गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री दिखे हाथ में झाड़ू लिए आम जनता को स्वच्छ भारत आंदोलन के लिए नए सिरे से प्रोत्साहित करते हुए। पत्रकारों से उन्होंने कहा कि देश को स्वच्छ बनाने के लिए हर दिन सफाई पर ध्यान देना होगा, साल में केवल एक दिन के लिए नहीं। मतलब सिर्फ स्वच्छ भारत दिवस पर झाड़ू उठाना काफी नहीं है। मैंने जब उनको देखा टीवी पर और उनकी बातें सुनीं तो कुछ देर के लिए हैरान रह गई। काश, प्रधानमंत्रीजी आप मेरे साथ दिल्ली से हरियाणा गए होते पिछले सप्ताह और आपको दिखते वे कचरे के पहाड़, जो रास्ते में पड़ते हैं और जो इतने ऊंचे हैं कि दूर से असली पहाड़ों की तरह दिखते हैं। उनको देखते, तो शायद आप भी जान गए होते कि स्वच्छ भारत अभियान कई सालों से खोखला नारा बन कर रह गया है। इन कचरे के पहाड़ों से रोज निकलते हैं जहरीले रसायन, जो दिल्ली की हवाओं में उतना ही प्रदूषण फैलाते हैं जो इस मौसम में किसानों के पराली जलाने से फैलता है।

दिवाली के बाद वायु प्रदूषण का बढ़ता संकट और स्वास्थ्य पर प्रभाव

कुछ दिन पहले अखबारों में तस्वीरें छपीं पराली के जलने की और कुछ क्षण के लिए हममें से कुछ मीडियावालों ने तकलीफ जताई अपने लेखों में। कहा हमने कि शुरू हो गया है फिर से देश की राजधानी की वायु में इतना जहर फैलना कि बच्चे बीमार रहते हैं सर्दियों के मौसम में और दमा के मरीजों का तो हाल न पूछो क्या हो जाता है। बिल्कुल इस तरह की बातें, बिल्कुल इन्हीं शब्दों में हम कहते हैं हर साल यही बातें, जब दिवाली करीब आने लगती है और उत्तर भारत के लोगों के लिए संदेश लाती है कि गरम कपड़ों को संदूकों में से निकालने का समय आ गया है।

सवाल यह है कि हम क्यों नहीं साथ में यह भी पूछते हैं हर साल कि क्यों ऐसा होता है हर साल? क्यों नहीं हमारे शासक जान गए हैं कि उपाय है पराली जलाने को रोकने का। कई बार किसान कह चुके हैं कि मशीनें हैं जो पराली उठा सकती हैं उनके खेतों से, ताकि उसको जलाना न पड़े, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं हैं इन मशीनों को खरीदने के लिए, इसलिए यह काम सरकारों को ही करना होगा। क्यों नहीं कुछ करती हैं सरकारें? क्या वजह यह है कि दबाव नहीं डालते हैं हम इतना कि चुनावों में वायु प्रदूषण अहम मुद्दा बन जाए?

दिल्ली में प्रदूषण की चादर: उपायों की कमी और बढ़ती समस्या

प्रधानमंत्री ने बिल्कुल ठीक कहा कि भारत को स्वच्छ रखने का काम सिर्फ एक दिन के लिए नहीं हो सकता, लेकिन दस साल से देश की गाड़ी को चला रहे हैं नरेंद्र मोदी खुद और रहते भी हैं दिल्ली में, जहां सर्दियों के मौसम में प्रदूषण की चादर छा जाती है सारे शहर के ऊपर और तभी उठती है जब मौसम बदल जाता है होली के बाद। प्रधानमंत्रीजी आपने क्यों नहीं अभी तक देश की राजधानी में वायु प्रदूषण बंद करने के लिए कोई ठोस उपाय ढूंढ़ा है? क्यों नहीं आपको दिखे हैं कचरे के वे ऊंचे पहाड़? क्यों नहीं आपको दिखा है कि यमुना का पानी आज भी उतना ही गंदा है जैसे पहले होता था, बावजूद इसके कि आपके शासनकाल में करोड़ों रुपए इस नदी के पानी को साफ करने में खर्च किए गए हैं?

माना कि काफी हद तक गलती आम लोगों की है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा गलती आप जैसे राजनेताओं की है, जिन्होंने इन चीजों पर उतना ध्यान नहीं दिया है जितना आप देते हैं चुनावों में जीत हासिल करने पर। स्वच्छ भारत अभियान के शुरुआती सालों में तो इसने इतना परिवर्तन लाया देहातों में कि खुले में शौच करनेवालों की संख्या अस्सी फीसद से ज्यादा कम हो गई है। राजनेता जब नेतृत्व दिखाते हैं किसी काम को करवाने पर, अक्सर देखा जाता है कि जनता इस नेतृत्व को स्वीकार करती है दिल लगाकर। समस्या यह है कि स्वच्छ भारत पर ध्यान जबसे प्रधानमंत्री का कम हुआ है, तबसे जनता ने भी ध्यान नहीं दिया है। नतीजा यह है कि हम विकसित भारत का सपना देखते तो हैं, लेकिन ये सोचे बिना कि विकसित होना असंभव है जब तक हमारे शहर, हमारी नदियां, हमारा वायु इतना गंदा रहता हो कि जीना मुश्किल हो जाए।

सच यह भी है कि गंदगी और गरीबी का कोई रिश्ता नहीं है। मैंने पहले भी यहां लिखा है और बार-बार लिखूंगी कि श्रीलंका हमसे गरीब है, लेकिन वहां गंदगी नहीं दिखती है। कम्पूचिया हमसे गरीब है, लेकिन उस देश में भी गंदगी नहीं दिखती है। दूसरे देशों की बातें छोड़ें, हमारे अपने देश में इंदौर शहर साफ है इतना कि मैं जब भी जाती हूं, हैरान रह जाती हूं साफ-सुथरे बाजार, साफ-सुथरी गलियां देखकर। इंदौर साफ किया जा सकता है तो देश के बाकी शहर भी साफ हो सकते हैं। इंदौर साफ हुआ तब, जब वहां की नगरपालिका ने कचरा फेंकने वालों को दंडित करना शुरू किया। ऐसा होना चाहिए हर शहर में, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए हमें कि उन अधिकारियों को भी दंडित करना होगा, जिनकी लापरवाही के कारण बने हैं देश की राजधानी में कचरे के वे ऊंचे पहाड़।

दंडित होते हैं सरकारी अधिकारी जब भ्रष्टाचार करते हुए पकड़े जाते हैं, लेकिन आज तक किसी सरकारी अफसर को लापरवाही करने के लिए दंडित नहीं किया गया है। जब देश की राजधानी को ही हम साफ वायु-पानी नहीं दे सकते हैं तो कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत के बाकी शहर साफ हो जाएं? सबसे कड़वा सच यह है कि स्वच्छता और विकास का गहरा रिश्ता है कई तरह से। इसलिए जब तक स्वच्छता पर हमारे शासक गंभीरता से काम नहीं करने लगते हैं, हमको भूल जाना चाहिए विकसित भारत का सपना। सपना है आज, और कल भी सपना ही रहेगा।