोटे-मोटे देहाती राजनीतिक को कौन पकड़ेगा!

दोष राजनेताओं का तो है ही, लेकिन कुछ दोष हम मीडियावालों का भी है। जब भी किसी राज्य में चुनाव होते हैं, दिल्ली और मुंबई के सबसे बड़े पत्रकार और टीवी एंकर घूमने निकलते हैं देश का हाल जानने। घूमते हैं लेकिन सिर्फ उन राजनेताओं से बातें करने, जिनकी लापरवाही की वजह से देश में शर्मनाक गरीबी आज भी है। हम राजनेताओं से मिलकर वापस जब लौटते हैं तो लेख लिखते हैं लंबे-चौड़े, जात-पात पर, राजनीतिक उथल-पुथल पर, लेकिन जिक्र तक नहीं करते हैं उन लोगों का, जिनकी आवाज इतनी कमजोर है कि सुनाई नहीं देती है सत्ता के ऊंचे गलियारों में। उनकी आवाज ऊपर तक पहुंचाना हमारा सबसे पहला फर्ज होना चाहिए, लेकिन हम अक्सर इस दायित्व को अनदेखा करते हैं। इसलिए कि कौन जाएगा उन गंदी बस्तियों में लोगों का हाल जानने, जहां रहते हैं इस देश के सबसे लाचार, सबसे गरीब लोग? दोष औरों पर नहीं, अपने आप पर भी डाल रही हूं, क्योंकि मैं भी इन बस्तियों का हाल जानने जाती हूं सिर्फ चुनावों के मौसम में।

गरीबी की समस्या पुरानी है भारत में, लेकिन मेरे जैसे पत्रकारों ने वे दिन भी देखे हैं जब राजनेताओं को वास्तव में चिंता रहती थी गरीबी हटाने की। जबसे राजनीति एक व्यवसाय बन गई है, तबसे ऐसे लोग ज्यादातर दिखते हैं, जो राजनेता बनते हैं जनता की सेवा करने के लिए नहीं, बनते हैं सिर्फ एक मकसद को ध्यान में रखकर। सोचा था कि मोदी के आने से एक नए किस्म की राजनीति आएगी, लेकिन अफसोस कि ऐसा हुआ नहीं है। क्या मोदी परिवर्तन नहीं ला पाए हैं, इसलिए कि उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई खोखली है। पकड़े जाते हैं केवल वे लोग, जो भारतीय जनता पार्टी में नहीं हैं। यह बात जगजाहिर है।